Lohri 2025: जानिए कौन है दुल्ला भट्टी जिसके गीत के बिना लोहड़ी है अधूरी, पढ़ें इसकी पौराणिक कथा
मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाने वाला लोहड़ी का पर्व उत्तर भारत और खासकर पंजाब में काफी महत्व रखता है।
|
नया साल शुरू होते ही सबसे पहला त्यौहार लोहड़ी मनाया जाता है। यह त्यौहार ऋतु परिवर्तन और पंजाब में नई फसल आने के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है। अच्छी फसल होने की खुशी में ढोल नगाड़ों पर रंग-बिरंगे दुपट्टे लहराते हुए गिद्दा करती महिलाएं भारत की सांस्कृतिक विविधता में चार-चांद लगा देती हैं।
लोहड़ी की धूम देखनी हो तो गेहूं उत्पादन में देश में खास स्थान रखने वाले पंजाब से बेहतर भला और कौन सा राज्य हो सकता है। गेहूं की फसल अक्टूबर में बोई जाती है और मार्च अप्रैल तक पक कर तैयार हो जाती है। लेकिन जनवरी में संकेत मिल जाता है कि फसल अच्छी हो रही है या नहीं। अच्छी फसल का संकेत मिल जाए तो किसानों के लिए इससे बड़ा जश्न और कोई नहीं होता। यह खुशी वह लोहड़ी में जाहिर करते हैं।
इस पर्व के दौरान किसान यह कह कर सूर्य भगवान का आभार व्यक्त करते हैं कि उनकी गर्मी से अच्छी फसल हुई। इसीलिए इस पर्व का संबंध सूर्य से माना जाता है। लोहड़ी जाड़े की विदाई का भी संकेत होता है। माना जाता है कि लोहड़ी के अगले दिन से सूर्य मकर राशि यानी उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करता है।
लोहड़ी पर्व की कथा: द्वापरयुग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया. तब कंस सदैव बालकृष्ण को मारने के लिए नित्य नए प्रयास करता रहता था. एक बार जब सभी लोग मकर संक्रांति का पर्व मनाने में व्यस्त थे तब कंस ने बालकृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा, जिसे बालकृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला. लोहिता नामक राक्षसी के नाम पर ही लोहड़ी उत्सव का नाम रखा. उसी घटना की स्मृति में लोहड़ी का पावन पर्व मनाया जाता है.
लोहड़ी पर प्रचलित कथा: लोहड़ी का पर्व विशेष रूप से मुगलकाल में घटी एक घटना से जुड़ा हुआ है। इसे दुल्ला भट्टी की याद में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मुगलकाल में एक विख्यात डाकू दुल्ला भट्टी वाला था। वह नेकदिल था और गरीबों की भलाई करता था। अमीरों को लूटकर जरूरतमंदों की मदद करता थान चूंकि वह गरीबों का हमजोली था इसलिए हमेशा ही बच निकलता था। एक गरीब ब्राह्मण की लड़की थी जिसका नाम सुंदर मुंदरिये थान गरीब ब्राह्मण ने दुल्ला भट्टी डाकू से बेटी की शादी में मदद के लिए फरियाद कीन इस पर ब्राह्मण की बेटी का भाई बनकर दुल्ला ने शादी करायी लेकिन अंत में दुल्ला मारा गया। इसीलिए यह पर्व प्रेम और भाईचारे का प्रतीक बन गया।
पंजाब में इस दिन बच्चे सुबह से ही घर-घर जाकर लकड़ियां मांगते हैं। लोहड़ी के लिए लकड़ियां एकत्र करते समय दुल्ला भट्टी की प्रशंसा में ही गीत गाए जाते हैं।
‘सुंदर मुंदरिये होय, तेरा कौन बेचारा होय। दुल्ला भट्टी वाला होय, दुल्ले धी बिआई होय। सेर शक्कर पाई होय, कुड़ी दे बोझे पाई होय, कुड़ी दा लाल हताका होय। कुड़ी दा सालु पाटा होय, सालू कौन समेटे होय.’ लोहड़ी के दिन यह गीत भी खूब गाया जाता है।
‘देह माई लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी, तेरे कोठे ऊपर मोर, रब्ब पुत्तर देवे होर, साल नूं फेर आवां।’
एकत्र की गई लकड़ियां रात को जलाई जाती हैं और इसके आसपास लोग परिक्रमा करते हैं। इन लकड़ियों के नीचे गोबर से बनी लोहड़ी की प्रतिमा रखी जाती है। एक तरह से यह भरपूर फसल और समृद्धि के लिए अग्नि की पूजा होती है। परिक्रमा के दौरान लोग आग में तिल और सूखा गन्ना डालते हैं। परिवार के छोटे सदस्य बड़ों के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेते हैं। नवविवाहित जोड़ों और नवजात शिशु के लिए इस पर्व को अत्यंत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन मायके और ससुराल दोनों जगहों से उपहार मिलते हैं। नवजात शिशु को बुजुर्ग कंघा भेंट करते हैं. इस सौभाग्यसूचक माना जाता है।
लोहड़ी पर पूजा के बाद गजक, गुड़, मूंगफली, फुलियां, पॉपकॉर्न का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस दिन मक्की की रोटी और सरसों का साग, गन्ने के रस और चावल
से बनी खीर बनाने की परंपरा है। इस दिन पतंग उड़ाने की भी परम्परा है। पूरा आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से सजा नज़र आता है। चंद्रमा आधारित कैलेंडर का आखिरी महीना मारगजी लोहड़ी के दिन समाप्त हो जाता है।
| Tweet |