पद की पटखनी
खिलाड़ियों के यौन शोषण के आरोपों से घिरे कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के करीबी संजय सिंह महासंघ के नये अध्यक्ष चुने गए जिसके तुरंत बाद ओलंपिक कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक ने ऐलान कर दिया कि अब कुश्ती प्रतिस्पर्धा नहीं करेंगी।
पद की पटखनी |
ओलंपियन बजरंग पूनिया, विनेश फोगट व साक्षी के नेतृत्व में लंबे समय तक बृजभूषण के खिलाफ आंदोलन हुआ था जिसके बाद एफआईआर दर्ज की गई थी।
साक्षी ने भावुक होकर अपने जूते मेज पर रख दिए और रुंधे गले से कहा हम चालीस दिनों तक सड़क पर सोए। सिंह का बिजनेस सहयोगी और करीबी चुनाव जीत गया है तो मैं कुश्ती छोड़ दूंगी। संजय सिंह ने अपनी जीत के बाद कहा कि जिनको कुश्ती करनी है, वे कर रहे हैं, जो राजनीति करना चाहते हैं, राजनीति करें।
मलिक का कहना था कि हमने महिला अध्यक्ष की मांग की थी ताकि महिला खिलाड़ियों उत्पीड़न न हो। यह मामला यौन शोषण तक सीमित नहीं है। इसमें खेलों के पीछे की राजनीति भी शामिल है। संजय सिंह बनारस से हैं, और 2010 से कुश्ती महासंघ से जुड़े हैं।
खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा था कि बृजभूषण का करीबी कोई भी व्यक्ति फेडरेशन के बड़े पद पर नहीं आएगा। मगर ऐसा नहीं हुआ।
महिलाओं की सुरक्षा व अस्मिता को ठेंगे पर रखने वाले समाज को समझने के लिए इतना जानना काफी है कि नवनिर्वाचित अध्यक्ष के खिलाफ चुनाव लड़ीं पूर्व पहलवान अनीता श्योराण को मात्र 7 वोट मिले। साक्षी ही नहीं, तमाम अन्य पहलवानों के लिए यह गहरा झटका है। जो बच्चियां तमाम संघर्ष से जूझते हुए देश का नाम रोशन करती हैं, उनके साथ परिवार व प्रशिक्षकों का बड़ा संबल होता है। बावजूद इसके वे सरकारी व्यवस्था व खेलों में होने वाली राजनीति की शिकार होती रहती हैं।
हैरत नहीं है कि पहलवानों के यौन शोषण के खिलाफ शोर-शराबे के बावजूद ढेरों नामदार खिलाड़ियों ने चुप्पी साधे रखी। साक्षी उम्दा खिलाड़ी हैं, किसान की इस बेटी के संघर्ष व प्रतिभा के प्रति इस तरह का रवैया उचित नहीं ठहराया जा सकता। मगर राजनीतिक लाभ के लोभ में दुनिया में देश का नाम रोशन करने वाले प्रतिभावान खिलाड़ियों के प्रति हमें इस रवैये को बदलना होगा।
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