मर्यादा में हो प्रतिरोध
संसद भवन की सुरक्षा के मसले पर देश का सियासी तापमान काफी गर्म हो उठा है। बृहस्पतिवार को विपक्षी दलों के सांसदों ने लोक सभा और राज्य सभा, दोनों सदनों में जबरदस्त हंगामा किया।
मर्यादा में हो प्रतिरोध |
लोक सभा के अध्यक्ष ओम बिरला ने सांसदों को आृश्वासन भी दिया कि दोषियों के विरुद्ध समुचित कार्रवाई की जाएगी और संसद भवन की सुरक्षा को और अधिक पुख्ता किया जाएगा लेकिन विपक्ष गृह मंत्री के बयान की मांग पर अड़ा रहा। सत्ता पक्ष विपक्ष को मनाने के लिए हर संभव कोशिश करता रहा। अंतत: 14 विपक्षी सांसदों को शीतकालीन सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित कर दिया गया।
इस बात से सभी सहमत हैं कि सांसदों की सुरक्षा का यह मसला निश्चित तौर पर बेहद गंभीर था और सत्ता पक्ष भी इस मसले को लेकर बहुत चिंतित था लेकिन विपक्ष कोई ठोस सुझाव देने की बजाय केवल सरकार को घेरना चाहता था। होना तो यह चाहिए था कि सत्ता पक्ष और विपक्ष संयुक्त बैठक करके संपूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपाय पर विचार विमर्श करते और कोई ऐसा तंत्र विकसित करते कि भविष्य में दोबारा ऐसा नहीं होता। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
कुछ विपक्षी दलों के सांसदों ने उपद्रव मचाने वालों के इरादों का समर्थन भी किया। हालांकि यह भी तथ्य है कि अब तक की जांच में ऐसा कुछ सामने नहीं आया है जिससे पकड़े गए लोगों का संबंध किसी देश विरोधी या आतंकवादी संगठन से जोड़ा जा सके। फिर भी, संसद भवन लोकतंत्र का मंदिर है जिसमें किसी भी तरह के प्रतिरोध की आवाज लोकतांत्रिक नियमों और मर्यादाओं का पालन करते हुए उठाई जा सकती है।
लेकिन संसद में विपक्षी नेता हर मुद्दे पर लोकतांत्रिक मर्यादाओं का उल्लंघन करते हुए हंगामा बरपाते रहते हैं। इसीलिए मोदी सरकार के इस कार्यकाल में करीब 71 बार हंगामा हुआ और इसके बाद सांसदों का निलंबन हुआ। यह बताता है कि विपक्ष किसी सार्थक मुद्दे पर विचार विमर्श नहीं करना चाहता। विपक्षी सांसदों को इस विषय पर गंभीरता से विमर्श करना चाहिए कि संसद भवन की सुरक्षा से सत्ता पक्ष के सांसद भी जुड़े हुए हैं। ऐसा नहीं है कि संसद में केवल विपक्ष के सांसद ही बैठते हैं।
सत्ता पक्ष के सांसद ही नहीं प्रधानमंत्री और पूरी मंत्रि परिषद संसद में मौजूद रहते हैं। इस संदर्भ में विपक्ष को गंभीरता से विचार करना चाहिए और सदन में अपनी आवाज मर्यादाओं का पालन करते हुए लोकतांत्रिक तरीके से उठानी चाहिए।
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