किसान आंदोलन स्थलों पर न के बराबर दिख रही महिलाओं की हिस्सेदारी
कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन को महीनों हो चुके हैं। शुरूआत में बॉर्डर पर बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं की भागीदारी नजर आई। लेकिन समय के साथ-साथ गाजीपुर बॉर्डर पर अब बच्चे और महिलाएं की भागीदारी न के बराबर है।
(फाइल फोटो) |
मौजूदा वक्त में कुछ ही टेंटों में महिलाएं नजर आ रही हैं लेकिन इससे पहले की बात करें तो महिलाओं के साथ बच्चे भी बॉर्डर पर रुका करते थे। हालांकि जब महिलाओं की हिस्सेदारी कम होने के पीछे का कारण जानना चाहा, तो किसान नेताओं ने कहा कि, खेती के कारण महिलाएं कम हैं।
दूसरी और बॉर्डर पर शुक्रवार को सुबह से ही किसानों की संख्या कम नजर आई। इसपर किसान नेताओं ने कहा कि ऐसा बिल्कुल नहीं है।
भारतीय किसान यूनियन के उत्तरप्रदेश अध्यक्ष राजवीर सिंह जादौन ने आईएएनएस को बताया कि, "महिलाओं की संख्या जरूर कुछ कम नजर आ रही होगी, सरकार का एक दमनकारी रवैया है उससे प्रभावित होकर महिलाएं बॉर्डर पर नजर नहीं आ पा रहीं हैं।"
उन्होंने कहा, "दिल्ली के रास्ते बंद कर दिए गए हैं, लोग आंदोलन में आया करते थे। सरकार हथकंडे अपना रही है, लेकिन महिलाएं फिर भी आ रहीं है। खेती में बराबरी महिलाएं भागीदरी दे रहीं है। हम सभी लोग आंदोलन में हैं, इससे पहले जितनी जिम्मेदारी से महिलाओं ने खेती की, उससे अधिक जिम्मेदारी से महिलाएं अब खेती कर रहीं है।"
आंदोलन स्थल पर संख्या पर भी गिरावट आ रही है इसपर गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे आंदोलन कमिटी के सदस्य जगतार सिंह बाजवा ने आईएएनएस से कहा, "कहां कम हो रही है संख्या? पिछले 3 दिन से हमारी आवश्यकता से ज्यादा लोग हैं लेकिन गर्मी के चलते इक्ट्ठे होकर नहीं बैठ पाते, इसलिए लग रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है।"
हालांकि बॉर्डर पर इक्का दुक्का महिलाएं मौजूद हैं जो कि कुछ रोजमर्रा की दिहाड़ी पर काम कर रहीं हैं या तो किसी किसान परिवार के साथ जुड़ी हुई हैं और आंदोलन स्थल पर समर्थन में मौजूद हैं।
तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान पिछले साल 26 नवंबर से राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
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