जनता के जीवन से खिलवाड़
केजरीवाल सरकार की दिक्कतें फिर बढ़ती नजर आ रही हैं। दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने दिल्ली सरकार के अस्पतालों के लिए घटिया दवाओं की कथित खरीद-आपूर्ति की सीबीआई से जांच की सिफारिश की है।
जनता के जीवन से खिलवाड़ |
सक्सेना ने कहा है कि चिंता की बात है कि ये दवाएं लाखों लोगों को दी जा रही हैं। भारी बजटीय संसाधनों को खर्च कर खरीदी गई ये दवाएं सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा हैं। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने इस पर स्पष्टीकरण दिया कि कुछ नमूने परीक्षण के लिए भेजे गए थे जिनमें कुछेक मानकों पर खरे नहीं उतरे।
वहीं दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने इसे दिल्ली में हो रहे विकास कार्यों को रोकने की कोशिश और काम में बाधा डालने का तरीका बताते हुए प्रतिरोध व्यक्त किया। विजिलेंस विभाग ने भी सिफारिश की है कि चूंकि दस नमूने फेल हैं, इसलिए सैंपलिंग का दायरा बढ़ाना चाहिए। यह सच है कि गली के मुहाने बने मोहल्ला क्लीनिकों और इनके माध्यम से मिल रही दवाओं ने दिल्ली की जनता को बड़ा सहारा दिया है। दिल्ली में सवा पांच सौ से अधिक मोहल्ला क्लीनिक काम कर रहे हैं।
स्वास्थ्यगत सुविधाओं की बढ़ती कीमतों और बड़े सरकारी अस्पतालों की भीड़-भाड़ से परेशान जनता के लिए यह व्यवस्था केजरीवाल सरकार की सफलता के तौर पर प्रचारित की जा रही है। मगर यदि यहां मिलने वाली मुफ्त दवाओं के गुणवत्ता मानकों में असफल होने पर समय रहते पाबंदी न लगाई गई तो गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। घटिया दवाओं या दवा की आड़ में दी जा रही गोलियों से मरीजों को लाभ की बजाय यदि अधिक नुकसान होता है, या मृत्यु हो जाती है, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा।
दवा कंपनियों पर पहले भी कई दफा गुणवत्ता को लेकर बरती जाने वाली ढिलाई सामने आती रही है। इस पर केंद्र सरकार को राजनीति करने की बजाय सख्त कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। लापरवाह दवा कंपनियों की देश भर में सप्लाई रोकने के प्रावधान होने चाहिए, उन पर वक्ती पाबंदी लगाई जाए और विपक्ष शासित प्रदेशों के अलावा अन्य स्थानों पर बिकने वाली दवाओं की भी समय-समय पर जांच करानी चाहिए। जनता की जान और विास से खिलवाड़ या जनता द्वारा चुनी सरकार की फजीहत करने की बजाय स्पष्ट नीति बने और उसे कड़ाई से लागू करने की कोशिशें होनी चाहिए।
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