न्याय का बुलडोजर
आपराधिक मामलों के अभियुक्त या दोषी की संपत्ति पर बुलडोजर नहीं चलाया जा सकता, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते हुए यह टिप्पणी की।
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अदालत ने यह भी कहा कि यदि सार्वजनिक जगहों पर अतिक्रमण किया गया है तो सार्वजनिक सुरक्षा के मद्देनजर इन अवैध निर्माणों पर कार्रवाई नहीं रोकी जा सकती। भले ही ये अवैध निर्माण कोई मंदिर हो या मजार।
पीठ ने इससे पहले बुलडोजर कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगा दी थी जिसमें अदालत ने कहा था निर्माण गिराने की कोई भी प्रक्रिया संविधान के मूल्यों के खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि दो अवैध निर्माण हैं परंतु कार्रवाई एक के खिलाफ की जा रही हैं तो इस पर सवाल उठना लाजिमी है, इस समस्या का हम समाधान निकालेंगे।उप्र, मप्र और राजस्थान सरकारों द्वारा बुलडोजर से गिराई जा रही निजी संपत्ति के खिलाफ विभिन्न याचिकाओं पर यह बात सबसे बड़ी अदालत ने कही। अदालत ने 4.45 लाख संरचनाएं गिराने की बात भी की। बुलडोजर चलाकर संपत्ति गिराने से पहले निष्पक्ष सुनवाई होनी जरूरी है।
दूसरे, यह किसी से छिपा नहीं है कि अवैध निर्माण म्यूनिसिपल कानूनों को लागू करने में राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन की ढिलाई का नतीजा होते हैं। अमूमन सार्वजनिक या सरकारी भूमि पर होने वाले कब्जों के लिए यही दोषी होते हैं। राजनीति करने और वोट बैंक बढ़ाने के लिए जानते-बूझते नाक के नीचे अवैध निर्माण कराए जाते हैं।
इनमें भू-माफिया की भी मिली-भगत देखी जाती है। सड़क, फुटपाथ, पार्कों और अन्य खाली सार्वजनिक स्थलों पर बनी अवैध संरचनाओं द्वारा कब्जा करने वालों की अदालत भी मदद नहीं करेगी। मगर ये कब्जे होने से पूर्व ही स्थानीय प्रशासन को चेतना होगा।
अपराधियों या दोषियों के परिजनों की संपत्ति को ढहाना भी सरकारों द्वारा की जाने वाली कार्रवाई को वैध नहीं ठहराया जा सकता। सजा मुकर्र करना अदालत का जिम्मा है। सरकारों को अपराध रोकने के प्रयास और आपराधिक या उद्दंडतापूर्वक काम करने वालों पर सख्ती करना चाहिए।
अपराधियों को प्रश्रय देने वाली राजनीति पर भी लगाम लगाए जाने की जरूरत है। नियम-कानून देश के हर नागरिक के लिए बराबर हैं, जिन्हें पाबंदी से लागू कराना सरकारी महकमों का काम है। बुलडोजरों को न्याय का तराजू नहीं बनाया जा सकता।
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