पारदर्शिता चाहिए

Last Updated 01 Nov 2023 01:48:01 PM IST

अंतत: सर्वोच्च न्यायालय में चुनावी बांड योजना मामले की सोमवार से सुनवाई शुरू हो गई। यह आज भी होगी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ मुख्यत: दो मुद्दों पर विचार कर रही है।


पारदर्शिता चाहिए

राजनीतिक दलों को मिलने वाले अज्ञात चंदे की वैधानिकता, और दूसरे यह कि इसकी जानकारी नागरिकों से छिपाना सूचना के उनके अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। ये दोनों बिंदु संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार), अनु.19 (स्वतंत्रता का अधिकार) और अनु. 21 (जीवन जीने और स्वतंत्रता का अधिकार ) के उल्लंघनों से संबंधित हैं। ये अनुच्छेद इतने अहम हैं कि संविधान में ‘सुनहले तिकोन’ के रूप में समादृत हैं। इसके तहत सुनवाई देश को उम्मीद बंधाती है।

हालांकि केंद्र की दलील है कि किसी पार्टी को कौन कितना चंदा देता है, यह जानने का हक अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत नागरिकों को नहीं है। यह भी कि चुनावी बांड योजना स्वच्छ धन में योगदान करती है। यह अजीब दलील है। राजनीतिक दलों को मिलने वाला दान मंदिर की पेटी में दिया गया गुप्त दान नहीं है। भले ही ये बांड स्टेट बैंक से खरीद कर दिए जाएं, जिनमें दानदाता का रिकार्ड हो और इसे भारत का ही कोई नागरिक या समूह खरीदे।

इस गुप्त दान से केंद्र तथा राज्य चलाने वाली पार्टयिां सरकार में आती हैं, जिन पर वह आगे मेहरबान हो सकती हैं। ऐसे मामले 2018 से ही उजागर होने लगे थे। जब बैलेंस सीट में दरिद्र लगने वाली कुछेक दानदाता कंपनियां करोड़ों-करोड़ों के बांड खरीद रही हैं। इनके दिवालिया होने पर सवाल पूछे जाने के बजाए ये कंपनियां सरकार से अपना कर्जा माफ करवा ले रही हैं। याचियों ने रिकार्ड पर कई नाम गिनाए हैं।

उनका एक डर यह भी है कि अगर दानदाताओं का खुलासा न हुआ, तो भले ही राजनीतिक पार्टियां चंदे की ऑडिट रिपोर्ट चुनाव आयोग को पेश करती हों, दान देने में वे लोग भी शामिल हो सकते हैं, जो अवैध गतिविधियों में लिप्त हैं। फिर जब सरकार वित्तीय भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रही है, जो बेहद सराहनीय है पर उसकी प्रक्रियागत खुलेपन की यह कोशिश तब बेकार हो जाती है, जब वह दान के स्रोतों को छिपाकर रखना चाहती है। याचियों की अपेक्षा जायज है कि सरकार चुनाव आयोग और नागरिक संगठन के आकलन से सहमत हो और दानदाताओं का खुलासा करे ताकि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे।



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