मुकाबला ही करना होगा
जम्मू-कश्मीर में लगातार हो रही आतंकी वारदात ने अब एक व्यवस्थित रूप ले लिया है। पुंछ के घने जंगल में घात लगाकर हुए ताजा हमले में देश ने अपने चार जवान खो दिए हैं। यह ट्रेंड बनता जा रहा है।
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राजौरी-पुंछ में पिछले आठ महीने में हमारे 19 सैन्यकर्मी अपनी जान गंवा चुके हैं। यह उन जिलों का हाल है, जिन्हें 2011 में ‘आतंकवाद से मुक्त’ घोषित किया गया था। फिर ऐसा क्या हो गया है कि राजौरी-पुंछ में आतंकवादी हिंसा लगभग हर महीने हो रही है।
इसके पीछे एक वजह, 2019 में संविधान से अनुच्छेद 370 का हटाया जाना है, जो कश्मीर को एक विशेष दर्जा दे देता था। तब से एक अंतराल के बाद आतंकी हिंसा एवं झड़पों में क्रमिक तेजी ही आई है और इसने व्यवस्थित रूप ले लिया है। पाकिस्तान पोषित आतंकवादी भारत को जताने की कोशिश कर रहे हैं कि चाहे वह जितना जोर लगा ले, वे लोग अनुच्छेद 370 को खारिज किया जाना एवं सुप्रीम कोर्ट से उसकी पुष्टि को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं।
यह जानते हुए भी कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, आतंकवादी और पाकिस्तान इतनी जद्दोजेहद के बाद भी इसे हासिल नहीं कर सके हैं। फिर भी वे व्यर्थ की हिंसा से बाज नहीं आते हैं। उनकी मंशा दुनिया में कश्मीर को विवादित एवं संघषर्रत मुद्दा साबित करने की है। जारी हिंसा की इस स्थायी वजह के बावजूद, दूसरा कारण है कि आतंकवादियों के नेतृत्व में बिखराव आना और राजौरी-पुंछ को विभाजित करने वाली सीमा पर सघन जंगल और वहां पहाड़ों का छोटा होना।
यहां आतंकवादी आसानी से पॉजिशन ले लेते हैं, फौज को निशाना बना कर चंपत हो जाते हैं। सुरक्षा बल के लिए ये हालात निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण और दुरूह हैं, जिनमें लाख हिफाजत बरतते हुए भी जवानों की जान जाने की स्थिति आतंकियों की तुलना में अधिक आसान रहती है।
यहां सुरक्षा सुनिश्चित करने की प्रक्रिया को अपनी तरफ से बदलने की उन्हें बहुत सुविधा नहीं है। तभी तो 2021 के बाद से हमारे 33 जवानों की जान गई हैं तो महज 12 आतंकी जवाबी कार्रवाई में मारे गए हैं। ये आंकड़े महीने दर महीने भयावह होते जा रहे हैं।
2021 से लेकर 30 मई, 2023 तक आतंकवाद की 251 घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें जम्मू संभाग में 15 और घाटी में 236 वारदात हुई हैं। कहा जा रहा है कि राजौरी-पुंछ में 20-25 आतंकवादी सक्रिय हैं। इन्हें दबोचा नहीं गया तो ये हमारे जवानों के जीवन पर खतरा बने रहेंगे।
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