उत्तर प्रदेश : बदलाव की राह पर

Last Updated 23 Dec 2023 01:37:47 PM IST

पिछली सदी में अस्सी के दशक में अर्थशास्त्री आशीष बोस ने जिस उत्तर प्रदेश को बीमारू यानी बीमार राज्य कहा था, उस उत्तर प्रदेश की सूरत किस तरह बदल रही है, इसे समझने के लिए विश्व बैंक के एक बयान की ओर ध्यान देना होगा..विश्व बैंक ने यह वक्तव्य एक प्रतिनिधिमंडल की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के बाद दिया था।


उत्तर प्रदेश : बदलाव की राह पर

सौ सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल की यह भेंट कुछ ही दिनों पहले योगी आदित्यनाथ से हुई थी, जिसकी अगुआई विश्व बैंक ने की थी। इस प्रतिनिधिमंडल में दुनिया के ताकतवर देशों के प्रतिनिधि भी शामिल थे। इस पर देश के साथ ही सात समंदर पार के कारोबारी समूहों की भी निगाहें थीं..मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद प्रतिनिधिमंडल ने जो कहा, वह उद्योग जगत के लिए किसी भरोसे से कम नहीं रहा।

प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि ‘उत्तर प्रदेश ने औद्योगीकरण, कूड़ा निस्तारण, गरीबी उन्मूलन, नियोजित शहरीकरण, पर्यावरण संरक्षण समेत विकास को बीते छह वर्षो में नया कलेवर दिया है। आज उत्तर प्रदेश जिस तरह जरूरतों के मुताबिक कार्ययोजना तैयार करके काम कर रहा है, वह इस बड़े प्रदेश में व्यापक बदलाव का वाहक बनने वाला है।’ ताकतवर और आर्थिक रूप से सक्षम देशों के प्रतिनिधिमंडल और विश्व बैंक का यह वक्तव्य इस लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण है कि योगी आदित्यनाथ ने अपने दूसरे कार्यकाल में 2027 तक यूपी को एक ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने का लक्ष्य तय किया है।

इसे हासिल करने के लिए योगी कितनी दृढ़ता और तत्परता से प्रयासरत हैं, इसकी बानगी विश्व बैंक के भारत प्रमुख तानो कुआमे के बयान में दिखती है। तानो ने कहा है कि मुख्यमंत्री से बात करते हुए आपको अहसास होता है कि उत्तर प्रदेश वास्तव में एक ट्रिलियन-डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है। न सिर्फ  उनका ऐसा नजरिया है, बल्कि वे इसे पूरा भी करना चाहते हैं। कहना न होगा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पहले कार्यकाल में ही इसकी बुनियाद रखी गई थी..जिसका नतीजा इसी साल फरवरी महीने में लखनऊ में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में दिखा जब सूबे को 40 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव मिले। इन निवेश प्रस्तावों को लाने के लिए राज्य की छवि सुधारनी पड़ी, सुरक्षा का बेहतरीन माहौल बनाना पड़ा, नई और प्रभावी नीतियां बनानी पड़ीं। इसके साथ ही कई तरह के सुधार कार्यक्रम भी चलाने पड़े।

कभी बीमारू राज्यों में शामिल यूपी की पहचान आज हाईवे, एयरपोर्ट, औद्योगिक गलियारे और आर्थिक तरक्की से होने लगी है। यूपी आज मोबाइल निर्माण में अग्रणी राज्य है। ईज ऑफ डूईग के मामले में दूसरे नंबर पर है। गन्ना, आंवला, मटर का उत्पादन हो या फिर स्टार्टअप की नई पौध तैयार करना, हर मामले में यूपी के लोग नया इतिहास रच रहे हैं।

योगी आदित्यनाथ का बुलडोजर आज सुशासन का प्रतीक बन गया है, जिसे बाकी भाजपा शासित राज्य भी अपनाने में हिचक नहीं दिखा रहे। उत्तर प्रदेश के खाते में अब एक और उपलब्धि भी जुड़ गई है। राजस्थान को पछाड़ कर यूपी सबसे अधिक दुग्ध उत्पादन करने वाला राज्य बन गया है। इस लिहाज से कह सकते हैं कि राज्य ने अपने अतीत का गौरव हासिल करना शुरू कर दिया है। गंगा-यमुना, सरयू और गोमती जैसी सदानीरा नदियों की धरती, कान्हा की माटी में कभी दूध-दही की नदियां बहती थीं, लेकिन बीच में वक्त ऐसा भी आया कि यहां की अपनी नस्ल की गायें गलत नीतियों की वजह से खत्म होने लगीं। जिस गंगातीरी नस्ल की कभी तूती बोलती थी, वह अब खोजे नहीं मिलती। उसी राज्य में दुग्ध उत्पादन का रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचना मामूली बात नहीं है।

साल 2022-23 में देश के कुल दुग्ध उत्पादन में यूपी की हिस्सेदारी 15.72 प्रतिशत रही, जबकि 14.44 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ राजस्थान दूसरे नंबर पर रहा जबकि 8.73 प्रतिशत भागीदारी के साथ मध्य प्रदेश तीसरे और 7.49 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ गुजरात चौथे स्थान पर रहा। इसी तरह देश के कुल दुग्ध उत्पादन में 6.7 फीसद हिस्सेदारी के साथ आंध्र प्रदेश पांचवें स्थान पर है।
दुग्ध उत्पादन की इस प्रगति को हमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बेहतरी के रूप में देखना होगा। आंकड़ों के लिहाज से देखें तो योगी शासन में दुग्ध उत्पादन में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 2017-18 में जहां राज्य में 2. 9 करोड टन दुग्ध का उत्पादन हुआ था, वहीं 2022-23 में बढ़कर यह 3.6 करोड़ टन पर पहुंच गया। दुग्ध उत्पादन की सफलता की इस गाथा में योगी सरकार द्वारा शुरू की गई नंद बाबा मिल्क मिशन की बड़ी भूमिका है। उत्तर प्रदेश में दुग्ध उत्पादन के जरिए राज्य की महिलाओं की समृद्धि का नया दरवाजा खुला है।

इसकी वजह यह है कि राज्य के दूध उत्पादन कारोबार में 70 प्रतिशत हिस्सेदारी महिलाओं की है। महिला सशक्तीकरण को समझने के लिए हमें बुंदेलखंड की बलेनी दुग्ध समिति के उदाहरण को देखना होगा। इस समिति से 41 हजार से अधिक महिलाएं जुड़ी हैं। 795 गांवों से 135 हजार लीटर दूध इकट्ठा किया जाता है, जिसका पिछला टर्नओवर 150 करोड़ रुपये सालाना था। यह समिति हर साल अपनी कमाई में 13 करोड़  रुपये की बचत भी कर रही है। सूबे की महिलाओं की इस कामयाबी की तारीफ प्रधानमंत्री मोदी भी कर चुके हैं। बुंदेलखंड की तरह वाराणसी और झांसी में भी ऐसी पहल से महिलाओं की स्थिति को सुधारा जा रहा है। राज्य सरकार दूध की ऑनलाइन बिक्री सुनिश्चित कर रही है। दूध एवं दुग्ध उत्पादों को पराग मित्र और महिला स्वयं सहायता समूहों के जरिए ऑनलाइन बेचा जा रहा है। इसकी वजह से ऑनलाइन दूध खरीदने वालों की संख्या 71 हजार को पार कर गई है।

डेयरी उद्योग में महिलाओं की सफलता देख कर राज्य सरकार ने महिला सामथ्र्य योजना शुरू की है। डेयरी योजनाओं की वजह से गांवों से पलायन रुका है, और नौजवानों को अपने गांवों में ही रोजगार मिल रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का आह्वान किया है। इसके लिए गांवों का सुनियोजित विकास आवश्यक हो जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहते थे कि भारत गांवों का देश है। अगर गांवों का विकास हो जाए तो देश का विकास भी संभव होगा।

उमेश चतुर्वेदी


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