विपक्षी दल सदन में गतिरोध दूर करने के लिए राजी

Last Updated 04 Dec 2024 12:40:23 PM IST

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के विभिन्न दलों के नेताओं के साथ बैठक के बाद सदन की कार्रवाई सुचारू चलने की संभावनाएं दिखी है, जो अच्छी बात है।


विपक्षी दल सदन में गतिरोध दूर करने के लिए राजी

सत्तापक्ष व विपक्ष के नेताओं के साथ हुई इस बैठक के बाद संसदीय कार्यमंत्री किरन रिजीजू ने कहा विपक्षी दल सदन में गतिरोध दूर करने के लिए राजी हो गए हैं। विपक्षी दलों की मांग स्वीकार करते हुए सरकार ने 13-14 दिसम्बर को संविधान पर लोक सभा में, राज्य सभा में 16-17 को चर्चा का ऐलान किया।

इसी के साथ शीतकालीन सत्र में जारी गतिरोध टूट गया। विपक्षी दल संविधान सभा द्वारा संविधान को अपनाने की 75वीं वषर्गांठ के अवसर पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा की मांग कर रहे थे। छह दिनों से चले आ रहे गतिरोध को रोकने में सरकार ने चर्चा का अनुरोध स्वीकार किया।

हालांकि तृणमूल कांग्रेस द्वारा विपक्ष की इस संयुक्त रणनीति का पालन करने से किया गया इनकार अलग संकेत दे रहा है। क्योंकि वह बांग्लादेश में हो रही घटनाओं को उठाना चाहती है, जबकि विपक्ष संभल व मणिपुर में अशांति का मुद्दा उठाने से चूकने वाला नहीं।

अखिलेश यादव कह रहे हैं, संभल की घटना भाजपा की सोची-समझी रणनीति है। यादव सदन में इस पर अपनी बात रखना चाहते हैं। कांग्रेस अडानी समूह से जुड़े विवादित मामलों पर चर्चा के लिए अड़ी है। इस ऐतिहासिक चर्चा में प्रधानमंत्री के शामिल होने की संभावना है, जिसमें संविधान के मूल सिद्धांतों, विकास व देश के विकास में इसकी भूमिका पर समग्र विचार हो सकता है।

इसे खास मौका बताया जा रहा है, जिसमें दोनों सदनों में संविधान के महत्त्व व प्रासंगिकता पर सरकार के साथ विपक्ष के नेताओं का संवाद होना तय है। शीतकालीन सत्र में विरोध व नारेबाजी से नाराज होकर राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने मर्फी नियम का हवाला देते हुए कहा था, जो कुछ गलत हो सकता है, वह गलत ही होगा।

लगातार सांसदों से शालीन बर्ताव करने की उम्मीद किए जाने के बाद भी विपक्ष सदन में चर्चा की बजाए हो-हल्ला करने व विरोध जताने में अपनी ऊर्जा लगा रहा है। विरोध करना व सरकारी कामकाज/निर्णयों पर संदेह करना नि:संदेह विपक्ष की जिम्मेदारी है।

वह अपना काम करता है मगर कभी यह तरीका असंसदीय हो जाता है। सत्तापक्ष को भी अपने दायित्व को समझना चाहिए। विपक्ष को नजरंदाज करने का उसका तरीका संविधान के अनुकूल नहीं कहा जा सकता।



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