जोशीमठ में दरकती जमीन, ध्वस्त होते मकानों को रोक पाना संभव नहीं: जूलॉजिस्ट
जूलॉजिस्ट और डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेस्ट्री के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक जोशीमठ टूटे हुए पहाड़ों के जिस मलबे पर बसा है वह तेजी धंस रहा है। जूलॉजिस्ट कहते हैं कि अब इसे रोकना संभव नहीं दिख रहा है।
![]() जोशीमठ में दरकती जमीन को रोक पाना संभव नहीं: जूलॉजिस्ट |
उत्तराखंड के डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेस्ट्री का मानना है कि स्थिति काफी गंभीर हो चुकी है और यहां 50 से अधिक घर एक साथ भी ध्वस्त हो सकते हैं। यही कारण है कि अब यहां लोगों को स्थानांतरितकरने के काम को पहली प्राथमिकता दी जा रही है।
कई रिपोटरे का भी कहना है कि जोशीमठ की स्थिति काफी विकट हो चुकी है और इन भवनों का ध्वस्त होना लगभग तय है। इस बीच जोशीमठ में चल रहे सभी प्रोजेक्ट रोक दिए गए हैं।
प्रसिद्ध जूलॉजिस्ट एके धामा के मुताबिक कई लोग मानते हैं कि जोशीमठ मोरेन पर बसा है, लेकिन विभिन्न साक्षय और रिपोर्ट बताती है कि जोशीमठ लैंडस्लाइड के मलबे पर है। मोरेन सिर्फ ग्लेशियर से आए मटेरियल को कहते हैं। वहीं पहाड़ो के टूटने को लैंडस्लाइड कहते हैं। जोशीमठ शहर ऐसे ही लैंडस्लाइड मलबे पर बसा है।
प्रसिद्ध इतिहासकार शिवप्रसाद डबराल ने अपनी किताब में बताया है कि सैकड़ो वर्ष पूर्व यहां लैंडस्लाइड की बड़ी घटना हुई थी। इतिहासकारों के मुताबिक तब जोशीमठ को कार्तिकेयपुर शिफ्ट किया गया था। वहीं 80 साल से भी पहले वर्ष 1939 में आई पुस्तक 'सेंट्रल हिमालय जूलॉजिकल ऑब्जरवेशन ऑफ द स्पेस एक्सपीडिशन' में भी जोशीमठ लैंडस्लाइड के ढेर पर बसने की बात लिखी गई थी। स्विस एक्सपर्ट इस पुस्तक के लेखक थे।
इस बीच 1976 में जोशीमठ में फिर से लैंडस्लाइड की घटनाएं देखी गई थीं। तब गढ़वाल कमिश्नर के नेतृत्व में सरकार ने एक कमेटी बनाई थी। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में निर्माण कार्यों पर पूरी तरह से रोक लगाने की सिफारिश की थी। इस रिपोर्ट में सीधे तौर पर बड़े कंस्ट्रक्शन और ब्लास्टिंग नहीं करने की सलाह दी गई थी। इसके बाद भी यहां पर हाइ़ड्रो पावर और सड़क का चौड़ीकरण प्रोजेक्ट लगाए गए।
इसके बाद साल 2010 की एक अन्य एक रिपोर्ट में भी जोशीमठ में निर्माण कार्य न करने की सिफारिशें की गई थी। यह रिपोर्ट 25 मई 2010 को 'करेंट साइंस जर्नल' में पब्लिश हो चुकी है। 1890 मीटर की ऊंचाई पर स्थित जोशीमठ केदारनाथ, बद्रीनाथ समेत अन्य तीर्थ यात्राओं का एक महत्वपूर्ण गेटवे है। यह चारों ओर से नदियों से घिरी पहाड़ी के बीच में बसा है। यहां ढकानाला, कर्मनासा, अलकनंदा और धौलीगंगा नदियां हैं।
इस स्थिति पर उत्तराखंड से सांसद व केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट का कहना है कि ऐसे मामले हालात थोड़ा गंभीर तो रहते ही हैं, भय भी रहता है। केंद्र सरकार इस पूरे मामले की मॉनिटरिंग कर रही है। राज्य सरकार ने तत्काल प्रभाव से लोगों को शिफ्ट कर दिया है। उनकी सारी व्यवस्थाएं की गई है जिसमें भोजन, जल, दवा, डॉक्टर सभी सुविधाएं शामिल हैं। मुख्यमंत्री ने इस विषय में बैठक ली है और कई बड़े फैसले लिए हैं। हमारा पहला कर्तव्य है हम हर हाल में वहां प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाएं। भूगर्भ शास्त्री जोशीमठ में घटनास्थल पर गए हैं। भूगर्भ शास्त्रियों ने बीते दिनों में लगातार क्षेत्र में सर्वे किया है। वहीं आपदा प्रबंधन विभाग के आठ सदस्यीय टीम ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी है।
जोशीमठ की सड़कों, घर, ऑफिस, मैदान, होटल, स्कूल आदि में भूमि दरकने के कारण बड़ी-बड़ी दरारें आ गई है। जिसके कारण यह भवन रहने के लिए असुरक्षित हो गए हैं। इसी को देखते हुए जोशीमठ में तमाम डेवलपमेंटल गतिविधियां भी रोक दी गई हैं। जैसे रोपवे, जल, विद्युत के लिए काम करने कंपनियों के काम रोक दिए गए हैं। सरकार ने यहां अन्य प्रकार के काम भी रोक दिए गए हैं।
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