स्वर्ण ऋण के प्रति बढ़ता भारतीयों का रुझान
किसी भी देश के आर्थिक विकास को गति देने के लिए पूंजी की आवश्यकता रहती है। तेज आर्थिक विकास के चलते यदि किसी देश में वित्तीय बचत की दर कम हो तो उसकी पूर्ति ऋण में बढ़ोतरी से की जा सकती है।
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भारत में ऋण : सकल घरेलू अनुपात अन्य विकसित एवं कुछ विकासशील देशों की तुलना में अभी कम है। परंतु, हाल के समय में भारत का सामान्य नागरिक ऋण के महत्त्व को समझने लगा है एवं भौतिक संपत्ति के निर्माण में अपनी बचत के साथ-साथ ऋण का भी अधिक उपयोग करने लगा है।
कुछ बैंक सामान्यजन को ऋण प्रदान करने हेतु प्रतिभूति की मांग करते हैं। भारत में सामान्यजन के पास स्वर्ण के रूप प्रतिभूति उपलब्ध रहती है। अत: स्वर्ण ऋण अधिक चलन में आ रहा है। विशेष रूप से गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा ऋण की प्रतिभूति के विरु द्ध स्वर्ण ऋण आसानी से उपलब्ध कराया जा रहा है।
भारतीय नागरिक स्वर्ण ऋण के प्रति अधिक आकर्षित हो रहे हैं। विभिन्न गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों एवं विभिन्न बैंकों द्वारा भारी मात्रा में स्वर्ण ऋण स्वीकृत किए जा रहे हैं। अगस्त, 2024 माह में बैंकों एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों ने मिल कर 41 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करते हुए 1.4 लाख करोड़ के स्वर्ण ऋण स्वीकृत किए हैं।
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के कुल ऋण में स्वर्ण ऋण का प्रतिशत में हिस्सा सबसे अधिक है, दूसरे स्थान पर स्कूटर एवं चार पहिया वाहनों के लिए प्रदान किए गए ऋणों का ऋण है, इसके बाद तीसरे स्थान पर व्यक्तिगत ऋण 14 प्रतिशत के भाग के साथ है एवं इसके बाद जाकर गृह ऋण का नम्बर आता है जो कुल ऋण का 10 प्रतिशत भाग है।
बैंकों एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा प्रदान किए जाने वाले स्वर्ण ऋण पर पूंजी पर्याप्तता संबंधी शिथिल नियमों का पालन करना होता है। अन्य प्रकार के ऋणों की तुलना में स्वर्ण ऋण पर जोखिम का भार (रिस्क वेट) तुलनात्मक रूप से कम रहता है। इससे बैंक एवं गैर- बैंकिंग वित्तीय कंपनियां भी स्वर्ण ऋण प्रदान करने की ओर आकर्षित होती हैं।
स्वाभाविक प्रश्न उभरता है कि पिछले लगभग 3 वर्षो के दौरान भारत के नागरिकों में स्वर्ण ऋण के प्रति इतना रु झान क्यों बढ़ा है? दरअसल, भारत में दीपावली (धन तेरस) के शुभ अवसर पर स्वर्ण की खरीद को शुभ माना जाता है। इससे भारत के करोड़ों परिवारों के पास स्वर्ण का स्टॉक उपलब्ध रहता है। पिछले कुछ वर्षो के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों द्वारा स्वर्ण ऋण प्रदान करने के संबंध में नियमों को सरल बनाया है। भारतीय नागरिकों को स्वर्ण के स्टॉक के विरु द्ध ऋण आसान शतरे पर उपलब्ध होने लगा है।
भारतीय परंपरानुसार मध्यमवर्गीय परिवारों में स्वर्ण बेचना शुभ नहीं माना जाता जबकि स्वर्ण की खरीद को शुभ माना जाता है। इसलिए स्वर्ण को बाजार में बेचने के स्थान पर बैंक गिरवी रखकर ऋण प्राप्त करना ज्यादा उचित माना जाता है।
बैंकों व गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां रिजर्व बैंक के नियमों का अनुपालन करती हैं, तो स्वर्ण ऋण खाते का गैर-निष्पादनकारी आस्ति में परिवर्तितत होना संभव नहीं है। हां, असली स्वर्ण के स्थान पर नकली स्वर्ण के विरु द्ध ऋण स्वीकृत किया जाता है तो स्वर्ण ऋण खाते की गैर-निष्पादनकारी आस्ति में परिवर्तित होने की आशंका रहती है। इसलिए स्वर्ण ऋण प्रदान करते समय बैंकों को ऋण असली है, इसकी पक्की जानकारी होना जरूरी है। इसके लिए स्वर्ण की जांच पुख्ता तरीके से की जानी चाहिए।
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