दिल्ली वायु प्रदूषण के लिहाज से विश्व का सबसे प्रदूषित शहर है, जहां सालाना औसत एक्यूआइ 200 से ऊपर रहता है। बरसात के बाद तापमान में गिरावट के साथ ही दिल्ली की हवा जहरीली होती चली जाती है और लगभग तीस मिलियन लोग जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हो जाते हैं।
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पिछले एक हफ्ते से दिल्ली का वायु प्रदूषण सूचकांक बढ़ता जा रहा है और 22 और 28 अक्टूबर को यह 300 के पार जा पहुंचा यानी ‘ख़राब’ से ‘बहुत ख़राब’ की श्रेणी में है। वहीं, ग्रेटर नोएडा, फरीदाबाद, गाज़ियाबाद और गुरुग्राम भी लपेटे में आ गए हैं। हवा की गति में कमी और गिरते तापमान के कारण एक्यूआई में और गिरावट आ सकती है। दिल्ली पॉल्यूशन कण्ट्रोल कमिटी के मुताबित वायु प्रदूषण की स्थिति नवंबर के मध्य तक अपने सबसे खराब स्तर पर होगी, यही समय पंजाब और हरियाणा में सबसे ज्यादा धान की पराली जलने का होता है। वैसे अभी तक पराली से निकलने वाले धुंए का दिल्ली के वायु प्रदूषण पर प्रभाव का कोई स्पष्ट आंकड़ा इस साल के लिए सामने नहीं आया है.
दिल्ली वायु प्रदूषण के लिहाज से विश्व का सबसे प्रदूषित शहर है, जहां सालाना औसत एक्यूआइ 200 से ऊपर रहता है। बरसात के बाद तापमान में गिरावट के साथ ही दिल्ली की हवा जहरीली होती चली जाती है और लगभग तीस मिलियन लोग जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हो जाते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय को टिप्पणी करनी पड़ी कि शहर की हालत नर्क से भी ख़राब हो चुकी है। वायु प्रदूषण सूचकांक (0-500) वायु प्रदूषण के स्तर का सूचक है जिसके स्वास्थ्य पर प्रभाव के आधार पर पांच स्तरों में बांटा गया है; अच्छा (0-50), संतोषजनक (51-100), मध्यम (101-200), ख़राब (201-300), बहुत ख़राब (301-400) और खतरनाक (401 और उससे अधिक)। एक्यूआई की गणना आठ प्रदूषकों के आधार पर की जाती है, जिसमें कम से कम तीन की गणना जरुरी है, जिसमें कम से कम एक धूलकण (पार्टिकुलेट मैटर; पीएम10 या पीएम 2.5) होना चाहिए. प्राकृतिक और ग्रामीण क्षेत्रों में एक्यूआई हवा में बड़े धूलकण यानी पीएम10 और प्रदूषित क्षेत्रों और दिल्ली जैसे शहरों में हवा में सूक्ष्म धूलकण यानी पीएम 2.5 द्वारा निर्धारित होता है। हवा में पीएम2.5 की बेतहाशा बढती मात्रा दिल्ली की हवा को स्वास्थ्य की दृष्टि से जहरीला बना देती है।
दिल्ली की सालाना वायु प्रदूषण की स्थिति को मुख्य रूप से दो समय काल में बांटा जा सकता है, मार्च से सितम्बर तक और अक्टूबर से फरवरी तक। मार्च से सितम्बर में वायु प्रदूषण का स्तर अच्छा से मध्यम (200 तक) रहता है, वहीं जाड़े की शुरुआत के साथ एक्यूआइ खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है। साल में अधिकतर दिन एक्यूआइ मध्यम (101-200) स्तर का होता है, हालांकि पिछले कुछ सालों में साल में एक्यूआई के हिसाब से ‘’अच्छा’ (एक्यूआई 0-50) दिनों की संख्या में वृद्धि हुई है पर जाड़े के दिनों के वायु प्रदूषण की स्थिति में कोई संतोषजनक सुधार नहीं देखा गया है और कोविड के दौर (2020- 21) को छोड़ दिया जाये तो यही हाल वार्षिक औसत एक्यूआई का भी रहा है।
वायु प्रदूषण के स्थानीय स्रोतों में गाड़ियों से निकला धुंआ और धूल, औद्योगिक उत्सर्जन, भवन-निर्माण का धूल और कचरे को खुले में जलाने से और लैंडफिल से निकला धुंआ मुख्य रूप से शामिल है। सर्दी की शुरुआत के साथ एक्यूआई में होने वाली गिरावट के मूल कारणों में शहर के अपने वायु प्रदूषण के स्रोत और स्थानीय मौसम की परिस्थितयों के अलावा पड़ोसी राज्यों मुख्य रूप से हरियाणा और पंजाब में धान की पराली जलाने से निकला धुंआ भी शामिल है।
दिल्ली का हाल बद से बदतर होने के मुख्य कारणों में एक इसकी भौगोलिक स्थिति है जिसमें हिमालय पर्वत एक प्रकार की बाधा की तरह काम करता है, जो धुंए को दिल्ली की ओर ढकेलता है। दूसरा है यहां का मौसम जिसमें सर्दियों के दौरान ठंडी पहाड़ी हवा हिमालय से दिल्ली की ओर आती है, और गर्म तराई हवा की एक परत के नीचे पहुंचती है जो शहर के ऊपर एक प्रकार का गुंबदनुमा आकार बनाती है। इस प्रकार सर्दी की शुरुवात के साथ ही हवा में प्रदूषण के घुलने का आयतन गरम हवा की परत नीचे आ जाने के कारण काफी कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में प्रदूषित हवा जमीन पर ही फंसी रह जाती है और प्रदूषण की सांद्रता कई गुणा बढ़ जाती है। इसके अलावा अक्टूबर-नवम्बर में हवा की गति भी मंद पड़ जाती है, जिससे प्रदूषित हवा दिल्ली से बाहर तेजी से ना जाकर दिल्ली और आस-पास के शहरों में अटकी रह जाती है। इस परिस्थिति में जब दिल्ली के अपने वायु प्रदूषण की सांद्रता बढ़ चुकी होती है उसी समय पश्चिमोत्तर राज्यों के पराली का धुंआ दिल्ली की आबो हवा को जहरीला बना देता है। हमेशा की तरह इस साल भी वही स्थिति है।
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