देश भर में घूम-घूम कर विपक्षी नेताओं से इसलिए मिल रहे हैं C M Arvind Kejriwal!

Last Updated 27 May 2023 04:30:16 PM IST

सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद दिल्ली सरकार को मिली शक्ति केंद्र सरकार के अध्यादेश के बाद छिन गई है। उस अध्यादेश से परेशान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अब देश भर में घूम-घूम कर विपक्षी नेताओं से मुलाक़ात कर सहयोग मांग रहे हैं।


चूँकि यह अध्यादेश एक समय के बाद पारित होने के लिए सदन के दोनों सदनों में पेश किया जाएगा। केंद्र सरकार दोनों सदनों से इस अध्यादेश को पारित करवाने की कोशिश करेगी। सरकार को लोकसभा से उसे पारित करवाने में कोई दिक्कत नहीं आने वाली है, क्योंकि वहां उनका बहुमत है, लेकिन अगर सभी विपक्षी पार्टियां, राज्यसभा में इस अध्यादेश के खिलाफ खड़ी हो गईं तो संभव है कि यह अध्यादेश राज्यसभा में गिर जाय।

अरविन्द केजरीवाल इसी अध्यादेश को राज्यसभा में गिराने के लिए विपक्षी पार्टियों से सहयोग मांग रहे हैं। लेकिन सवाल यहां यह पैदा हो रहा है कि अरविन्द केजरीवाल एक राज्य से दूसरे राज्य में घूम-घूम कर विपक्षी पार्टियों से सिर्फ इस अध्यादेश के लिए ही सहयोग मांग रहे हैं, या इसी बहाने वो विपक्षी पार्टियों का मन टटोलने के कोशिश कर रहे हैं। दिल्ली के प्रशासक को लेकर लगभग दस दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाया था, जिसके मुताबिक़ दिल्ली में पुलिस ,पब्लिक आर्डर और लैंड को छोड़कर सभी मामलों के प्रमुख दिल्ली के मुख्यमंत्री होंगे। यानी सर्विसेज की पूरी कमान दिल्ली सरकार के हाथों में होगी। सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद आम आदमी पार्टी खुशियां मना रही थी। जबकि उपराज्यपाल अपनी प्रशासक वाली शक्ति के छिन जाने के बाद संभवतः विचलित हो गए थे।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली की सरकार ने कुछ अधिकारियों के तबादले भी कर दिए थे। लेकिन महज एक सप्ताह के बाद ही केंद्र की सरकार ने एक अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बना दिया था। ऐसे में अरविन्द केजरीवाल को बूरा लगना स्वाभाविक था, लेकिन उनके हाथ में कुछ भी नहीं था ,सिवाय इसके कि वह राज्यसभा से इस अध्यादेश को  पारित होने से रुकवा सकें। अब राज्यसभा में इस अध्यादेश को पारित होने से रुकवाने के लिए सिर्फ एक ही रास्ता था , वह यह कि विपक्ष की तमाम पार्टियों के राज्यसभा सांसद उसे पारित होने से रोकें। यानि विपक्ष के सभी राज्यसभा सांसद इस अध्यादेश के खिलाफ अपनी राय दें, और वोटिंग की नौबत आए तो इसके खिलाफ वोटिंग करें।

अरविन्द केजरीवाल इसी अध्यादेश को लेकर देश भर में घूम रहे हैं। कुछ दिन पहले उन्होंने वेस्ट बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाक़ात की थी। ममता ने इस मुद्दे पर अरविन्द केजरीवाल का साथ देने का आश्वासन भी दे दिया था। अरविन्द केजरीवाल ने मुम्बई जाकर उद्धव ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार से भी मुलाकत की थी। वहां से भी केजरीवाल को समर्थन का आश्वासन मिला था। अब अरविन्द केजरीवाल तेलांगना के सीएम चंद्रशेखर राव से भी मिल लिए। राव ने भी उन्हें समर्थन देने का आश्वासन दे दिया है। अरविन्द केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मुलाकत करने के लिये समय माँगा है।

यह सही बात है कि दिल्ली सरकार के हाथ से सर्विसेज का अधिकार छिन जाने के बाद कई तरह की दिक्कतें  आएंगीं। दिल्ली सरकार के अधिकारी सिर्फ उपराज्यपाल की बात सुनेगें। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अगर अधिकारियों पर कुछ दबाव बनाने की कोशिश करेंगे तो संभव है कि अधिकारी उनकी बात को अनसुनी कर दें। जबकि दिल्ली की जनता की समस्यायों, दिल्ली में होने वाले विकास कार्यों की जिम्मेदारी और जवाबदेही दिल्ली सरकार की है, क्योंकि वहां की जनता ने उन्हें वोट देकर कुर्सी पर बिठाया है।

दिल्ली की जनता सिर्फ और सिर्फ दिल्ली सरकार से ही उम्मीद कर सकती है। लेकिन क्या अरविन्द केजरीवाल सिर्फ उन्ही समस्यायों को लेकर विपक्ष के नेताओं से मिल रहे हैं। सूत्र बता रहे हैं कि इस समय अरविन्द केजरीवाल एक तीर से दो निशाने लगाने की फिराक में हैं। वह अध्यादेश के बहाने विपक्षी नेताओं का मन भी टटोल रहे हैं। पिछले कई महीनों से विपक्षी एकता को लेकर चल रही हलचल की नब्ज पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं अरविन्द केजरीवाल। हालांकि इस काम में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बड़ी शिद्दत से लगे हुए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि जब से आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला है, तबसे अरविन्द केजरीवाल की उम्मीदें और इच्छाएं दोनों ही बढ़ गई हैं। वो इसी बहाने अपनी उपस्थिति भी दर्ज करवाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव में जब विपक्षी पार्टियों की ताकत बढे, तो वह भी शान से कह सकें कि उन्होंने भी विपक्षियों को एक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
 

 

 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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