फिर लौटा ‘पेगासस’
एप्पल की तरफ से आइ-फोन उपयोगकर्ताओं को सोमवार की रात जारी चेतावनी से सियासत में खलबली मच गई है। इसे ‘गंभीरता से लेने’ का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि ‘राज्य प्रायोजित हैकर्स (यानी सरकार) दूर से इस फोन में छेड़छाड़ करने की कोशिश कर रहे हैं’।
फिर लौटा पेगासस |
ये चेतावनी जिन-जिन के मोबाइल पर आई, वे सब के सब पत्रकार, स्वयंसेवी संगठनों एवं विभिन्न दलों के विपक्षी नेता हैं और जाहिराना तौर पर वे केंद्र सरकार की कई सारी नीतियों की मुखालफत करते रहे हैं। इस बवाल ने इजरायली स्पाईवेयर पेगासस की याद ताजा कर दी। इसलिए एप्पल के यह नहीं बताने पर भी ‘कौन सी सरकार या एजेंसी इस निगरानी में लगी’ है, कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत इन उपयोगकत्र्ताओं ने सीधे नरेन्द्र मोदी सरकार पर निशाना साधा है।
इससे बैकफुट पर आई सरकार ने जांच की घोषणा की और इसमें एप्पल से भी सहयोग मांगा है। उसे गड़बड़ी पकड़ने वाली तकनीक का खुलासा करने को कहा गया है। पर कंपनी राजी नहीं है, क्योंकि ‘राज्य प्रायोजित हैकर्स संसाधन से धनी हैं, वे उसका तुरंत कोई तोड़ ढूंढ़ लेंगे, जिससे वह आगे अपने ग्राहकों को उत्पाद के फूलप्रूफ होने की गारंटी नहीं दे सकेगी।’ इसका मतलब है कि जितना उसने बताया है, उससे कहीं अधिक जानती है, पर वह बताएगी नहीं, जब तक दबाव न डाला जाए।
और लोगों का मानना है कि सरकार यह काम शायद ही करेगी। तो इस तरह देश पेगासस के समय देखे गए गतिरोध पर लौट आया है। जहां सरकार ने स्पाइवेयर के उपयोग की न तो पुष्टि की और न ही इससे इनकार किया। उसने सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति (रि.) रवीन्द्रन जांच आयोग के साथ सहयोग करने के निर्देश की भी अवहेलना कर दी। ऐसे में एप्पल की ताजा चेतावनी अवैध निगरानी के साधन के रूप में स्पाइवेयर का उपयोग अभी भी जारी होने का संदेह पैदा करती है।
पर राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ स्पाइवेयर का उपयोग न केवल किसी व्यक्ति की निजता के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि चुनावी प्रक्रिया के व्यवधान के समान है। तथ्य है कि जनता का पैसा स्पाइवेयर प्राप्त करने में खर्च किया जाता है, जिसे सत्तारूढ़ दल के हितों को आगे बढ़ाने के लिए तैनात किया जाता है। यह इसे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत भी अपराध बनाता है। लिहाजा, जांच मुकम्मल हो और इसकी जवाबदेही तय हो।
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