सांप्रदायिक माहौल क्यों खड़ा किया जाता है
रामनवमी (Ramnavami) के अवसर पर निकली शोभायात्रा के दौरान देश के कई हिस्सों में दो समुदायों के बीच हुई हिंसक घटनाएं न केवल चिंता की बात है बल्कि अहम सवाल खड़ा करती हैं कि हर साल इसी अवसर पर सांप्रदायिक माहौल क्यों खड़ा किया जाता है।
![]() सामाजिक सद्भाव के लिए |
वास्तविकता यह है कि अगर पुलिस और प्रशासन को कड़े निर्देश जारी किए जाएं तो किसी भी धार्मिक शोभायात्रा में हिंसा (violence in religious procession) में रोका जा सकता है। यह जांचा और परखा हुआ तथ्य है। इसलिए बड़ा सवाल यह भी है कि राज्य सरकारें और स्थानीय पुलिस-प्रशासन पहले से सतर्क क्यों नहीं रहता।
पश्चिम बंगाल (West Bengal) से लेकर गुजरात (Gujarat) तक दंगाइयों ने कहीं पथराव किया और कहीं आगजनी की घटना हुई। प. बंगाल के हावड़ा जिले में स्थित शिबपुर में हिंसा (Shibpur violence) और आगजनी की बड़ी घटनाएं हुई। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने दंगाइयों को चेताया भी था। साफ है कि उन्हें राज्य में हिंसा होने की आशंका थी। इसलिए सवाल उठना स्वाभाविक है कि उन्होंने दंगा रोकने के लिए पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किया। इसी तरह बिहार (Bihar) के सासाराम (Sasaram), बिहारशरीफ (Biharsharif) और नालंदा में हिंसा (violence in Nalanda), आगजनी और लूटपाट की घटनाएं हुई।
अभी भी प. बंगाल और बिहार में तनाव (tension in bihar) बना हुआ है। सासाराम और नालंदा में धारा 144 लागू (Section 144 applied in Sasaram and Nalanda) है। इंटरनेट बंद है। बावजूद इसके जन-जीवन पूरी तरह सामान्य नहीं हुआ है। इसका सीधा अर्थ है कि समाज में नफरत और अविश्वास की जड़ें काफी गहरी हैं। भारत के सामाजिक ताने-बाने में धार्मिक जुलूसों का बहुत महत्त्व है।
हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और मुस्लिम सभी समुदायों के जुलूस प्राय: निकलते रहते हैं। इस दौरान समाज विरोधी तत्व गड़बड़ी और अराजकता फैलाने के लिए ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं। इसीलिए पुलिस और प्रशासन को पहले से ही सतर्क हो जाना चाहिए और सुरक्षा के कड़े इंतजाम करने चाहिए और प्रशासन को पूरा अधिकार है कि धार्मिक जुलूस का मार्ग निर्धारित करे।
सामाजिक संगठनों को इस मामले में किसी भी तरह की छूट नहीं दी जानी चाहिए। प. बंगाल और बिहार दोनों ऐसे राज्य हैं जहां की सरकारें भाजपा विरोधी हैं। जाहिर है दोनों ओर से आरोप और प्रत्यारोप का खेल शुरू हो चुका है।
2024 के आम चुनाव के मद्देनजर सांप्रदायिक हिंसा की आग में राजनीतिक रोटियां भी खूब सेंकी जाएंगी। इसलिए राज्य सरकारों के साथ ही पुलिस-प्रशासन का दायित्व है कि शांति और सुरक्षा कायम करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं।
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