नहीं रहे पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी, राष्ट्रपति कोविंद व PM मोदी ने जताया दुख
देश के पूर्व एटर्नी जनरल एवं जाने-माने कानूनविद सोली सोराबजी का शुक्रवार सुबह यहां कोरोना वायरस के संक्रमण से निधन हो गया। वह 91 वर्ष के थे।
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उनके परिवार में पत्नी, दो बेटे और एक बेटी है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोराबजी के निधन पर शोक जताया है।
In the passing of Soli Sorabji, we lost an icon of India's legal system. He was among the select few who deeply influenced evolution of constitutional law & justice system. Awarded with Padma Vibhushan, he was among most eminent jurists. My condolences to his family & associates.
— President of India (@rashtrapatibhvn) April 30, 2021
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रख्यात न्यायविद सोली जहांगीर सोराबजी को श्रद्धांजलि देते हुए शुक्रवार को कहा कि वह उत्कृष्ट वकील थे और कानून के जरिए गरीबों एवं वंचितों की मदद करने के लिए आगे रहते थे।
मोदी ने ट्वीट किया, ‘‘श्री सोली सोराबजी उत्कृष्ट वकील और विद्वान थे। वह कानून के जरिए गरीबों और वंचितों की मदद करने में आगे रहते थे। उन्हें भारत के अटॉर्नी जनरल के तौर पर उल्लेखनीय कार्यकाल के लिए याद रखा जाएगा। उनके निधन से दुखी हूं। उनके परिवार एवं प्रशंसकों के प्रति संवेदनाएं व्यक्त करता हूं।’’
Shri Soli Sorabjee was an outstanding lawyer and intellectual. Through law, he was at the forefront of helping the poor and downtrodden. He will be remembered for his noteworthy tenures India’s Attorney General. Saddened by his demise. Condolences to his family and admirers.
— Narendra Modi (@narendramodi) April 30, 2021
राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने भी सोराबजी के निधन पर शोक जताया।
पद्म विभूषण से सम्मानित श्री सोराबजी का जन्म 1930 में मुंबई (तब बम्बई) में हुआ था। उन्होंने 1953 में बाॅम्बे उच्च न्यायालय से अपने करियर की शुरुआत की।
वर्ष 1971 में उन्हें उच्चतम न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था। सोराबजी 1989 से 1990 और फिर 1998 से 2004 तक देश के एटर्नी जनरल रहे थे।
मानवाधिकारों के ध्वजवाहक वकील के तौर पर मशहूर श्री सोराबजी को संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1997 में नाइजीरिया के लिए विशेष प्रतिवेदक (रैपोर्टर) नियुक्त किया गया था, ताकि वहां की मानवाधिकारों की स्थिति पर रिपोर्ट मिल सके।
वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा से जुड़े कई मामलों में शामिल रहे थे और उन्होंने प्रकाशनों पर सेंसरशिप आदेशों और प्रतिबंधों को हटाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए मार्च 2002 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था, जो देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है।
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