विधि आयोग ने कहा, देश की सुरक्षा और अखंडता को बचाने के लिए जरूरी है राजद्रोह कानून
विधि आयोग ने राजद्रोह के अपराध संबंधी दंडात्मक प्रावधान का समर्थन करते हुए कहा है कि इसे पूरी तरह से निरस्त करने से देश की सुरक्षा और अखंडता पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
22वें विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ऋतु राज अवस्थी (सेवानिवृत्त) |
भारतीय दंड संहिता की राजद्रोह संबंधी धारा 124ए मई, 2022 में जारी उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के बाद से स्थगित है।
आयोग ने कहा कि केवल इस आधार पर यह प्रावधान निरस्त कर देने का मतलब भारत में मौजूद भयावह जमीनी हकीकत से आंखें मूंद लेना होगा कि कुछ देशों ने ऐसा किया है। उसने कहा कि इसका दुरुपयोग रोकने के लिए आवश्यक कुछ कदम उठाकर इस प्रावधान को बरकरार रखा जा सकता है। दुरुपयोग के आरोपों के बीच इस प्रावधान को निरस्त किए जाने की मांग की जा रही है। पैनल ने हाल में सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा कि वह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए के दुरुपयोग संबंधी विचारों के मद्देनजर सिफारिश करता है कि केंद्र इसे रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी करे।
22वें विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ऋतु राज अवस्थी (Ritu Raj Awasthi) (सेवानिवृत्त) ने विधि मंत्री अजरुन राम मेघवाल को प्रावरण पत्र में लिखा, ‘इस संदर्भ में, वैकल्पिक रूप से यह भी सुझाव दिया गया है कि आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 196(3) की तरह एक प्रावधान को सीआरपीसी की धारा 154 में नियम के रूप में शामिल किया जा सकता है, जो आईपीसी की धारा 124ए के तहत प्राथमिकी दर्ज कराए जाने से पहले आवश्यक प्रक्रियात्मक सुरक्षा प्रदान करे।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि राजद्रोह संबंधी धारा 124ए के कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ प्रक्रियात्मक दिशानिर्देशों को निर्धारित करना अनिवार्य है, लेकिन प्रावधान के दुरुपयोग के आरोपों का मतलब यह नहीं है कि इसे निरस्त कर दिया जाए। आयोग ने कहा कि राजद्रोह की ‘औपनिवेशिक विरासत’ इसे निरस्त करने का वैध आधार नहीं है।
विधि आयोग ने रिपोर्ट में कहा कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम जैसे कानूनों का अस्तित्व आईपीसी की धारा 124ए के तहत परिकल्पित अपराध के सभी तत्वों को शामिल नहीं करता है। ‘राजद्रोह के कानून का उपयोग’ शीषर्क वाली रिपोर्ट में कहा गया, ‘इसके अलावा, आईपीसी की धारा 124 ए जैसे प्रावधान न होने पर, सरकार के विरुद्ध ¨हसा को उकसाने वाली हर अभिव्यक्ति के खिलाफ विशेष कानूनों और आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत निपटा जाएगा, जिनमें अभियुक्तों को लेकर कहीं अधिक कड़े प्रावधान हैं।’
कानून को और खतरनाक बनाने की तैयारी
कांग्रेस (Congress) ने विधि आयोग द्वारा राजद्रोह के अपराध संबंधी दंडात्मक प्रावधान का समर्थन किए जाने के बाद शुक्रवार को केंद्र सरकार पर इस कानून को पहले से अधिक खतरनाक बनाने के प्रयास करने का आरोप लगाया और कहा कि यह संदेश दिया गया है कि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी नेताओं के खिलाफ इस कानून का दुरुपयोग किया जाएगा।
पार्टी प्रवक्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी (Abhishek Manu Singhvi) ने यह दावा भी किया कि सरकार इस कदम से अपनी औपनिवेशिक मानसिकता का परिचय दे रही है और यह दर्शा रही है कि मानो उसे राजद्रोह कानून (Sedition Law) के खिलाफ उच्चतम न्यायालय के सख्त रुख के बारे में कुछ नहीं पता। सिंघवी ने कहा, ‘सरकार राजद्रोह के कानून को भयानक-खतरनाक बनाने में लगी है। ऐसा लगता है कि मानो सरकार उच्चतम न्यायालय की उस टिप्पणी से अनभिज्ञ हैं जिसमें उसने इस कानून पर अंकुश लगाने की बात की थी।’ उन्होंने आरोप लगाया, ‘सरकार औपनिवेशिक मानसिकता का परिचय दे रही है।
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