हिट एंड रन के मामले में एकतरफा न हो अधिकार
सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार से हिट एंड रन (Hit and Run) के मामले में मौत या गंभीर रूप से घायल होने के मामले में मुआवजा राशि सलाना बढ़ाए जाने पर विचार करने के निर्देश दिया है।
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साथ ही आठ हफ्तों में इस पर उपयुक्त निर्णय करने को कहा है। अदालत ने कहा कि एमवी अधिनियम 1988 में प्रावधान है कि हिट एंड रन में किसी शख्स की मौत या होने पर दो लाख रुपए मुआवजा या सरकार द्वारा निर्धारित उच्चतर राशि अदा की जाए। गंभीर तौर पर घायल के मामले में मुआवजा पचास हजार हो।
हिट एंड रन को सड़क दुर्घटनाओं के रूप में जाना जाता है। जहां चालक किसी वाहन या मनुष्य को टक्कर मार कर भाग जाता है। वह भी बिना पीड़ित की मदद या पुलिस को घटना की सूचना दिए। पहले भारतीय दंड संहिता के तहत हिट एंड रन कानून के तहत दो साल की जेल की सजा थी। ज्यादातार मामलों में आरोपी जमानत के साथ छूट जाते थे। देश में हर साल पचास हजार लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं, जिनमें से अकसर पीड़ित दुर्घटना स्थल पर मदद के अभाव में या देरी होने के चलते जान गंवा देते हैं।
अदलत ने ऐसे समय मुआवजा बढाने का निर्देश दिया है, जब सरकार पहले ही मुआवजा और सजा बढ़ाने संबंधी कानून ला चुकी है, जिसका देश भर वाहन चालकों ने जबरदस्त विरोध किया और वे हड़ताल पर चले गए। नए बदलाव के अनुसार सड़क दुर्घटना में टक्कर की जानकारी पुलिस को दिये बगैर भाग जाने पर दस साल की जेल व सात लाख रुपए का जुर्माना भरना होगा। ट्रक, बस व टैक्सी-ऑटो चालकों का कहना है कि वे यदि मौके पर रुकते हैं तो भीड़ उग्र हो जाती है और वे ड्राइवर की जान तक ले सकते हैं।
हालांकि यह भी सच है कि सड़क दुर्घटनाओं के आधे मामले मागरे में गढ्डों, अधबनी या रोड़ीदार सड़कों या मागरे में लगे यातायात रुकावटों के चलते होते हैं। इन सब पर भी सरकार को ध्यान देने की जरूरत है। साथ ही वाहनों के बीमा की तरह चालकों के लिए विशेष बीमा की व्यवस्था भी अनिवार्य की जाए।
चालकों की सुरक्षा की गारंटी भी ली जाए। यातायात नियमों का पालन करने के प्रति पैदल यात्री से लेकर दुपहिया व हल्के वाहन चालकों को भी जिम्मेदार बनाए जाने की जरूरत है। पैदल पथों, लाल बत्तियों या सड़क पार करने के नियमों को लेकर बरती जाने वाली प्रशासनिक लापरवाही के लिए विशेष व्यवस्था हो।
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