नया संसद भवन, नई शुरुआत
निस्संदेह उन्नीस सितम्बर का दिन भारतीय संसदीय इतिहास का एक अविस्मरणीय दिन था। पुराने संसद भवन से प्रस्थान और नए संसद भवन में प्रवेश का यह दिन अनेक अप्रतिम घटनाओं की वजह से याद किया जाएगा।
नया संसद भवन |
संसद के निकट इतिहास में कोई ऐसा दिन याद नहीं आता जब पक्ष और विपक्ष के सांसद संयुक्त रूप से बैठे हों और मंच पर बैठे पक्ष और विपक्ष के प्रतिनिधि नेताओं को बिना किसी बाधा और व्यवधान के धैर्य से सुना जा रहा हो। नए संसद भवन में प्रवेश से पूर्व पुराने संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में आयोजित अंतिम बैठक में दोनों ही ओर के प्रतिनिधि नेताओं ने मर्यादित, संतुलित और संयमित भाषा में भारत के संसदीय इतिहास का स्मरण किया। इस इतिहास के निर्माताओं का सम्मानपूर्वक उल्लेख किया।
उन ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र किया जो संसदीय परंपराओं और परिपाटियों की निर्मित में प्रेरक और अनुकरणीय बनीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में कहा कि भारतीय संसद में अब तक 41 राष्ट्राध्यक्षों के संबोधन हुए और 86 बार राष्ट्रपति के संबोधन हुए। गर्व और गौरव के इस रेखांकन में कोई भी वक्रोक्ति नहीं थी। कोई भी कटाक्ष नहीं था। यह विशुद्ध भारतीय संसदीय परंपरा का गौरव गान था। इसमें अतीत की उपलब्धियों के आलोक में सुनहरे भविष्य का स्वप्न समाहित था।
इसमें इस समय के निरंतर शक्तिशाली और प्रभावशाली होते हुए भारत का चितण्रथा तो भविष्य के शक्तिशाली भारत के निर्माण के संकल्प निहित थे। पुराने संसद भवन से नए संसद भवन की ओर प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों और सांसदों की लघु पदयात्रा मानो वर्तमान भारत से भविष्य के भारत की यात्रा थी। जिसका सांकेतिक अर्थ था कि भारतीय लोकतंत्र ने अपने विकास, अपनी शक्ति और क्षमता का एक कालखंड पूरा कर लिया है और नए संसद भवन से उस दूसरे कालखंड की शुरुआत होने जा रही है जो आजादी के शताब्दी वर्ष यानी 2047 तक भारत को विश्व की तीन प्रमुख शक्तियों के बीच स्थापित करेगा।
नए संसद भवन में पहले दिन और पहले सत्र की कार्यवाही के दौरान विधायिका में महिला आरक्षण संबंधी ‘नारी शक्ति वंदन’ नामक जो विधेयक प्रस्तुत किया गया है उसका पारित होना तय है और इस विधेयक ने नए संसद भवन की कार्यवाही को ऐतिहासिकता प्रदान कर दी है। उम्मीद है कि नए संसद भवन में राजनेता नई तरह के मर्यादित और संयमित आचरण का परिचय देंगे।
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