भारत दुनिया का नंबर–1 देश बन सकता हैः केजरीवाल

Last Updated 25 Jul 2020 09:29:17 AM IST

देशभर में कोरोना के खिलाफ चल रही जंग में दिल्ली मॉड़ल काफी सफल साबित हो रहा है जिसकी देशभर में तारीफ हो रही है। इस दिशा में आप सरकार ने क्या–क्या उपाय किए और आगे की क्या योजनाएं हैं‚ इन तमाम मुद्दों पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने विशेष बातचीत की।


दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से से विशेष बातचीत करते हुए सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय

देशभर में कोरोना के खिलाफ चल रही जंग में दिल्ली मॉड़ल काफी सफल साबित हो रहा है जिसकी देशभर में तारीफ हो रही है। इस दिशा में आप सरकार ने क्या–क्या उपाय किए और आगे की क्या योजनाएं हैं‚ इन तमाम मुद्दों पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने विशेष बातचीत की। पेश है विस्तृत बातचीत– दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से विशेष बातचीत के दौरान सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय

कोरोना से लड़ाई में दिल्ली खुद को कहां पाती है ॽ शुरु आत में हालात बहुत खराब थे लेकिन अब दिल्ली के मॉडल की तारीफ हो रही है और देश के दूसरे हिस्सों में भी इसे स्वीकार किया जा रहा है। इस चुनौती से आप कैसे लड़े़ ॽ

जून में दिल्ली के हालात बहुत खराब हो गए थे। खासतौर पर जब लॉकडाउन हटा उसके बाद से लगातार स्थितियां खराब होती दिखाई दीं। अब हालात पूरी तरह से काबू में हैं और इसके लिए तीन सिद्धांतों ने हमारी मदद की। पहला सिद्धांत है कि हमें अकेले काम नहीं करना है‚ सबको साथ लेकर काम करना है। चाहे वह केंद्र सरकार हो‚ सामाजिक संस्थाएं हों‚ धार्मिक संस्थाएं हों‚ होटल हों या जो भी संस्था हों‚ हमने सभी को साथ लेकर काम किया जिससे अच्छे नतीजे आए हैं। यदि सभी मिलकर काम करें तो भारत दुनिया का नंबर–1 देश बन सकता है।

दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात है लगातार हो रही आलोचना को आप किस तरह से लेते हैं। आप आलोचना का जवाब आलोचना से दे सकते हैं लेकिन हमने उन चीजों को बकायदा लिखा और उन्हें दूर किया। उदाहरण के लिए एलएनजेपी अस्पताल को सबसे बड़ा खलनायक माना जा रहा था। मीडिया में उसे कोसा गया लगातार उसकी आलोचना हो रही थी। हमने उसकी कमियों को एक जगह पर लिखा और उन्हें ठीक किया।

तीसरा महत्वपूर्ण सिद्धांत है हार नहीं मानी। एक राज्य के स्वास्थ्य मंत्री तो यह कह रहे थे कि हालात इतने खराब हो जाएंगे कि सिर्फ भगवान ही बचा सकते हैं। अगर सरकार ही पस्त हो जाए तो आम जनता का भरोसा कैसे जीता जा सकता हैॽ भगवान भी उन्हीं की मदद करते हैं जो खुद मेहनत करते हैं। इसके अलावा भी हमने कुछ बातों पर जोर दिया। इनमें सबसे महत्वपूर्ण रहा होम आइसोलेशन। केंद्र इसके खिलाफ था और दिल्ली में होम आइसोलेशन को बंद कर दिया गया। जनता इससे काफी नाराज हुई और उनके दबाव में आकर उसको दोबारा शुरू किया गया। यदि यह आदेश वापस नहीं लिया जाता तो हालात बदतर हो जाते। दरअसल‚ लोगों में कोरोना का डर इस कदर बैठ गया था कि वह कोरोना टेस्ट नहीं करा रहे थे। बड़ा फायदा हुआ कि लोगों के मन का डर निकला और थोड़े भी लक्षण दिखाई दिए तो उन्होंने अपने बारे में जानकारी दी।

उत्तर प्रदेश में दो हफ्ते पहले ही दिल्ली के मॉडल को लागू किया गया है। आप इस पर क्या कहेंगेॽ
चाहे दिल्ली हो या उत्तर प्रदेश सब अपने ही लोग हैं। मेरा बस इतना निवेदन है कि दिल्ली मॉडल को तभी लागू किया जा सकता है जब इन सभी लोगों को ऑक्सीमीटर मुहैया कराए जाए। हर दो घंटे में उन्हें अपने ऑक्सीजन लेवल को नापना होगा। यदि ऑक्सीजन लेवल में कमी आती है तो फौरन अस्पताल को इन्फॉर्म किया जाना चाहिए। इसके अलावा डॉक्टर्स द्वारा लगातार काउंसलिंग भी बहुत जरूरी है। जो भी राज्य इस मॉडल को लागू करते हैं‚ उन्हें दिल्ली की तरह काउंसलिंग पर भी काफी काम करने की जरूरत है।

दिल्ली में कोरोना का रिकवरी रेट कितने फीसद हैॽ दिल्ली ने जंग जीत ली है या फिर अभी लंबी लड़ाई बाकी है ॽ

अब यहां 85 फीसद लोग ठीक हो रहे हैं। अपने घर में रहकर 90 फीसद से ज्यादा लोग ठीक हुए हैं। यानी होम क्वारेंटाइन का दिल्ली का फार्मूला कामयाब रहा है। पूरी दुनिया में सबसे पहले दिल्ली ने यह मॉडल दिया है। स्वीडन‚ पेरिस‚ अमेरिका जैसे किसी भी बड़े और विकसित देश ने इस मॉडल के बारे में नहीं सोचा। अब सभी इस मॉडल से सीख रहे हैं।

होम आइसोलेशन को लेकर आपकी बड़ी निंदा हुई थी। कहा गया था कि आप जिम्मेदारी से भागते हैं। लेकिन आज दूसरे राज्य भी होम आइसोलेशन को अपना रहे हैं‚ आपमें इस मॉडल को लेकर आत्मविश्वास कैसे जागाॽ

मई के अंत में ही हमने होम आइसोलेशन की शुरु आत कर दी थी। इसके साथ ही जैसा मैंने आपको बताया डेली काउंसलिंग पर हमने खासा जोर दिया। यदि कोई असिम्पटमेटिक भी होता है तो उसके भीतर कोरोना वायरस का डर इतना बैठ जाता है कि वह अस्पतालों की तरफ बढ़ता है। सीरियस मामलों को अस्पतालों में जगह नहीं मिल पाती है। इटली और अमेरिका जैसे बड़े–बड़े देशों में यही सबसे बड़ी परेशानी रही। सीरियस पेशेंट तो सड़कों पर पड़े रहे और असिम्पटेमेटिक पेशेंट की अस्पतालों में भीड़ लगी रही। होम आइसोलेशन‚ डेली काउंसलिंग और ऑक्सीमीटर घर पर देने से इस परेशानी में काफी कमी आई।

दिल्ली ने काफी हद तक कोरोना वायरस पर लगाम लगाई है लेकिन अब भी डर बना हुआ है। कई राज्यों में लॉकडाउन को बढ़ाने की खबरें भी आती रहती हैं। लॉकडाउन को आप किस तरह का विकल्प मानते हैं ॽ
अनलॉक के बाद से दिल्ली में कभी लॉकडाउन नहीं किया गया है। आपको यह देखना होगा कि केंद्र ने जब लॉकडाउन लगाया तो दो महीने के लॉकडाउन में क्या हुआ ॽ आप कोरोना जैसे संक्रमण को टाल तो सकते हैं लेकिन खत्म या कम नहीं कर सकते हैं। जब भी लॉकडाउन खुलता है फिर आप उसी स्थिति में होते हैं। लॉकडाउन का फायदा इतना हो सकता है कि यदि कोरोना वायरस से निपटने के लिए आपके अस्पताल और दूसरी व्यवस्था तैयार नहीं है तो कुछ समय लॉकडाउन कर आपको कोरोना संक्रमण को टाल सकते हैं। इतने समय में अपनी तैयारियों को दुरुस्त कर सकते हैं। मरीजों की तादाद बढ़ने से पहले आप खुद को पूरी तरह से तैयार कर सकते हैं। एक–दो दिन के लॉकडउन से तो यह फायदा भी नहीं होता। मुझे समझ में नहीं आता कि यह दो–तीन दिन के लॉकडाउन आखिर क्यों लगाए जाते हैं ॽ इससे तो लोगों की दिक्कतें ही बढ़ती हैं। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में इससे कोई फायदा नहीं मिलता।

अब कोरोना वायरस से ज्यादा बेरोजगारी का डर बैठने लगा है। लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था की कमर टूट जाती है। लॉकडाउन का क्या विकल्प हो सकता है ॽ
किसी भी राज्य को यदि लगता है कि उनके पास अस्पतालों में पुख्ता तैयारियां नहीं हैं या सुविधाओं की कमी है तो ही उन्हें लॉकडाउन लगाना चाहिए। उतने समय में उन्हें उन सुविधाओं पर काम करना चाहिए और उसके बाद लॉकडाउन पूरी तरह से हटा लेना चाहिए। क्योंकि जैसा मैंने कहा आप लॉकडाउन से कोरोना वायरस को कुछ समय के लिए टाल तो सकते हैं लेकिन कम या खत्म नहीं कर सकते।

आपके होम आइसोलेशन मॉडल को उत्तर प्रदेश ने भी अब अपनाया है लेकिन शुरु आत में इसकी बहुत निंदा हुई थी। इस मसले पर आप क्या कहना चाहेंगेॽ
बहुत निंदा हुई थी और यह गलत निंदा थी। केंद्र ने जब 23 और 24 जून को होम आइसोलेशन बंद किया था तब मीडिया में इसके खिलाफ जमकर आवाज उठी। मीडिया और आम जनता के दबाव में केंद्र सरकार को यह आदेश वापस लेना पड़ा था। होम आइसोलेशन के अलावा लगातार टेस्ट की बढ़ती तादाद और बेड्स को बढ़ाने से ही दिल्ली में हम हालात को काबू कर पाए हैं।

कोरोना के शुरुआती दौर में दिल्ली से भारी संख्या में प्रवासी मजदूरों का पलायन हुआ था। आनंद विहार की घटना के समय आप की भी आलोचना हुई थी। आखिर इन मजदूरों के बुरे हालात के लिए कौन जिम्मेदार है और प्रवासियों को वापस लाने के लिए दिल्ली सरकार की क्या योजना हैॽ
सभी मजदूर दिल्ली में बड़़ी तेजी से वापस आ रहे हैं। पहले कोरोना वायरस से सब गांव की तरफ जा रहे थे लेकिन अब उन जगहों पर कोरोना बढ़ रहा है और दिल्ली में लगातार घट रहा है। इसके साथ ही साथ लॉकडाउन हटने से आर्थिक  स्थितियां भी पहले से बेहतर हो रही हैं और लोग रोजगार के लिए दोबारा दिल्ली का रु ख कर रहे हैं। जहां तक प्रवासी मजदूरों की बदहाली का सवाल है‚ मैं इसके लिए गलत टाइमिंग को दोषी मानता हूं। केंद्र सरकार ने इंतजाम जरूर किए लेकिन मजदूरों को राहत देने के लिए किए गए इंतजामों में काफी देर कर दी थी। यदि समय से उन्हें घर वापस भेजने के इंतजाम किए जाते तो तकलीफ कम होती।

आप अक्सर कहते हैं कि दिल्ली सबकी है। इसके बावजूद महामारी *के समय में आपने कहा था कि दिल्ली में बाहरी लोगों का इलाज नहीं होगा ऐसा क्योंॽ
मई तक हालात काबू में थे। केंद्र सरकार ने एक वेबसाइट बनाई जिसमें आप अपने ताजा आंकड़ों को डालते हैं तो वह आगे के प्रोजेक्शन आपके सामने रख देती है। हमने जब अपने आंकड़ों को डाला तो हमें 31 जुलाई तक कोरोना के 5.5 लाख केस सामने आने का आंकड़ा दिया गया। साथ ही 80 हजार बेड्स की जरूरत बताई गई। यह आंकड़ा सचमुच चौंकाने वाला था। जुलाई तक यदि इतनी तादाद में केस होते तो हालात भयानक हो जाते। हम इन आंकड़ों को देख कर घबरा गए थे। दिल्ली में रहने वाले लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया हो पाएं‚ इसीलिए दो महीने के लिए हमने दिल्ली में रहने वाले लोगों के लिए अस्पताल रिजर्व करने की बात कही थी।

लॉकडाउन खुलने के बाद जून के पहले सप्ताह में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने के क्या कारण थेॽ और अब स्थिति में सुधार कैसे मुमकिन हुआॽ साथ ही वर्तमान स्थिति क्या है यह भी बताएंॽ
सारे पैरामीटर्स अब बेहतर होते जा रहे हैं। पॉजिटिव रेट जो पहले 100 में से 35 था वह अब 100 में से छह रह गया है। यानी कि पॉजिटिव केसों में काफी गिरावट आई है। जून में 30 तारीख को सबसे ज्यादा 4000 मामले सामने आए थे। वहीं अब के मामले 1000 से 1100 रह गए हैं। जून में प्राइवेट अस्पतालों में बेड खत्म हो गए थे। अब हमारे पास 16000 बेड हैं और 3000 मरीज हैं यानी 130000 बेड अभी खाली हैं। जहां जून में 100 लोगों की मौत हो रही थी तो अब यह आंकड़़ा 25 से 30 पर आ गया है। रिकवरी रेट भी लगातार बेहतर होती जा रही है। ये आंकड़े़ बताते हैं कि हमारे हालात में कितना सुधार आया है। लेकिन कोरोना संक्रमण अनिश्चित है इसलिए सारी तैयारियां रखनी होंगी। किसी भी वक्त इसका दूसरा पीक आ सकता है। इसके लिए जनता को भी जागरूक रहने की जरूरत है। मास्क का इस्तेमाल करना और अन्य गाइडलाइंस को फॉलो करना बहुत जरूरी है। देश को आगे बढ़ाना है तो इकोनामिक एक्टिविटीज को भी आगे बढ़ाना होगा। यह बात सिर्फ गरीबों की नहीं है। मिडल क्लास के लोग हों या दुकानदार हों इन सभी की सेविंग्स धीरे–धीरे खत्म हो रही हैं। उनकी आर्थिक स्थितियां भी गड़बड़ा रही हैं। कई दुकान वाले हैं जो आकर कहते हैं कि कई कर्मचारी हमारे यहां 20-20 वर्षों से काम कर रहे हैं जिन्हें छोड़ा भी नहीं जा सकता है और उन्हें पैसा देने की स्थिति भी नहीं है। अब इन हालात को भी हमें सुधारना है।

दिल्ली में केंद्र‚ राज्य‚ निगम अलग–अलग एजेंसियां काम करती हैं। क्या आप ये मानते हैं कि शुरुआत में समन्वय की कमी रही जिस वजह से लॉकडाउन खुलते ही कोरोना के मामले तेजी से बढ़ गएॽ
अकेले कोई भी लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है। सभी एजेंसीज को साथ में लेना पड़ता है। इसीलिए प्रेस कांफ्रेंस में हमने जब जुलाई में 5.5 लाख केसे सामने आने की बात रखी तो सबके सामने हाथ जोड़े। अच्छी बात यह है कि हम सबके पास गए और सभी ने खुले मन से हमारा साथ दिया। चाहे बीजेपी हो कांग्रेस हो या दूसरी एजेंसी‚ सभी ने मिल जुलकर काम किया है। हमारे कार्यकर्ताओं को आप आमतौर पर सोशल साइट्स पर लड़ते हुए देखते हैं लेकिन कोरोना के खिलाफ सभी पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने मिल जुलकर दिल्ली के लोगों की मदद की। कांग्रेस हो या बीजेपी‚ सभी की तरफ से शीर्ष नेताओं को सीधा मैसेज कार्यकर्ताओं को था कि राजनीति बाद में पहले जनता का हित और दिल्ली की सुरक्षा।

कोरोना संकट के चलते दिल्ली की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान हुआ हैॽ इस वजह से दिल्ली में विकास योजनाओं पर कितना असर पड़ा हैॽ अभी क्या स्थिति है और आगे अर्थव्यवस्था किस तरह सुधर पाएगीॽ
आप इसी बात से अंदाजा लगा लीजिए कि दिल्ली में पहले प्रतिमाह 4000 से 5000 करोड़़ रुपए टैक्स से आता था जो अब 400 से 500 करोड़ ही आ रहा है। यानी आमतौर पर मिलने वाले टैक्स का महल 1/10 हिस्सा ही आ पा रहा है। इससे हमें बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है लेकिन जल्दी ही हालात सुधरेंगे और अर्थव्यवस्था पटरी पर आएगी।

सरकारी कर्मचारियों को लेकर कई तरह की बातें कही जाती हैं। खासतौर पर उनके काम करने के तौर–तरीकों को। आपने किस तरह दिल्ली में सरकारी कर्मचारियों को प्रेरणा दीॽ

सबसे पहले तो मैं सभी कर्मचारियों‚ अधिकारियों‚ आशा वर्कर्स‚ मेडिकल स्टाफ एवं अन्य लोगों को बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि दिल्ली में कोरोना के खिलाफ लड़ाई में इनके बिना कुछ भी नहीं हो सकता था। कभी हमने इन्हें मोटिवेट किया तो कई मौकों पर इन लोगों ने भी हमें बहुत मोटिवेट किया। वैसे मैं कई लोगों को जानता हूं जिन्होंने दो 2-2- महीने तक अस्पतालों में रहकर ही लोगों की सेवा की। हम पहले लेडी विद द लैंप की कहानी सुना करते थे लेकिन आज हम इस तरह के लोगों को देख रहे हैं। इन सभी को मुख्यमंत्री की तरफ से प्रशंसा पत्र भी दिया जाएगा। साथ ही हमने यह भी कहा है कि कोरोना से लड़ाई लड़ते हुए किसी भी स्टाफ की यदि मौत होती है तो उसके परिजनों को एक करोड़ का मुआवजा दिया जाएगा। इन सभी प्रयासों से इन लोगों का मनोबल बढ़ता है।

दिल्ली सरकार बिजली और पानी समेत कई मुफ्त योजनाएं चला रही है। चुनाव के समय आपकी पार्टी ने हर झुग्गीवासी को पक्का मकान देने समेत 10 गारंटी कार्ड योजना का भी ऐलान किया था। क्या मौजूदा आर्थिक हालात का इन योजनाओं पर असर नहीं पड़ेगाॽ

सरकारों के पास पैसा तो होता ही है लेकिन उस पैसे के इस्तेमाल के लिए नीयत साफ होनी चाहिए। भ्रष्टाचार सबसे बड़ी समस्या है। दिल्ली सरकार ने इस भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई और जनता के पैसे का जनता के लिए वाजिब तरीके से इस्तेमाल किया और आगे भी करते रहेंगे। हमें राज्य सरकारों के लेनदेन की जांच करने वाली सबसे बड़ी संस्था सीएजी से मिला सर्टिफिकेट सब कुछ बताता है। दरअसल सीएजी वह संस्था है जिससे सभी डरते हैं और इसी सीएजी ने पांच साल का ऑडिट कर पूरे देश में सिर्फ दिल्ली सरकार को फायदे में बताया है। इससे पहले दिल्ली सरकार भी घाटे में रहती थी। सबसे बड़ी वजह थी भ्रष्टाचार। हमने भ्रष्टाचार को खत्म किया और पैसे को बचाया। जनता के पैसे का जनता के लिए इस्तेमाल किया। जो योजनाएं हैं उनमें अब थोड़ा विलंब होगा क्योंकि सरकारी कर्मचारियों को तनख्वाह देने में भी अभी दिक्कतें आ रही हैं लेकिन सभी योजनाओं को लागू किया जाएगा। अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से पटरी पर लाया जाएगा। कोरोना संकट में आर्थिक मुश्किलों का असर मेट्रो फेज–4 की योजना पर भी पड़ सकता है।

चुनाव के दौरान दिल्ली में बड़ी संख्या में सीसीटीवी लगाने का भी वादा किया गया था। इस वादे को लेकर अभी क्या स्थिति हैॽ
मेरे पास सही–सही आंकड़े तो नहीं हैं लेकिन लॉकडाउन के पहले ही कांट्रैक्ट हो चुका था। निश्चित तौर पर लॉकडाउन के दौरान काम नहीं हो पाया होगा। फिर भी काफी जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लग गए हैं। यह भी तय है कि जहां–जहां सीसीटीवी कैमरे लगे हैं वहां अपराधियों की पहचान करने में काफी मदद मिल रही है।

दिल्ली में शिक्षा के क्षेत्र में वाकई में परिवर्तन आया है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर कितना बेहतर हुआ है वह इसी बात से दिखता है कि इन स्कूलों में 12वीं के छात्रों का 98 फीसद तक रिजल्ट आया है। ये कैसे मुमकिन हुआॽ

यह 70 साल के इतिहास में पहली बार है जब किसी राज्य के सरकारी स्कूलों का रिजल्ट 98 फीसद आया हो। 21वीं सदी में यदि भारत का निर्माण करना है और हमें यूरोप‚ जापान जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी है तो सबसे महत्वपूर्ण चीज है शिक्षा। आप किसी भी विकसित राष्ट्र को देखें तो आप पाएंगे वहां पर जो भी लोग हैं वे ठीक–ठाक पढ़ाई करने वाले होते हैं। हमारे यहां चुनाव में बड़े–बड़े वादे किए जाते हैं। मेरा कहना है इन लोगों से पूछा जाना चाहिए कि आप शिक्षा को लेकर क्या कर रहे हैंॽ शिक्षा ही हमारा आधार है। हमने अपनी राजनीति की शुरुआत इसी विश्वास के साथ की थी। जब हम दिल्ली में आए तो स्कूलों में बच्चियों के लिए टॉयलेट तक की व्यवस्था नहीं थी। साफ–सफाई के बुरे हालात थे। पानी नहीं था‚ स्कूल टूटे–फूटे थे। हमने इन सभी चीजों पर काम किया। काम करना आसान था क्योंकि आपको इंस्ट्रक्चर के लिए पैसा लगाना था। हमने यह पैसा इंस्ट्रक्चर डेवलपमेंट पर लगाया। आज हमारे स्कूलों में स्विमिंग पूल और लिफ्ट जैसी सुविधाएं भी है जो कई प्राइवेट स्कूलों में भी आपको देखने को नहीं मिलेगी। पहले स्कूलों के लिए बजट 5000 करोड़ का बजट था जिसे हमने बढ़ाकर 15 हजार करोड़ किया। प्रिंसिपल और टीचर्स को मोटिवेट करने के लिए हमने खास ट्रेनिंग दी। प्रिंसिपल को विदेशों में भेजा गया। कई नामी यूनिवर्सिटीज में उन्होंने ट्रेनिंग ली। वहीं दिल्ली के सरकारी शिक्षकों को हमने आईआईएम जैसे संस्थानों में भेजा। इससे प्रिंसिपल और शिक्षकों में भी एक आत्मविश्वास बढ़ा। बच्चों में भी एक नई उम्मीद जागी। जब हम सरकार में आए थे तो मन के कोने में एक शंका थी। नारे लगाना आसान होता है लेकिन सपनों को हकीकत बनाना मुश्किल। हालांकि इस शंका से ऊपर उठकर पांच साल में हमने सरकारी स्कूलों को बेहतर करने में काफी सफलता हासिल कर ली।

दिल्ली सरकार की योजनाओं के साथ–साथ केंद्र की कई योजनाएं भी होती हैं। इनमें गरीब कल्याण योजना हो या घर–घर राशन की योजना हो। इन्हें लेकर भी केंद्र और आप आमने सामने रहते हैं। खासतौर पर राशन की व्यवस्था को लेकर आप क्या कहेंगेॽ

इन योजनाओं को लेकर हमारे बीच कोई विरोधाभास नहीं है। जहां तक राशन को लेकर उठ रहे सवाल हैं तो मैं स्पष्ट कर दूं कि न राशन की दुकानें खुलती हैं और न ही लोगों को वहां सम्मान मिलता है। सामान में मिलावट होती है। झूठे अंगूठे लगाकर लोगों का राशन कोई और उठा लेता है। अपने आंदोलन के दिनों में ही मैं एक एनजीओ चलाता था। हमने झुग्गियों में रहकर इस पर काफी काम किया। सूचना के अधिकार के तहत हमने राशन के बारे में सही जानकारियां निकलवाइ। इस आंदोलन के दौरान हम पर कई खतरनाक हमले हुए। तभी से मैं सोचा करता था कि कभी राशन के सिस्टम को सुधारने पर काम करेंगे। उस वक्त यह नहीं सोचा था कि एक दिन दिल्ली की जिम्मेदारी ही मिल जाएगी और यह सारा काम हम कर पाएंगे। निश्चित तौर पर जब हम इस काम को देख रहे हैं तो इसकी खामियों को दूर कर इसे बेहतर कर रहे हैं। अब पैकेट में आटा‚ चीनी चावल सभी चीजें पैक कर के घर–घर पहुंचाया जा रहा है।

दिल्ली दंगों की आंच आपकी पार्टी तक भी पहुंची है। पुलिस की भूमिका को लेकर भी कई टिप्पणियां आ रही हैं। दिल्ली दंगों पर आप क्या कहना चाहेंगेॽ
दिल्ली देश की राजधानी है और ऐसे में इन दंगों से पूरी दुनिया में एक गलत मैसेज गया है। यह दंगे बहुत ही गलत हैं और दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। चाहे वह किसी भी पार्टी के क्यों न हों। बस इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि निर्दोष को किसी भी तरह से फंसाया न जाए और दोषी को सख्त से सख्त सजा हो। मैंने दंगे के दौरान भी इन इलाकों का दौरा किया था। इस पर कोर्ट ने भी पहले टिप्पणी की है कि जांच एक ही दिशा में जा रही है। मेरा मानना है कि ट्रायल पूरी तरह से साफ होना चाहिए। पूरी दुनिया में एक सिस्टम बनाया गया है जिसमें जांच और मुकदमा दोनों अलग–अलग पहलू होते हैं। जहां पुलिस का रोल खत्म हो जाता है वहां कोर्ट का और वकीलों का रोल शुरू होता है। सरकारी वकील पुलिस से पूरी तरह इंडिपेंडेंट होता है। पुलिस अपनी जांच रिपोर्ट रखती है। सरकारी वकील तथ्यों को पेश करता है और कोर्ट उस पर निर्णय लेता है। दिल्ली के मामले में पुलिस केंद्र के अधीन है तो वकील को नियुक्त करने का अधिकार दिल्ली सरकार के पास है। अब केंद्र सरकार कह रही है कि केंद्र के ही वकीलों को लगाया जाए। इस पर हमारा विरोध है।

संविधान में लेफ्टिनेंट गवर्नर को भी कई अधिकार दिए गए हैं। वह असहमत हो सकते हैं और उनकी बातों को मानने के लिए हम बाध्य होंगे। जून के महीने में एलजी साहब ने केंद्र के 11 वकीलों को लगा दिया जबकि कोर्ट का भी ऐसा मानना है कि रेयरेस्ट ऑफ द रेयर केस में ही एलजी को अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए। मैं इन दंगों को इस तरह का मामला नहीं मानता। देखिए‚ कुल मिलाकर हमारा मकसद है इस पूरे मामले में न्याय मिलना चाहिए। दोषी को सजा होनी चाहिए और कोई भी निर्दोष पकड़ा नहीं जाना चाहिए।

केंद्र और आपका विरोध बहुत पुराना है लेकिन हाल के दिनों में आप का अंदाज बहुत सौम्य हो गया है। आप पहले बहुत तीखे प्रहार करते थे लेकिन उन्हीं बातों को अब बड़ी सौम्यता से रखते हैं। यह बदलाव कैसे आया ॽ
मेरा एक ही मकसद है दिल्ली और दिल्ली के लोगों का विकास। इसके लिए मैं किसी के भी पैर पकड़ने को तैयार हूं। सिर्फ लड़ने के लिए नहीं लड़ना चाहिए। मतभेद वहीं होना चाहिए जहां पर समाज का अहित दिख रहा हो। कोरोना के खिलाफ लड़ाई के लिए मिलकर काम करना ही एकमात्र तरीका है। होम आइसोलेशन के मुद्दे पर हमने केंद्र का जमकर विरोध किया क्योंकि हमें पता था होम आइसोलेशन पर रोक लगाना गलत है। हम मुद्दों की राजनीति करते हैं‚ नीचा दिखाने की राजनीति नहीं करते। आज भी जहां जरूरत होगी हम सहयोग मांगेंगे और जहां लगेगा कि विरोध करना चाहिए वहां विरोध करेंगे।

पिछले एलजी साहब के साथ आपके काफी मतभेद रहे। उन्होंने आपके हर निर्णय को चुनौती दी। बाद में *सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले में दखल दिया। यह दखल आपके लिए कितना महत्वपूर्ण हैॽ
जब दिल्ली में शीला दीक्षित जी की सरकार थी तो उनके पास सारे अधिकार थे। जैसे ही हमारी सरकार दिल्ली में बनी‚ केंद्र ने एक आदेश पारित किया और हमारे वह सारे अधिकार ले लिए गए। मैं किसी अधिकारी का न तो ट्रांसफर कर सकता था और न ही उसे सस्पेंड कर सकता था। ये अधिकार सरकारी कार्यप्रणाली पर लगाम लगाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। हाईकोर्ट ने और आगे बढ़कर दिल्ली सरकार के अन्य अधिकारों के बारे में भी कह दिया कि एलजी ही सारे फैसले लेंगे। इस पूरे मसले पर सुप्रीम कोर्ट से हमें राहत मिली और सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि दिल्ली सरकार के ये अधिकार हैं। इसके बाद जो हमारे विवाद होते थे उनमें काफी कमी आ गई है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से हमें बहुत राहत मिली।

चीन के मुद्दे पर कई बातें हो रही हैं। विरोध और विवाद अब भी बना हुआ है। आप इस मामले को किस तरह देखते हैंॽ
भारत ने चीन के साथ हमेशा दोस्ती का प्रयास किया है लेकिन चीन ने हमेशा पीठ में छुरा भोंका है। चीन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। 1962 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी इसी तरह का प्रयास किया था और उन्हें भी धोखा मिला था। हमें चीन से दोस्ती तो करनी है लेकिन सावधान भी रहना होगा। इस वक्त चीन ने हमारी जमीन को कब्जा लिया है। हमने उनके ऐप बंद किए हैं। इन सब बातों को तो हम देख ही रहे हैं लेकिन सबसे पहले हमें हमारी जमीन वापस मिलनी चाहिए। जमीन मिलेगी तभी हमारे 20 सैनिकों की शहादत सफल होगी। भारत एक सक्षम राष्ट्र है। हम अब कमजोर नहीं है। हम बराबरी के स्तर पर आकर दोस्ती करेंगे लेकिन पूरा देश इस वक्त प्रधानमंत्री से यही मांग कर रहा है कि हमें हमारी जमीन वापस दिलवाओ।

देश में विपक्ष कहीं दिखाई नहीं पड़ता है। कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी थी वह भी अब पूरी तरह से बिखर रही है। यह भी कहा जाता है कि यदि विपक्ष मजबूत न हो तो सरकार निरंकुश हो जाती है। आप दिल्ली तक ही सीमित हैं। आगे के सफर के बारे में क्या विचार किया हैॽ आपने कुछ प्रयास किए भी थे। दिल्ली से बाहर कब निकलेंगेॽ
मुझे इस वक्त पूरे देश की चिंता है। आज हमारे सामने बड़े–बड़े संकट हैं। एक तरफ चीन हमारे घर में घुस आया है तो दूसरी तरफ कोरोनासे हमारी लड़ाई जारी है। ऐसे में देश की दो राष्ट्रीय स्तर की पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी राजस्थान में लड़ाई लड़ रही हैं। देश को कौन बचाएगा ॽ क्या बीजेपी और कांग्रेस को देश की चिंता है ॽ निश्चित तौर पर एक विपक्ष के लिए एक वैक्यूम बना हुआ है। अब इस वैक्यूम को कौन भरेगा ॽ यह तो आने वाला समय ही बताएगा। यह बात भी सही है कि पूरे देश में लोग दिल्ली सरकार की इज्जत करते हैं। वह हमारे अस्पतालों की व्यवस्था और शिक्षा की व्यवस्था को देखते हैं लेकिन देश भर में हमारे पास संगठन नहीं है। राष्ट्र के स्तर पर चिंता करनी चाहिए। जिस तरह हमने दिल्ली में सबको साथ लेकर कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। राष्ट्रीय स्तर पर भी सभी को साथ लेकर बड़े मुद्दों के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी। राष्ट्रवाद कहने से राष्ट्रवाद नहीं आएगा। एमएलए की खरीद–फरोख्त राष्ट्रवाद नहीं है। कम से कम यह वक्त तो इस सब राजनीति का नहीं है। '

प्रधानमंत्री मोदी के बारे में आप क्या कहेंगेॽ उन्होंने राष्ट्रवाद की पताका को हाथ में थाम रखा है और लोगों ने भी उन पर भरोसा जताया है। निश्चित तौर पर असहिष्णुता जैसे मुद्दे भी उठते रहे हैं लेकिन उनके बारे में आपकी क्या राय है ॽ
पूरे देश ने उन्हें चुनकर भेजा है। देश की उम्मीदों को उन्हें पूरा करना चाहिए। देश तभी आगे बढ़ता है जब सभी धर्म के लोग साथ मिलकर काम करते हैं। भारत को भगवान ने दुनिया में सबसे खूबसूरत देश बनाया है। यहां सब कुछ है। नदियां हैं‚ पहाड़ हैं‚ वनस्पतियां हैं। सबसे तेज दिमाग इंसान भी यही पैदा होते हैं। जब यही लोग विदेशों में जाते हैं तो कमाल कर देते हैं। आज दुनिया की कई बड़ी–बड़ी कंपनियों के सीईओ भारतीय ही हैं लेकिन जब यही लोग भारत में होते हैं या आते हैं तो सब गड़बड़ हो जाता है। दरअसल समस्या की जड़ है हमारी व्यवस्था। इस व्यवस्था को सुधारना होगा और भारत एक दिन नंबर वन जरूर बन सकता है।

सहारा न्यूज़ ब्यूरो
नई दिल्ली


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