भीमसेन भारतीय संगीत के हस्ताक्षर
प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक एवं भारतरत्न से सम्मानित भीमसेन जोशी भारतीय संगीत के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर रहे.
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भीमसेन जोशी का जन्म 4 फरवरी 1922 को कर्नाटक के धारवाड़ में हुआ था. बचपन में ही किराना घराने की नींव रखने वाले अब्दुल करीम खान की आवाज इनके कानों में पड़ी और उन्होंने ठान लिया कि वो संगीत को अपना सुर देंगे.
11 साल की उम्र में भीमसेन जोशी गुरु की तलाश में घर से निकल पड़े. तीन साल तक दिल्ली, कोलकाता, ग्वालियर, लखनऊ और रामपुर की खाक छानते रहे. साथी मुसाफिरों से पैसे मांगकर ट्रेन का सफर किया. बड़ी मुश्किल से पिता किसी तरह वापस लेकर आए.
जिस गुरु की तलाश में वे शहर दर शहर भटकते रहे. वो घर के पास धारवाड़ में ही मिले. अब्दुल करीम खान के शिष्य गुरु सवाई गंधर्व से उन्होंने संगीत की शिक्षा ली. सवाई गंधर्व आवाज सुनकर भीमसेन को संगीत जगत में आने की प्रेरणा मिली.
भीमसेन ने उनके घर में ही रहकर, घर के काम करते हुए गुरु-शिष्य परंपरा से 1940 तक गायकी की बारीकियां सीखीं.
1943 में मुंबई पहुंचे और रेडियो कलाकार के तौर पर काम करना शुरू किया. 19 साल की उम्र में उन्होंने पहली लाइव परफॉरमेंस दी.
सालों की कठिन साधना उनकी आवाज में साकार होई. मंद्र के सुरों में गंभीरता और गमक, रागों में स्वरों की सफाई, द्रुत लय में बिजली की तरह
मध्य से तार सप्तक की तानें, बोल बनाव और बेहतरीन तिहाइयां पंडित जी की खूबियां रही. मिया की तोड़ी, पूरिया धनाश्री, दरबारी, रामकली, शुद्ध कल्याण, मुल्तानी और भीमपलासी उनके पंसदीदा राग रहे.
भीमसेन को खयाल गायकी का स्कूल कहा जाता है. संगीत के छात्रों को बताया जाता है कि खयाल गायकी में राग की शुद्धता और रागदारी का सबसे सही तरीका सीखना है तो जोशीजी को सुनो.
शास्त्रीय संगीत के अलावा भीमसेन ने कन्नड़, संस्कृत, हिंदी और मराठी में ढेरों भजन और अभंग गाए. उन्होने पं हरिप्रसाद चौरसिया, पं रविशंकर और
बालमुरलीकृष्णा जैसे दिग्गजों के साथ कई यादगार जुगलबंदियां की.
उन्होंने कई फिल्मों के लिए भी गाया. बसंत बहार में मन्ना डे के साथ मुकाबले वाला गीत 'केतकी गुलाब जुही' काफी चर्चित हुआ.
संगीत को अपना जीवन देनेवाले भीमसेन को देश का भी भरपूर प्यार मिला. संगीत नाटक अकादमी, पद्म भूषण समेत अनगिनत सम्मान के बाद 1988 में जोशी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया. जोशीजी नहीं रहे लेकिन उनकी आवाज हिंदुस्तानी गायकी की धरोहर बनकर हमेशा गूंजती रहेगी.
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