सभी जाति-धर्म के लिए बने एक समान कानून

Last Updated 10 Jul 2021 09:40:20 AM IST

समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पेश किए जाने का समर्थन करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि अलग-अलग ‘पर्सनल लॉ’ के कारण भारतीय युवाओं को विवाह और तलाक के संबंध में समस्याओं से जूझने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता।


दिल्ली हाई कोर्ट

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने सात जुलाई के अपने आदेश में कहा कि आधुनिक भारतीय समाज ‘धीरे-धीरे समरूप होता जा रहा है, धर्म, समुदाय और जाति के पारंपरिक अवरोध अब खत्म हो रहे हैं’ और इस प्रकार समान नागरिक संहिता अब उम्मीद भर नहीं रहनी चाहिए। आदेश में कहा गया, ‘भारत के विभिन्न समुदायों, जनजातियों, जातियों या धर्मो के युवाओं को जो अपने विवाह को संपन्न करते हैं, उन्हें विभिन्न पर्सनल लॉ, विशेषकर विवाह और तलाक के संबंध में टकराव के कारण उत्पन्न होने वाले मुद्दों से जूझने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।’

अदालत ने निर्देश दिया कि आदेश की एक प्रति कानून और न्याय मंत्रालय के सचिव को उचित समझी जाने वाली आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजी जाए। अदालत इस पर सुनवाई कर रही थी कि क्या मीणा समुदाय के पक्षकारों के बीच विवाह को ¨हदू विवाह अधिनियम, 1955 (एचएमए) के दायरे से बाहर रखा गया है। जब पति ने तलाक मांगा, तो पत्नी ने तर्क दिया कि एचएमए उन पर लागू नहीं होता, क्योंकि मीणा समुदाय राजस्थान में एक अधिसूचित अनुसूचित जनजाति है। अदालत ने महिला के रुख को खारिज कर दिया और कहा कि वर्तमान मामले ‘सब के लिए समान’ इस तरह की एक संहिता की आवश्यकता को उजागर करते हैं, जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि जैसे पहलुओं के संबंध में समान सिद्धांतों को लागू करने में सक्षम बनाएंगे। अदालत ने कहा कि मुकदमे की शुरुआत के बाद से दोनों पक्षों ने बताया कि उनकी शादी ¨हदू रीति-रिवाजों व समारोहों के अनुसार हुई थी और वे ¨हदू रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।
 

एसएनबी
नई दिल्ली।


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