नीतीश-लालू मेरे परिवार की तरह: शत्रुघ्न सिन्हा
बिहारी बाबू ने कहा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद हमारे करीबी मित्र ही नहीं बल्कि परिवार की तरह हैं.
शत्रुघ्न सिन्हा |
दोस्ती और राजनीति एक म्यान में रखी दो तलवारों की तरह नहीं होती है. इसके फलने-फूलने की अपनी जमीन होती है और अपना स्वतंत्र वजूद भी. जी हां! राजनीति की बलिवेदी पर दोस्ती को कुर्बान करने वाले शख्स का नाम शत्रुघ्न सिन्हा नहीं है.
फिल्म दोस्ताना के किरदार में भी दोस्ती और गलतफहमी के बीच काफी पवित्रता से कहानी को निकाल लेने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री पटना साहिब के सांसद इस मुद्दे पर विशेष बातचीत के दौरान खुलकर बोले.
उन्होंने स्वीकार किया कि दो धुव्रों पर रह रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद भी हमारे करीबी मित्र ही नहीं बल्कि परिवार की तरह हैं.
इस रिश्ते से न तो नीतीश और न ही लालू को कोई एतराज रहा और न है. दोस्ती की पवित्रता के वजूद पर मेरी दूरी न तो नीतीश से कम हुई और नही लालू से.
सिन्हा ने कहा कि जिन्दगी में केवल राजनीति ही नहीं है. लोग भले ओछी राजनीति के लिए मेरे और नीतीश की मुलाकात को राजनीतिक मुलाकात करार देते हों. लेकिन मेरी मुलाकात सीक्रेट (गुप्त) नहीं सेक्रेड (पवित्र) है. यह हाल-चाल जानने की मुलाकात भर थी.
हास्यास्पद तो यह लगता है कि जो आज इस मुलाकात को राजनीतिक जामा पहनाना चाह रहे हैं, शायद वे यह भूल रहे हैं कि राजनीति में कोई अंतिम तारीख नहीं होती.
सिन्हा ने इस मुलाकात और नीतीश में पीएम होने की गुणों की चर्चा करने पर हंगामा करने वालों से सीधा सवाल किया कि एनडीए गठबंधन में जदयू कल था, आज नहीं है. पर क्या कल इस गठबंधन में जदयू फिर से शामिल नहीं हो सकता, क्या यह लकीर कोई खींच सकता है?
ऐसी जरूरत में यही संबंध एक सेतु की तरह एक दूसरे से जोड़ने का काम कर जाता है. उन्होंने कहा कि नीतीश और उनके बीच व्यक्तिगत तौर पर काफी मधुर रिश्ते हैं और मैं इन संबधों के कारण जदयू और भाजपा के बीच की खाई को पाटने में सफल रहा तो मुझे काफी खुशी होगी.
वर्तमान राजनीति में हो रहे उठापटक के सवाल पर सिन्हा कहा कि राजनीति में कन्फ्रंटेशन नहीं, कन्सेन्सस की जगह होनी चाहिए. गठबंधन के लिए यह रामवाण है, जहां मतभेद की जगह तो है मनभेद की नहीं.
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