मणिपुर में कब थमेगी हिंसा
देश के सुदूर पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में फिर से हिंसा का भड़कना वाकई चिंता की बात है। करीब डेढ़ वर्षो से यह सूबा भारी हिंसा से ग्रस्त है। आए दिन यहां कभी कुकी तो कभी मैतेयी समुदायों के बीच खूनखराबा होता ही रहता है।
मणिपुर में कब थमेगी हिंसा |
स्वाभाविक है, यहां के लोग किस अवस्था और मनोदशा में रहते होंगे? दरअसल, शनिवार को जिरीबाम में छह शव बरामद होने की खबर फैलने के बाद, कई जिलों, खासकर इंफाल पूर्व और इंफाल पश्चिम जिलों में भीड़ ने मंत्रियों, विधायकों और राजनीतिक नेताओं के करीब दो दर्जन घरों पर हमला किया और तोड़फोड़ की। इससे पहले सुरक्षा बलों का कुकी उग्रवादियों के साथ मुठभेड़ हुआ था, जिसमें कम से कम 10 कुकी आतंकी के मारे जाने की खबर है।
शनिवार को हुई इस हिंसा में इंफाल घाटी में कई विधायकों और मंत्रियों के घरों पर भी हमला किया गया और कई वाहनों में आग लगा दी गई। नतीजतन पुलिस को भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागने पड़े। हालात बद से और बदतर न हो जाए इसलिए स्थानीय प्रशासन ने राजधानी इंफाल समेत कई इलाकों में कफ्र्यू लगा दिया है। इसके अलावा कई जगहों पर इंटरनेट सेवा भी बंद कर दी गई है।
कुछ महीने पहले जुलाई महीने में यहां भारी हिंसा और तनाव का वातावरण था। यही वहज है कि अब भी हिंसा से प्रभावित मैतेयी और कुकी समुदाय के लोग बड़ी संख्या में राहत शिविरों में रह रहे हैं हिंसा से प्रभावित ऐसे भी लोग थे, जिन्हें भागकर पड़ोसी राज्य मिजोरम में शरण लेनी पड़ी है। राज्य के मैतेयी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग को इस हिंसा की मुख्य वजह माना जाता है। इसका विरोध मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले जनजाति कुकी कर रहे हैं।
जाहिर है, यहां शांति बहाली के लिए लाख जतन करने के बावजूद अभी तक मसला चिंतनीय बना हुआ है। बहरहाल, गृह मंत्री अमित शाह ने इस बाबत प्रयास करने शुरू किए हैं। ताजा हिंसा के मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपी गई है।
अलबत्ता, मणिपुर हिंसा वाकई केंद्र सरकार और राज्य सरकार के लिए नासूर बन गया है। इसका समाधान अभी तक मोदी सरकार नहीं तलाश सकी है। देखना है, ताजा हिंसा के बाद गृह मंत्रालय की सक्रियता कहां तक प्रभावी होती है। निश्चित तौर पर इस राज्य में जारी हिंसा ने कई जख्म दिए हैं। इस नाते इसका जल्द-से-जल्द हल निकालना हर किसी के लिए मुफीद होगा।
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