हरियाणा में दलित वोटर क्यों हो गए निर्णायक ?

Last Updated 21 Sep 2024 03:05:47 PM IST

आज से 14 दिन बाद हरियाणा विधान सभा का चुनाव होगा। यानी 5 अक्टूबर को वोटिंग होगी और 8 अक्टूबर को नतीजे आएंगे।


Anand BSP

वहां सीधा मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच होने की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन समय के साथ वहां की राजनीति में एक नया ट्विस्ट आ गया है। चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से पहले तमाम सर्वे कांग्रेस की सरकार बनने का दावा कर रहे थे। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव करीब आते जा रहे हैं वैसे वैसे कुछ नई-नई बातें और नए-नए विवाद कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाते जा रहे हैं।

टिकट वितरण से पहले जहां बीजेपी खेमे में उथल-पुथल देखने को मिली थी अब वही उथल-पुथल कांग्रेस में देखने को मिल रही है। हरियाणा कांग्रेस की दिग्गज महिला नेत्री कुमारी शैलजा नाराज बताईं जा रही हैं। उनकी नाराजगी का कारण है, उनके ऊपर की गई जातिगत टिप्पणी है, जो उन्हीं की पार्टी यानी कांग्रेस के एक उम्मीदवार के समर्थक ने की थी। हालांकि जिस समर्थक ने वह टिप्पणी की उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया है। लेकिन दलित नेता कुमारी शैलजा इतने भर से खुश नहीं हैं। उनकी इस नाराजगी सिर्फ इस बात से नहीं है कि उनके ऊपर जातिगत हमला किया गया, वो इस बात से भी नाराज हैं कि उनकी मर्जी के मुताबिक टिकट वितरण नहीं हुआ। वह अपने 30,35 समर्थकों को टिकट दिलवाना चाहती थी लेकिन उन्हें चार ही टिकट दिए गए जो उनके समर्थक हैं। जबकि भूपेंद्र हुड्डा के समर्थकों के खाते में 72 सीटें आयीं। कांग्रेस की इस अंदरूनी लड़ाई में जहां बीजेपी पहले से ही कूदी हुई थी वहीं अब बसपा ने कांग्रेस की अंदरूनी कलह को दलित अस्मिता से जोड़ लिया है।

बसपा सुप्रिमों मायावती के भतीजे ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए साफ-साफ कह दिया है कि जो पार्टी अपनी वरिष्ठ दलित नेत्री कुमारी शैलजा का सम्मान नहीं कर सकती वो भला मायावती का क्या सम्मान करेगी। इसी बीच हरियाणा के पूर्व सीएम और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला को बीजेपी में शामिल होने का प्रस्ताव दे दिया है। यहां बता दें कि हरियाणा में वैसे भी कांग्रेस के दो गुट हैं। पहला गुट भूपेंद्र हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा का जबकि दूसरा गुट कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला का है। उधर बसपा, इनेलो के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। हरियाणा की 90 सीटों में से बसपा ने 37 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। जबकि आम आदमी पार्टी अलग ही चुनाव लड़ रही है। ऐसे में जिस कांग्रेस पार्टी की सरकार बनाने के दावे किए जा रहे थे, वो सभी दावे कांग्रेस की अंदरूनी कलह की वजह से ही धूल धूसरित होते हुए दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस के दावे को कमतर करने में बसपा भी अपनी अहम भूमिका निभा रही है।

यहां बता दें कि हरियाणा में दलित वोटरों की संख्या करीब 21 प्रतिशत है। ओबीसी वोटर 33 प्रतिशत के आस-पास हैं जबकि 25 प्रतिशत जाट वोटर हैं। यह तय है कि जाट वोटर अधिकांश संख्या में कांग्रेस की तरफ जाते हुए दिख रहे हैं। जबकि हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ओबीसी समाज से आने की वजह से अधिकांश ओबीसी वोटरों को अपने साथ लाने का दावा कर रहे हैं। हरियाणा में चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से पहले जहां यह माना जा रहा था कि अगर आम आदमी पार्टी अलग चुनाव लड़ती है तो कांग्रेस को नुकसान हो सकता है लेकिन अब ऐसा माना जा रहा है कि वहां के दलित वोटर इस बार निर्णायक भूमिका में होंगे।

 

 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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