मुइज्जू ऐसे ही रहेंगे

Last Updated 16 Jan 2024 12:45:12 PM IST

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू चीन से लौटते ही भारत पर आक्रामक हो गए हैं। वे कह रहे हैं कि ‘हम छोटे किंतु संप्रभु देश हैं। हमें धमकाया नहीं जा सकता।’ इस कथन में कोई बुराई नहीं है। पर मालदीव के संदर्भ में यह बात नहीं है।


मुइज्जू ऐसे ही रहेंगे

भले मुइज्जू ने किसी देश का नाम नहीं लिया है पर उसका संदर्भ भारत ही है। फिर मालदीव में तैनात 88 भारतीय सैनिकों की रवानगी की 15 मार्च की डेडलाइन से साफ हो जाता है कि मुइज्जू और उनकी सरकार का निशाना भारत ही है। इसके पहले, उन्होंने राष्ट्रपति बनते ही इन सैनिकों की वापसी की मांग रखी थी। दरअसल, यह सब मुइज्जू के मालदीव से ‘इंडिया आउट’ के चुनावी कैंपन की परिणतियां हैं।

इनसे यह भी साफ हो गया है कि उन्होंने दबाव में और भारी मन से अपने तीन मंत्रियों को भले ही निलंबित कर दिया हो, चीन के बूते भारत के अ-हित का उनका अभियान शायद उनके शासनकाल तक जारी रहेगा। हालांकि मालदीव की निष्पक्ष राजनीति भारत से औपचारिक खेद याचना की मांग कर रही है। लेकिन मुइज्जू इस मांग को उपकृत करने के मूड में नहीं है। चीन की तरफ से उन्हें भारत विरोध का बूस्टर तगड़ा मिला है।

बीजिंग मालदीव को 13 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आर्थिक मदद दे रहा है। ‘मालदीवियन’ एयरलाइन चीन में घरेलू उड़ानें शुरू करेगी, हुलहुमाले में पर्यटन क्षेत्र विकसित करने के लिए 5 करोड़ अमेरिकी डॉलर मिलेगा और विलिमाले में 100 बेड के एक अस्पताल के लिए भी चीनी अनुदान मिलेगा। निस्संदेह यह बड़ी मदद है पर भारत की तरह निशुल्क, अनुदान या कम ब्याज पर नहीं है। मालदीव अपने सकल कर्ज का 20 फीसद चीन से लिया हुआ है।

इस आधार पर वह भविष्य का लंका बन जाए तो कोई अनहोनी नहीं होगी। फिलहाल, मुइज्जू आत्मघात की हद तक अति आत्मविश्वास में हैं। उनका यह कहना तो ठीक है कि मालदीव किसी के पिछवाड़े का नहीं-फ्रंट का देश है, और कि, किसी देश पर निर्भर रहने के बजाए सभी देशों से संबंध बनाएंगे।

ऐसा भारत समेत कोई भी देश कह सकता है। लेकिन मालदीव के कहने में भौगोलिक वास्तविकता का भान नहीं है। तुर्की, सऊदी अरब और चीन पर चिकित्सा या खाद्यान्न जैसे मामले में मालदीव की वितरित निर्भरता भी भारत की भरपाई नहीं कर सकती।

नेपाल भी भारत से तनातनी-काल में चीन पर महंगी निर्भरता से पस्त हो चुका है। पर मुइज्जू अकड़ में यह नहीं मानेंगे कि किसी शह पर भारत जैसे मित्र से दूरी द्विपक्षीय हित में नहीं है।



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