भ्रष्टाचार के लपेटे में सीएम
कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) भूमि आवंटन ‘घोटाले’ के संबंध में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने को मंजूरी दे दी है।
भ्रष्टाचार के लपेटे में सीएम |
पूरा ‘घोटाला’ 4,000 करोड़ रुपये का है। राज्यपाल का फैसला टीजे अब्राहम, प्रदीप कुमार एसपी और स्नेहमयी कृष्णा की ओर से दायर तीन अर्जी पर आधारित है। इससे पूर्व सिद्धरमैया मंत्रिमंडल ने राज्यपाल को सलाह दी थी कि इस मामले में उनके द्वारा 26 जुलाई को जारी ‘कारण बताओ’ नोटिस को वापस लिया जाना चाहिए। नोटिस में मुख्यमंत्री से पूछा गया था कि क्यों न उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जाए।
लेकिन राज्यपाल ने मंत्रिमंडल की सलाह का संज्ञान न लेकर सिद्धरमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी। उनका कहना है कि मामले की वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष जांच कराना बहुत जरूरी है। इस बीच, सिद्धरमैया पर पद से इस्तीफा देने का दबाव बढ़ गया हैं। भाजपा का कहना है कि मामले, जिसमें सिद्धरमैया और उनके परिवार को संलिप्त बताया है, की निष्पक्ष जांच के लिए सिद्धरमैया को पद छोड़ देना चाहिए। हालांकि सिद्धरमैया ने इस्तीफा देने से यह कहते हुए इनकार किया है कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है।
राज्यपाल का फैसला संविधान और कानून के विरुद्ध है और वे इसे अदालत में चुनौती देंगे। राज्य में इस मुद्दे को लेकर राजनीति गर्मा गई है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने राज्य के अनेक हिस्सों विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। राज्यपाल का पुतला दहन भी किया। उनका आरोप है कि राज्यपाल संवैधानिक कार्यालय का घोर दुरुपयोग कर रहे हैं। बेशक, भ्रष्टाचार के किसी भी आरोप की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए लेकिन उसके राजनीतिक पक्ष को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
खासकर जब आरोपों में स्वयं मुख्यमंत्री घिरा हो। सोचा जाना चाहिए कि इस प्रकार के ‘घेराव’ से सिद्धरमैया आरोपी की बजाय पीड़ित ज्यादा नजर आ सकते हैं। इसलिए कि निर्वाचित सरकार को हटाने की साजिशों के तमाम मामले सर्वविदित हैं। दिल्ली, झारखंड समेत कई राज्यों में निर्वाचित सरकार के कामकाज को सहज न रहने देने की गरज से साजिशों का खुलासा हो चुका है। यह भी छिपा नहीं है कि केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी राज्यपाल के जरिए राज्यों में विपक्ष की सरकारों पर अनावश्यक दबाव बनाती है। उन्हें अस्थिर करने की कोशिश करती है। इसलिए शंका है कि इस मामले में वस्तुनिष्ठ जांच की बजाय राजनीतिक पक्ष ज्यादा मुखर रहने वाला है।
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