Kamada Ekadashi Vrat Katha : इस पौराणिक कथा के बिना अधूरा है कामदा एकादशी का व्रत

Last Updated 18 Apr 2024 08:55:01 AM IST

kamada ekadashi 2024 vrat katha : इस साल कामदा एकादशी का व्रत 19 अप्रैल 2024 को रखा जाएगा। कामदा एकादशी का व्रत करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।


Kamada Ekadashi Vrat Katha

Kamada Ekadashi Vrat Katha : हिन्दू शास्त्रों के अनुसार एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु अपने भक्तों से प्रसन्न होकर उन्हें मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के रूप में जाना जाता है। चैत्र नवरात्रि और राम नवमी के बाद यह पहली एकादशी है। पूरे साल कुल 24 एकादशी पड़ती हैं जिसमें से एक कामदा एकादशी है। ये व्रत 19 अप्रैल 2024 को रखा जाएगा।  इस व्रत का बहुत महत्व है। यह व्रत करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। भगवान विष्णु के भक्तों को यह व्रत ज़रूर करना चाहिए। इसे करने से मनुष्य भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ को प्राप्त करता है। जो लोग इस व्रत को रखते हैं उन्हें कामदा एकादशी की कथा भी जरुर पढ़नी चाहिए। तो चलिए यहां आपको कामदा एकादशी की कथा बताते हैं।  

कामदा एकादशी कथा - Kamada Ekadashi Vrat Katha 

प्राचीन समय में भागीपुर नामक एक नगर था, जिस पर पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। राजा पुण्डरीक सभी प्रकार के यश, वैभव और धन से परिपूर्ण था। उसी नगर में ललित और ललिता नाम के गायन विद्या में पारन्गत गन्धर्व स्त्री-पुरुष भी रहते थे।  उन दोनों में इतना प्रेम था कि वे अलग हो जाने की कल्पना मात्र से परेशान हो जाते थे। एक बार राजा पुण्डरीक गन्धर्वों सहित सभा में विराजमान थे। वहाँ गन्धर्वों के साथ ललित भी गायन कर रहा था। उस समय ललिता वहाँ नहीं थी।

तब ललित के मन में उसकी पत्नी का ख्याल आ गया जिसके कारण वह गलत और अशुद्ध गायन करने लगा। नागराज कर्कोटक ने राजा पुण्डरीक से उसकी शिकायत की। इस पर राजा को गुस्सा आया और क्रोधवश ललित को श्राप दे दिया। राजा ने कहा गायन के समय तुमने अपनी पत्नी को याद किया इसलिए तुम अब नरभक्षी दैत्य बनकर अपने कर्मों का फल भोगोगे।

ललित गन्धर्व उसी समय दैत्य के रूप में बदल गया,जिसके कारण वह अनेक दुख भोगने लगा। उसकी हालत देखकर उसकी पत्नी विलाप करने लगी और उसकी मुक्ति का उपाय सोचने लगी।एक दिन ललिता अपने पति के पीछे-पीछे चलते हुए विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गई।

उस स्थान पर उसने श्रृंगी मुनि का आश्रम देखा और अपनी परेशानी श्रृंगी मुनि को सुनाई और अपने पति का राक्षस योनि से मुक्ति का उपाय पूछा।  सारी बात सुनकर मुनि श्रृंगी ने उसे कामदा एकादशी के व्रत के बारे में बताया और कहा पूरे विधि विधान से इस व्रत को कर के अगर इसका पुण्य अपने पति को दोगी तो वह राक्षस योनि से मुक्त हो जायेगा। 

व्रत के फलस्वरूप उसे अपना पति पुरानी अवस्था में प्राप्त हुआ। इस प्रकार दोनों का जीवन कष्टों से मुक्त हो गया और श्री हरि का भजन-कीर्तन करते हुए अंत में दोनों को मोक्ष की प्राप्ति हुई।

प्रेरणा शुक्ला
नई दिल्ली


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