गुजरात : सीबीआई अदालत ने इशरत जहां मुठभेड़ मामले में आरोपी तीन पुलिसकर्मियों को आरोप मुक्त किया
सीबीआई की विशेष अदालत ने वर्ष 2004 में इशरत जहां कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोपी तीन पुलिस अधिकारियों जीएल सिंघल, तरुण बरोट (अब सेवानिवृत्त) और अनाजू चौधरी को बुधवार को आरोप मुक्त कर दिया।
इशरत जहां मुठभेड़ मामला (फाइल फोटो) |
विशेष सीबीआई न्यायाधीश वीआर रावल ने सिंघल, बरोत और चौधरी के आरोप मुक्त करने के आवेदन को मंजूरी दे दी।
अदालत ने टिप्पणी की, ‘‘सीबीआई ने अनुमति आदेश के खिलाफ कुछ भी विशेष उल्लेख नहीं किया है (जिसमें गुजरात सरकार ने तीनों आरोपियों पर अभियोग चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया) जिससे यह भी माना जाता है कि आवेदक/आरोपी आधिकारिक कर्तव्य का निवर्हन कर रहा था।’’
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने 20 मार्च को अदालत को सूचित किया था कि राज्य सरकार ने तीनों आरोपियों के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया है।
अदालत ने अक्टूबर 2020 के आदेश में टिप्पणी की थी उन्होंने (आरोपी पुलिस कर्मियों) ‘आधिकारिक कर्तव्य के तहत कार्य’ किया था, इसलिए एजेंसी को अभियोजन की मंजूरी लेने की जरूरत है।
उल्लेखनीय है कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-197 के तहत सरकारी कर्मचारी द्वारा ड्यूटी करने के दौरान किए गए कृत्य के मामले में अभियोग चलाने के लिए सरकार से मंजूरी लेनी होती है।
उल्लेखनीय है कि 15 जून 2004 को मुंबई के नजदीक मुम्ब्रा की रहने वाली 19 वर्षीय इशरत जहां गुजरात पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में मारी गई थी। इस मुठभेड़ में जावेद शेख उर्फ प्रनेश पिल्लई, अमजदली अकबरली राणा और जीशान जौहर भी मारे गए थे।
पुलिस का दावा था कि मुठभेड़ में मारे गए चारों लोग आतंकवादी थे और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने की योजना बना रहे थे।
हालांकि, उच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेष जांच टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची की मुठभेड़ फर्जी थी, जिसके बाद सीबीआई ने कई पुलिस कर्मियों के खिलाफ मामला दर्ज किया।
पुलिस महानिरीक्षक सिंघल, सेवानिवृत्त अधिकारी बरोत एवं जे जी परमार और चौधरी ने अदालत के समक्ष आवेदन दाखिल कर उनके खिलाफ सुनवाई की प्रक्रिया खत्म करने का अनुरोध किया था क्योंकि उनके खिलाफ मामला चलाने के लिए मंजूरी की जरूरत है।
मामले की सुनवाई के दौरान परमार की मौत हो गई थी।
न्यायाधीश ने बुधवार को कहा कि जब अदालत ने यह टिप्पणी की थी कि यह कृत्य आधिकारिक ड्यूटी करने के दौरान किया गया तब उस आदेश को किसी ने चुनौती नहीं दी।
अदालत ने कहा, ‘‘यही नहीं, केंद्र सरकार और गुजरात सरकार भी मानती है कि आवेदकों /आरोपी ने ड्यूटी के दौरान यह कार्य किया इसलिए सरकार के पास मंजूरी के लिए जाना चाहिए और मंजूरी देने से इंकार भी कर दिया गया है।’’
अदालत ने आदेश में कहा कि रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है, यहां तक प्रथमदृष्टया भी यह संकेत नहीं मिलता कि पीड़ित आतंकवादी नहीं थे और खुफिया ब्यूरो की जानकारी सच्ची नहीं थी।
फैसले में कहा गया, ‘‘सीबीआई ने भी मंजूरी आदेश के खिलाफ कुछ विशेष उल्लेख नहीं किया है जिससे माना जा सकता है कि आवेदकों/आरोपी ने आधिकारिक ड्यूटी करते हुए यह कार्य किया।’’
अदालत ने सीबीआई के विशेष लोक अभियोजक आरसी कोडेकर के इस तर्क को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार द्वारा तीनों आवेदकों के खिलाफ अभियोजन मंजूरी नहीं देने का आदेश आवेदन पर बिना विचार किए दिया गया।
उल्लेखनीय है कि सीबीआई ने वर्ष 2013 में दाखिल पहले आरोप पत्र में सात पुलिस अधिकारियों- पीपी पांडेय, डीजी वंजारा, एनके अमीन, सिंघल, बरोत, परमान और चौधरी को बतौर अभियुक्त नामजद किया था।
हालांकि, वर्ष 2019 में सीबीआई की अदालत ने पुलिस अधिकारी वंजारा और अमीन के खिलाफ सुनवाई राज्य सरकार द्वारा अभियोजन मंजूरी नहीं देने पर वापस ले ली थी। इससे पहले 2018 में पूर्व पुलिस महानिदेशक पीपी पांडेय को भी मामले से मुक्त कर दिया गया था।
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