सवाल अदालत के फैसले पर
सुप्रीम कोर्ट ने स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत किसी मामले में जमानत देने को बहुत गंभीर मसला कहा है।
सवाल अदालत के फैसले पर |
पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार को यह बताने का निर्देश दिया कि वह एक मामले में चार आरोपियों की अग्रिम जमानत रद्द करने के लिए आवेदन दायर करने के लिए विचार कर रही है क्या? याचिकाकर्ता के अनुसार मामले के छह आरोपियों में से चार को गिरफ्तारी पूर्व जमानत दी गई है जबकि उनमें से एक नियमित जमानत पर है।
पीठ ने आश्चर्य जताया कि इस मामले में अग्रिम जमानत के बारे में कभी नहीं सुना गया। अदालत ने कहा हम राज्य को सह-आरोपी को दी गई अग्रिम जमानत रद्द करने के लिए आवेदन करने का निर्देश दे सकते हैं। याचिका में आरोपी ने कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती है जिसमें अक्टूबर, 2023 में दर्ज मामले में नियमित जमानत की मांग वाली उसकी अर्जी खारिज कर दी गई थी। हाई कोर्ट का कहना था, नमूनों की जांच सकारात्मक है जो संकेत है कि जब्त सामग्री प्रतिबंधित है।
इसमें गांजा की व्यावसायिक मात्रा एनडीपीसी अधिनियम की धारा 37 में प्रतिबंधों को आधार बनाते हुए अदालत ने जमानत खारिज की थी। 2021 में सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में कह चुका है कि गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम की तरह एनडीपीएस भी एकपक्षीय जमानत दिए जाने और प्रथम दृष्टया संतुष्टि के बिना कि आरोपी निदरेष है और भविष्य में उसके द्वारा अपराध करने की संभावना नहीं है, जमानत दिए जाने से रोकता है।
अदालतें विवेक और साक्ष्यों के आधार पर एक जैसे मामलों में अलग-अलग फैसले देती रही हैं। हालांकि जैसा कि शीर्ष अदालत ने नाराजगी जताई कि छह में से चार आरोपियों को पूर्व जमानत और उक्त याचिकाकर्ता पर सख्ती संदेह पैदा करती है वरना सह-अभियुक्तों की जमानत तत्काल खारिज की जानी चाहिए। मामला अदालत में है, जब तक सजा नहीं सुना दी जाती। कोई कानूनी पेचीदगी आड़े नहीं आती तो कड़ी शतरे के साथ उसे भी कुछ दिनों की जमानत देने का रास्ता निकालना नामुमकिन नहीं लगता।
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