अवमानना कानून में अपील का हक नहीं
अदालत की अवमानना अधिनियम की बुनियादी खामी को लेकर वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
वकील प्रशांत भूषण |
भूषण ने कहा कि गुनहगार करार दिए गए शख्स के लिए अपील उसका मौलिक अधिकार है, लेकिन अवमानना कानून में इसका प्रावधान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवमानना के दोषी ठहराए गए प्रशांत भूषण ने शीर्ष अदालत में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका में अदालत की अवमानना अधिनियम 1971 की कमी को उजागर किया है।
वकील कामिनी जायसवाल के जरिए दायर याचिका में कहा गया है कि अदालत की अवमानना का मामला सिर्फ हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चल सकता है। हाईकोर्ट की एकल पीठ यदि किसी व्यक्ति को अवमानना का दोषी ठहराती है तो दोषी करार दिया गया शख्स हाईकोर्ट की खंडपीठ में अपील दायर कर सकता है। यदि हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अवमानना का गुनहगार करार दिया है तो पीड़ित व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर सकता है। यह अधिकार उसे अदालत की अवमानना अधिनियम 1971 की धारा 19 में मिला है, लेकिन यदि सुप्रीम कोर्ट किसी को गुनहगार करार देता है तो उसकी अपील का प्रावधान अवमानना कानून में नहीं है। यह मौलिक अधिकार का हनन है। आपराधिक कानून में एक अपील का अधिकार संविधान ने दिया है। याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट उसे अपील का अधिकार दे या उसकी पुनर्विचार याचिका को अपील का रूप देकर उसे अलग बेंच में सुनवाई के लिए भेजे। कानूनन पुनर्विचार याचिका का निपटारा वही बेंच करती है, जिसने मुख्य मामले की सुनवाई की है।
भूषण का कहना है कि अवमानना के कानून में सच्चाई बचाव के रूप में प्रस्तुत की जा सकती है, लेकिन उनके केस में ऐसा नहीं किया गया। यदि पुनर्विचार याचिका किसी अलग बेंच को सुनवाई के लिए भेजी जाती है और उस पर सामान्य अदालत में दलीलों के जरिए सुनवाई होती है तो संभव है कि कोर्ट सच्चाई को स्वीकार करे। याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने कानून की खामियों को पहले भी भरा है। क्यूरेटिव पिटीशन दायर करने का रास्ता सुप्रीम कोर्ट ने दिखाया है। फांसी के मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट ने नई नियमावली अख्तियार की है।
फांसी के मामलों का निपटारा तीन सदस्यीय बेंच करती है, जबकि पहले सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ही मृत्युदंड के मुकदमों का निपटारा कर देती थी। अवमानना मामले में भी सुप्रीम कोर्ट कानून की कमी को दूर कर सकता है। जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और कृष्ण मुरारी की बेंच ने वकील प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी ठहराते हुए उन पर एक रुपये का जुर्माना लगाया है।
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