योजना का विरोध खारिज
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सशस्र बलों में भर्ती की ‘अग्निपथ योजना’ को राष्ट्रीय हित में और सशस्र बलों को बेहतर बनाने की योजना करार देते हुए इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं को सोमवार को खारिज कर दिया।
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मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने सशस्र बलों में भर्ती से संबंधित कुछ विज्ञापनों के खिलाफ दायर याचिकाओं को भी खारिज कर दिया। स्पष्ट किया कि ऐसे उम्मीदवारों को भर्ती का अधिकार नहीं है। पीठ ने पिछले साल 15 दिसम्बर को इन याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। गौरतलब है कि पिछले साल 14 जून को केंद्र सरकार ने अग्निपथ योजना शुरू की थी। इसके तहत सशस्र बलों में युवाओं की भर्ती के लिए नियम निर्धारित किए गए हैं।
इन नियमों के अनुसार साढ़े 17 से 21 वर्ष की उम्र के लोग इस योजना के तहत आवेदन करने के लिए पात्र होंगे। उन्हें चार साल के लिए सशस्र बलों में भर्ती किया जाएगा। चार साल के बाद इनमें से 25 प्रतिशत को नियमित सेवा का मौका दिया जाएगा। बाकी को एकमुश्त तय धनराशि देकर निवृत्त कर दिया जाएगा। योजना की घोषणा होते ही देश के विभिन्न भागों में व्यापक हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए थे। ट्रेनों को रोका गया और कई जगहों पर आगजनी भी हुई।
युवाओं में इस बात को लेकर असंतोष था कि सेना में भर्ती के लिए वे काफी तैयारी करते हैं, लेकिन सेवा काल को इतना अल्प कर दिया गया तो उन्हें भविष्य में ‘अनिश्चितता’ का सामना करना पड़ सकता है। विपक्षी दलों और पूर्व सैनिकों ने भी नई भर्ती योजना के खिलाफ आवाज उठाई थी। दरसअल, कोई भी बदलाव विरोध का कारण बनता ही है। सहसा बदलाव की मन:स्थिति जनमानस को कभी भी मुफीद नहीं लगती है।
इसके लिए जरूरी है कि चर्चा करके लोगों की जिज्ञासाओं का समाधान किया जाए और शंकाओं का निवारण किया जाए। लेकिन इस दृष्टि से सरकार ने कुछ नहीं किया। भले ही अग्निवीर योजना को लेकर उसकी तैयारी और होमवर्क पूरा हो लेकिन आम जन को मानसिक रूप से तैयार किए बिना इसकी घोषणा किए जाने से एकदम से असंतोष भड़क गया। तमाम याचिकाएं अदालत में दायर कर दी गई जिन पर अब फैसला आ गया है। योजना को लेकर अब कोई संदेह नहीं रहना चाहिए। यह योजना बड़े नीतिगत बदलाव के तहत लाई गई थी, जिसके प्रति उठे स्वाभाविक संशय फैसले के बाद समाप्त हो जाने चाहिए।
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