कबाड़ से रोजगार सृजन
यदि राष्ट्रीय वाहन कबाड़ नीति को अच्छे से क्रियान्वित किया जाए तो वाहन को कबाड़ करने का क्षेत्र रोजगार सृजन की संभावनाओं वाले बड़े क्षेत्र के रूप में उभर सकता है।
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इस नीति के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए एक हजार केंद्रों और चार सौ फिटनेस जांच केंद्रों की जरूरत है, जिसे पूरा करने के लिए सरकार जुटी हुई है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सोमवार को ‘डजीईएलवी’ की शुरुआत करते हुए यह बात कही।
‘डिजीईएलवी’ ऐसा मंच है जो वाहनों की जीवन उपयोगिता अवधि खत्म होने वाला प्रमाणपत्र जमा करेगा। पुराना वाहन जमा करने का प्रमाणपत्र रखने वाला कोई भी व्यक्ति इस मंच के जरिए अपने प्रमाणपत्र को बेच सकता है। यह प्रमाणपत्र उस समय जारी किया जाता है, जब कोई उपयोगकर्ता आरवीएसएफ में अपने वाहन को कबाड़ में बदलने के लिए जमा करता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अगस्त, 2021 में राष्ट्रीय वाहन कबाड़ नीति की घोषणा की थी। नीति के क्रियान्वयन के लिए सरकार अब तक देश भर में 85 वाहन कबाड़ केंद्रों को मंजूरी दे चुकी है। पुराने और कबाड़ करार दिए जा चुके वाहनों को चरणबद्ध तरीके से सड़कसे हटाने से उम्मीद है कि ‘सकरुलर’ अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
सर्कुलर अर्थव्यवस्था संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग सुनिश्चित करती है, और इससे भारी संख्या में नौकरियों का सृजन होता है। ‘सकरुलर’ अर्थव्यवस्था सभी संबद्ध पक्षों के लिए फायदेमंद साबित होती है। अच्छे से क्रियान्वित हो सकी तो भारत दक्षिण एशिया में वाहनों को कबाड़ में बदलने के बड़े केंद्र के रूप में उभर सकता है।
उस सूरत में भारत को घरेलू ही नहीं, बल्कि विदेश से भी वाहनों को कबाड़ करने के ऑर्डर के रूप में खासे कारोबारी अवसर प्राप्त हो सकेंगे। अलबत्ता, इस प्रकार की नीति की सफलता सरकार के नीतिगत निर्णयों पर निर्भर करती है। सरकार ई-वाहनों के उपयोग को बढ़ावा दे रही है।
लोगों को समझाने की कोशिश में है कि पंद्रह वर्षो के अनुमानित जीवन काल में पेट्रोल, डीजल, सीएनजी वाहनों की तुलना में ई-वाहनों की स्वामित्व लागत 15-20 फीसद कम होती है। ई-वाहनों की आपूर्ति में विलंब और चार्जिग स्टेशनों की कमी की समस्या दूर करने में जुटी है, ताकि वाहन कबाड़ नीति सफल हो सके।
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