लोकतंत्र के लिए दुखद

Last Updated 01 Mar 2023 01:50:29 PM IST

आम आदमी पार्टी और उसकी दिल्ली सरकार में द्वितीय स्थान रखने वाले मनीष सिसोदिया की भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तारी और फिर उन्हें अदालत द्वारा पांच दिनों की सीबीआई की हिरासत में भेजे जाने की घटना ईमानदारी को अपना प्रमुख राजनीतिक हथियार बताने वाली इस पार्टी के लिए ही नहीं बल्कि देश की समूची लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए दुखद है।


लोकतंत्र के लिए दुखद

राजनीति छवि के आधार पर चलती है और कोई राजनीतिक पार्टी जनता के बीच अपनी कैसी छवि बनाती है, उसके आधार पर उसे जनसमर्थन मिलता है। आम आदमी पार्टी ने अपनी ईमानदार छवि को ही अपनी राजनीति का आधार बनाया है।

आबकारी नीति प्रकरण ने उसकी इस छवि पर खरोंच लगाई है। पार्टी ने सिसोदिया की गिरफ्तारी को ईडी और सीबीआई के माध्यम से केंद्र सरकार की बदले की कार्रवाई बताया और उसके लिए सीधे-सीधे प्रधानमंत्री मोदी को जिम्मेदार ठहराया है। लेकिन प्रधानमंत्री पर प्रति आरोप लगाने से पार्टी का संकट खत्म नहीं होगा। सीबीआई, अदालत और अपना काम करने वाला कानून आगे इसे किस परिणाम तक पहुंचाएंगे इसे तो भविष्य बताएगा, लेकिन हाल-फिलहाल इस घटना ने आम आदमी पार्टी की शुचिता और पारदर्शिता की घोषित राजनीतिक छवि को एक गहरा झटका तो लगा ही दिया है।

ईमानदारी और जनहित की राजनीति करने और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने के वादे पर सत्ता में आई इस पार्टी को अपनी आहत छवि के पुनर्निर्माण के लिए सरकार पर आरोप लगाने के अतिरिक्त और भी कुछ करना पड़ेगा। उसे भविष्य में नीतियों और नीतियों के क्रियान्वयन के संबंध में अधिक सावधान रहना पड़ेगा। आबकारी नीति जैसे मामले में पूरी साफगोई के साथ जनता के सामने आना होगा।

अगर आम आदमी पार्टी की सरकार ने अपनी आबकारी नीति को क्रियान्वयन से पहले पूरी पारदर्शिता के साथ सार्वजनिक चर्चा के लिए प्रस्तुत किया होता, जनता की बहस से निकले परिणाम का आकलन किया होता तो शायद उसके सामने यह संकट खड़ा नहीं होता जो आगामी आम चुनावों से पहले खड़ा हो गया है। आम आदमी पार्टी को लोग कांग्रेस पार्टी के विकल्प के रूप में भी देखने लगे हैं और उससे अधिक अपेक्षा भी करने लगे हैं। इसलिए आम आदमी पार्टी को आत्ममंथन करना चाहिए और प्रति आरोपों की सीमा को भी समझना चाहिए।



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