जनसंख्या में आ रही गिरावट पर चिंता के मायने

Last Updated 03 Dec 2024 11:52:55 AM IST

देश में जनसंख्या को लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने फिर से बड़ा बयान दिया है, जो सोचनीय है। जनसंख्या में आ रही गिरावट को उन्होंने चिंता का विषय बताया।


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत

भागवत ने कहा किसी समाज की जनसंख्या वृद्धि दर अगर 2.1 फीसद से नीचे चली जाती है तो वह अपने आप नष्ट हो जाता है। नागपुर के कठाले कुल सम्मेलन में कहा देश की जनसंख्या नीति 1998 या 2002 के आस-पास तय की गई थी, जो कहती है जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 फीसद से नीचे नहीं होनी चाहिए। दो से तीन बच्चे होने चाहिए, क्योंकि समाज को जीवित रहना है। हाल ही में आई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हिंदुओं की जनसंख्या में 7.8 फीसद की कमी आई है।

संघ प्रमुख का बयान इससे जोड़ा जा सकता है। वास्तव में देश में प्रजनन दर में लगातार गिरावट आ रही है। 1950 में जनसंख्या वृद्धि दर 6.2 फीसद थी, जो घटते हुए 2.2 फीसद पर जा चुकी है। संयुक्त राष्ट्र का मानना है, सत्तर वर्षो में हमारी आबादी में एक अरब का इजाफा हुआ है। भौगोलिक दृष्टि से दुनिया का सातवां सबसे बड़ा देश भारत वर्तमान में आबादी के अनुसार पहला हो चुका है। बावजूद इसके कि 2011 के बाद से आधिकारिक तौर पर जनगणना नहीं हुई है।

लगातार इस तरह की बयानबाजी हो रही है। नेशनल हेल्थ फैमिली सव्रे कहता है, देश के सभी धार्मिक समुदायों में प्रजनन दर कम होती जा रही है। इसका कारण सामाजिक-आर्थिक अधिक है, जिसके चलते दंपति कम बच्चे पैदा करने का निर्णय स्वयं ले रहे हैं। लंबे अरसे से सरकारों ने जनसंख्या नियंत्रण को लेकर व्यापक प्रचार किया है। अब जबकि आम जनता छोटे परिवार के लाभ को जीवन का हिस्सा बना चुकी है।

अचानक राजनीतिक व अन्य लाभों के चक्कर में जनसंख्या वृद्धि को लेकर नया भ्रम फैलाया जा रहा है। बेतहाशा बढ़ती मंहगाई और रोजगार की कमी से त्रस्त जनता बड़े परिवार का पालन करने सक्षम नहीं है। उसे तीन बच्चों के पालन के लिए बरगलाया नहीं जा सकता। क्योंकि जनसंख्या दर में गिरावट सिर्फ भारत में ही नहीं आ रही है। दुनिया के तमाम विकसित व विकासशील देशों की यह विकराल समस्या बन गई है।

जहां लाोग सिर्फ आर्थिक कारणों से ही नहीं बल्कि वैश्विक व पर्यावरणीय बदलावों के चलते भी बच्चे जनने को राजी नहीं हैं। हमारे यहां आम जन इतनी दूरदर्शी या विचारशील भले ही नहीं है, मगर वह किसी की बयानबाजी में आकर जनसंख्या वृद्धि को राजी भी नहीं होने वाली।



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