सुप्रीम फैसले
इस सप्ताह देश की शीर्ष अदालत ने दो ऐसे फैसले दिए हैं जो आजाद भारत की न्यायिक व्यवस्था में मील के पत्थर साबित होंगे।
सुप्रीम फैसले |
पहला मामला विदेशी आक्रांताओं के नाम पर रखे गए सड़कों और शहरों के रखे गए नामों को परिवर्तित करने और अनेक ख्याति-स्थानों के वर्तमान नाम के स्थान पर प्राचीन मूल नामों को रखने वाली याचिका से संबंधित था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को निरस्त करते हुए जो टिप्पणी की है वह सभी के लिए गौर करने योग्य है।
दायर की गई याचिका का आशय यह था कि भारत में अनेक ऐसे नगर, मार्ग और स्थान हैं जिनके नाम पर उनके शासनकाल में विदेशी आक्रांताओं, लुटेरों, हमलावरों द्वारा स्थापित कर लिए गए। कई महत्त्वपूर्ण स्थानों के प्राचीन नाम बदलकर नये नाम रख दिए गए। जैसे कि प्रयागराज के नाम को इलाहाबाद रखा गया। याचिका का आशय यह भी था कि बाहर से आए आक्रांता मुस्लिम शासकों के शासनकाल में रखे गए बहुत से नाम भारत भर में मिल जाएंगे।
दिल्ली में औरंगजेब, अकबर आदि के नाम पर सड़क आदि हैं, परंतु पांडवों के नाम पर एक भी नहीं। इसलिए यह सुनिश्चित किया जाए कि जिस तरह से इलाहाबाद का नाम फिर से प्रयागराज किया गया है, उसी तरह से अन्य स्थानों का नाम भी या तो पूर्व नाम से अभिहित किए जाएं अथवा उन्हें भारतीयता के अनुसार नये नाम दिए जाएं। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता उन लोगों की इबारत का अनुसरण कर रहा है जो इतिहास को चुनिंदा तरीके से प्रस्तुत करके समाज में विघटन पैदा करने का प्रयास करते हैं।
आधुनिक युग अतीत का बंदी होकर नहीं रह सकता। इसलिए इस तरह की याचिकाओं से समाज को तोड़ने के प्रयास नहीं होने चाहिए। इसी तरह एक अन्य मामले में शीर्ष अदालत के 5 जजों की संविधान पीठ ने अहम फैसला देते हुए कहा है कि चुनाव आयोग की निष्पक्षता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को नियुक्त करने वाली समिति में प्रधानमंत्री, लोक सभा में नेता विपक्ष और देश के प्रधान न्यायाधीश होंगे। पिछले कुछ वर्षो से विपक्ष आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता रहा है।
विपक्ष ने शीर्ष अदालत के फैसले का स्वागत किया है। फैसला ऐसे समय आया है जब अदालत को कॉलेजियम के मसले पर राज्य सभा के सभापति और कानून मंत्री की आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है।
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