कर्मा ने कहा, 'मुझे मार दो पर औरों को छोड़ दो'
बस्तर टाइगर महेन्द्र कर्मा नक्सलियों की आंख की किरकिरी बने हुए थे. नक्सलियों ने कर्मा को मारने की धमकी के बैनर इलाके में टांगे दिये थे.
बस्तर टाइगर महेन्द्र कर्मा (फाइल) |
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की हैवानियत एक बार फिर सामने आई है. बस्तर टाइगर महेन्द्र कर्मा की मौत ने बस्तर में नक्सलवाद से उपजी हिंसा के खिलाफ उठी सलवा जुडूम (शांति के लिए जन जुड़ाव) आंदोलन को पस्त कर दिया है. यह आंदोलन 2005 में बस्तर से शुरू हुआ था जिसके प्रणेता महेन्द्र कर्मा ही थे.
मगर उन्होंने जो अभियान शुरू किया था वह कई साल पहले ही राजनीति की भेंट चढ़ गया. तब से कर्मा नक्सलियों की आंख की किरकिरी बने हुए थे. नक्सली इतने निश्चिंच थे कि उन्होंने लोगों को गाड़ी से उतारा और उनके मोबाइल लिए, नाम पूछे और फिर दूर तक पैदल ले गए. कर्मा ने कार से उतर कर दिलेरी से कहा, मुझे मार दो मगर बाकियों को छोड़ दो. नक्सलियों ने गोलियां चला दी. कर्मा को मारने की धमकी के बैनर इलाके में टांगे गए थे.
नक्सलियों को पता था कि कौन किस गाड़ी में है इसीलिए काफिले में चुनी हुई गाड़ियों को निशान बनाया गया. काफिले में रोड ओपनिंग पार्टी भी नहीं थी. 8 नवम्बर 2012 को महेंद्र कर्मा पर नक्सली हमला हुआ पर वह इस हमले में बाल-बाल बच गए जबकि पांच लोग घायल हुए थे.
महेंद्र कर्मा और उनके परिवार पर पहले भी नक्सलियों ने कई हमले किए गए थे. शनिवार की घटना बताती है कि पिछले कई वर्षों के सतत काम्बिंग अभियान के बावजूद नक्सली इलाके में महफूज हैं. अपने खिलाफ उठने वाली कोई भी आवाज वह खामोश कर सकते है.
संवाद, संविधान, और प्रजातंत्र किसी को नक्सली नहीं मानते. नक्सलियों के खिलाफ शुरू हुआ सलवा जुडूम आंदोलन अब दम तोड़ गया है. इससे जुड़े हजारों आदिवासी नक्सलियों के भय से राहत शिविरों में रहने के लिए मजबूर हैं. अपने आखिरी साक्षात्कार में कर्मा ने इस संवादादाता से कहा था कि बस्तर को हिंसा से मुक्त करना ही उनकी जिंदगी का मकसद है. मगर अफसोस कर्मा नक्सलियों का निशान बने.
अप्रैल 2010 में चिंतलनार में सीआरपीएफ के 75 जवानों की नक्सली हमले में मौत समेत कई बड़ी घटनाएं दंतेवाड़ा-सुकमा अनुमंडल में ही हुई थीं. 12 जुलाई 2009 को भी राजनांदगांव में एक एसपी समेत 30 जवान झांसे में ला कर मार दिए गए थे. देश के 13 राज्यों के 165 जिलों में फैल चुका रेड कॉरीडोर आज राष्ट्रीय समस्या बन चुका है.
माना जा रहा है कि नक्सलवाद को आतंकवाद घोषित करने के बाद समस्या और विकराल हुई है. बीते रविवार सुबह दूरदशर्न के टावर पर नक्सलियों के हमले में तीन जवान शहीद हो गए और एक घायल हो गया.
यह टावर बस्तर जिला मुख्यालय जगदलपुर से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर तेलीमारेंगा गांव में स्थित है. अबूझमाड़ के इस भूभाग में आज भी नक्सलियों के स्थाई शिविर हैं और पुलिस भी वहां जाने से थर्थराती है. छत्तीसगढ़ के 27 में से 18 जिलों में बुरी तरह पसर चुके नक्सलियों ने इस वारदात के बाद के बाद यही साबित किया है.
लालगढ़ (पश्चिम बंगाल) में सेना के हाथों बुरी तरह कुचले जाने और आंध्रप्रदेश में ग्रे हाउंड फोर्स से खदेड़े जाने के बाद ओडीसा और छतीसगढ़ नक्सलियों का अभ्यारण्य बना हुआ है.
छत्तीसगढ़ में हुए बड़े नक्सली हमले
17 जुलाई, 2007 : करीब 800 हथियारबंद नक्सलियों ने दंतेवाड़ा में हमला किया. 25 मरे, 32 घायल और 250 लोग लापता.
जुलाई, 2009 : राजनंदगांव में 28 सुरक्षाकर्मिंयों की बारूदी सुरंग में विस्फोट कर हत्या.
26 सितम्बर, 2009 : भाजपा सांसद बलिराम कश्यप की जगदलपुर में हत्या. मार्च 2008 में भी काफिले पर हुआ था हमला. अप्रैल, 2010: नक्सलियों ने 73 सीआरपीएफ जवानों की हत्या कर दी.
17 मई, 2010 : नक्सली धमाके में 14 विशेष पुलिस अधिकारी समेत 35 लोग मारे गए.
जुलाई, 2011 : कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल के काफिले पर हमला.
25 मई के हमले में पटेल और उनके बेटे का अपहरण.
अक्टूबर, 2011 : बस्तर में छह सुरक्षाकर्मिंयों की हत्या.
जुलाई, 2011 : दंतेवाड़ा में 10 पुलिसकर्मिंयों की हत्या.
अगस्त, 2011 : नक्सली हमले में 11 पुलिसकर्मी मारे गए.
जनवरी, 2012 : विधायक भीमा मंडावी के काफिले पर हमला.
मई, 2012 : महिला बाल विकास मंत्री लता उसेंड़ी के बंगले पर हमला.
12 मई, 2013 : सुकमा में दूरदर्शन केंद्र पर हमला. चार जवान शहीद.
| Tweet |