जुड़ाव का शक्ति-संकल्प
विजयदशमी या दशहरा राजनीतिकों के लिए कुछ कर्मकांडों के निर्वहन के साथ ऊर्जस्वित उद्बोधन का एक शक्तिमय अवसर भी होता है।
जुड़ाव का शक्ति-संकल्प |
इसका प्रभाव भी अचूक होता है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दिए भाषण के मूलत: तीन आयाम हैं-परंपरा, उसकी पीठ पर लदा वर्तमान, और भविष्य। हम हर साल सद्विचार और पुरु षार्थ के प्रतीक राम की रावण जैसी बुराई पर भारी जीत के उल्लास में उसका पुतला दहन करते हैं।
इस तरह, अपने कर्त्तव्यों की इति मान लेते हैं, और रोजमर्रा की जिंदगी में जाने-अनजाने अधिकतर बुराइयों के साथ हो जाते हैं। परंपरा से कोई सबक नहीं लेते। प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि समापन से ही अपनी अच्छाइयों की क्षमता के लगातार विकास के संकल्प का समारंभ कीजिए। यह देशभक्ति है। वे देशवासियों से 10 संकल्प लेने का आह्वान करते हैं-पानी बचाव से लेकर कम से कम एक गरीब परिवार का समर्थन करने तक। यह वर्तमान का सिरा है।
यहां वे किसी भी जाति और क्षेत्र के नाम पर मानसिकता को, संबंध को, समाज को और देश की समरसता को (राजनीतिक) स्वार्थपूत्तर्ि में बांटने की कोशिश में न शामिल होने की बात कहते हैं। यह देश के नेता की एक पैगम्बरी लालसा हो सकती है, जिसे यह कहते रहना चाहिए।
पर सच तो यह है कि देश की राजनीति जाति, धर्म और क्षेत्र में बंटी हुई है, और वही इसको रोजाना खाद-पानी भी देती है, जिसकी फसल चुनाव में काटती है। दुर्भाग्य से यह दलनिरपेक्ष स्थिति है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के टिकट बंटवारे में जन आकांक्षा के नाम पर जाति-क्षेत्र के समीकरणों का निष्ठापूर्ण निर्वाह ही देखा गया है।
आगे भी यही होना है। इसलिए कि किसी भी पार्टी को इसमें खामख्वाह आदर्श पथप्रदर्शक होकर चुनावी गणित में घटाव होना मंजूर नहीं है। प्रधानमंत्री की इस चिंता के पीछे जाति सर्वेक्षण है, जिसने उम्मीदवार-चयन की स्थापित संरचना को जोर से हिला दिया है। केंद्र में गरीब को लाना उनका एक रणनीतिक तरकश है।
इसका इस्तेमाल वे विरोधी पक्ष को उनकी तंग सोच बताने के लिए करते हैं। चीन और पाकिस्तान का बिना उल्लेख किए भारत की शक्ति-पूजा, उसकी रक्षा-सामथ्र्य और इसके प्रयोग की मर्यादा के बारे में बता दिया गया है। हमारी अमोघ आत्म-रक्षा शक्ति में अवैध कब्जे की लिप्सा नहीं है, उसमें संप्रभुता का आदर भाव भी है। उसकी ताकत सीमा की हिफाजत जानती है।
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