Baisakhi 2024 : क्यों मनाया जाता है बैसाखी का त्यौहार? जानें इस दिन का इतिहास
Baisakhi 2024 : आज देशभर में बैसाखी का पर्व मनाया जा रहा है। सिखों के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है बैसाखी। यह पर्व पंजाब और हरियाणा में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
Baisakhi 2024 |
इस दिन सौर कैलेण्डर के आधार पर सिख नए साल का पर्व मनाते हैं। इसके अलावा इस दिन को खालसा पन्थ की स्थापना दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। बैसाखी को विसाखी अथवा बैसाखी के नाम से भी जाना जाता है। तो चलिए आपको बताते हैं कैसे मनाई जाती है बैसाखी और क्या है इसका महत्व।
कैसे मनाते हैं बैसाखी का पर्व?
आज (13 अप्रैल 2024 ) को देशभर में बैसाखी का त्यौहार मनाया जा रहा है। बैसाखी के दिन सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारा जाते हैं और गुरु वाणी भी सुनते हैं।
इसके साथ ही घरों में विशेष पूजा - पाठ करते हैं। बैसाखी के दिन लोग भांगड़ा और गिद्दा करते हैं, साथ ही एक दूसरे के गले मिलकर बैसाखी की शुभकामनाएं देते हैं। घरों में इस पर्व पर शरबत और विशेष पकवान बनाए जाते हैं।
बैसाखी पर्व का इतिहास
साल 1699 में सिखों के दसवें व अन्तिम सिख गुरु, गुरु गोविन्द सिंह ने बैसाखी पर्व की शुरुआत की थी। इसकी स्थापना के पीछे भेदभाव को समाप्त कर सभी लोगों को समान अधिकार देने का उदेश्य था। इस दिन गुरु परम्परा को समाप्त कर दिया गया तथा गुरु ग्रन्थ साहिब को शाश्वत मार्गदर्शक एवं सिख धर्म का पवित्र ग्रन्थ घोषित किया गया।
बैसाखी को किस- किस नाम से बुलाया जाता है?
कई जगहों पर बैसाखी को कृषि उत्सव के नाम से जाता है। इसके अलावा असम में बिहू, बंगाल में नबा वर्षा, केरल में पूरम विशु कहा जाता है।
इस दिन को कृषि उत्सव क्यों कहा जाता है?
सूर्य की स्थिति में बदलाव होने के कारण धूप तेज़ होने लगती है और गर्मी शुरू हो जाती है, जिससे फसल पकने लगती है इसलिए इसे कृषि उत्सव कहा जाता है। अप्रैल के महीने में सर्दी पूरी तरह से खत्म हो जाती है और गर्मी शुरू होती है।
बैसाखी के दिन क्या किया जाता है?
• सिख समुदाय के लोग इस दिन एक साथ इकट्ठा होकर पंजाब का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा करते हैं।
• इसके अलावा शाम को आग के आसपास इकट्ठे होकर लोग नई फसल की खुशियाँ मनाते हैं।
• इस मौके पर लोग गुरुद्वारों में अरदास के लिए इकट्ठे होते हैं।
• बैसाखी का मुख्य समारोह आनंदपुर साहिब में होता है, जहाँ सबसे पहले पंथ की नींव रखी गई थी।
• इस मौके पर सभी जगह सुबह 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को समारोहपूर्वक कक्ष से बाहर लाया जाता है।
• इस दिन दूध और जल से स्नान करवाने के बाद गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर बैठाया जाता है।
बैसाखी को आवत पौनी क्यों कहते हैं?
यह एक परंपरा है जो कटाई से जुड़ी हुई है, जिसमें लोगों को गेहूं काटने के लिए एक साथ इकट्ठा किया जाता है।
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