राजनीतिक दलों को RTI की समयसीमा समाप्त,पसोपेश में सरकार
केंद्रीय सूचना आयोग की राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाने की समयावधि सोमवार को खत्म हो रही है.
राजनीतिक दलों को आरटीआई से बाहर रखने की समयसीमा समाप्त (फाइल फोटो) |
उधर राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लिया जाना चाहिए या नहीं, इस पर सरकार ने अब तक इस बात पर कोई फैसला नहीं लिया है.
आरटीआई एक्ट को लागू करने की जिम्मेदारी निभाने वाले डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) के अधिकारियों के मुताबिक सरकार राजनीतिक पार्टियों को इस पारदर्शिता कानून से बाहर रखने के लिए अध्यादेश लाने को ज्यादा उत्साहित नहीं है.
प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाला डीओपीटी इसके लिए सिविल सोसायटी से सलाह मशविरा कर सकता है. इसके बाद ही अध्यादेश लाने पर फैसला लिया जाएगा.
आरटीआई एक्ट में संशोधन को लेकर कानून मंत्रालय ने पहले ही स्वीकृति दे दी है. अगर आरटीआई एक्ट में किए गए संशोधन को सभी हित धारकों की मंजूरी मिल जाती है तो इसे मानसून सत्र में पेश किया जा सकता है.
केंद्रीय सूचना आयोग ने कांग्रेस, भाजपा, एनसीपी, माकपा, भाकपा और बसपा को सूचना अधिकारी नियुक्त करने के लिए छह हफ्ते का समय दिया था, जो आज खत्म हो रहा है.
एक्ट में संशोधन करने की तैयारी
माना जा रहा है कि डीओपीटी आरटीआई एक्ट के अनुच्छेद 2 में संशोधन कर राजनीतिक पार्टियों को बचा सकता है.
गौरतलब है कि 3 जून को सीआईसी ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद आदेश जारी कर कहा था कि राजनीतिक दलों को हर प्रकार के रिकॉर्ड की मांगी गई जानकारी लोगों को देना चाहिए.
इस आदेश के तहत राजनीतिक दलों को अब हर वह जानकारी देनी होगी कि उन्हें पैसा कहां से मिलता है और वह किस प्रकार खर्च किया जाता है. दलों को यह भी बताना पड़ सकता है कि वह किस प्रकार अपने प्रत्याशियों का चुनाव करते हैं.
अपने आदेश में सीआईसी ने यह भी कहा था कि राजनीतिक दल सरकार से तमाम फंड प्राप्त करते हैं जो जनता का पैसा है और इसलिए उनकी जवाबदेही जनता के प्रति है.
सीआईसी ने कहा था कि तमाम दलों को सरकार जमीन, सरकारी आवास दिए गए हैं. आयकर में छूट दी जाती है और चुनावों के समय रेडियो और दूरदर्शन पर समय दिया जाता है.
सीआईसी का यह आदेश जाने-माने वकील प्रशांत भूषण और आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल की याचिकाओं पर दिया गया था.
सीआईसी ने आदेश दिया था कि बड़े राजनीतिक दल आरटीआई के तहत आते हैं और उनकी जवाबदेही जनता के प्रति है. राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे की पूरी जानकारी आरटीआई के तहत देने को कहा था.
बताया जा रहा है कि सरकार 'सार्वजनिक संस्था' की परिभाषा में बदलाव कर राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे से बाहर करने का विचार कर रही है.
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