निर्विकल्प
बहुत सरल है निर्विकल्प दशा को उपलब्ध करना। अत्यंत सरल, उससे सरल कोई बात ही नहीं है, लेकिन ये जो तीन बातें मैंने पहली कही, ये बड़ी कठिन हैं।
![]() आचार्य रजनीश ओशो |
और इन तीन को जो नहीं कर पाता वह उस अत्यंत सरल बात को भी नहीं कर पाता। वह चौथी सीढ़ी है। इन तीन को पार करके ही उसे पार किया जा सकता है। वह तो बहुत सरल है। कठिनाई है इन तीन बातों की-विश्वास को, अनुकरण को, आदर्श को त्यागने में बड़ी कठिन, बड़ा आर्डुअस, बड़ा श्रम है, लेकिन चौथी बात बहुत सरल है। जो इन तीन बातों को कर ले, चौथी बात करनी ही नहीं पड़ती, बड़ी सरलता से हो जाती है।
उस सूत्र के संबंध में अंत में थोड़ी सी बात आपको समझाऊं, लेकिन इन तीन को किए बिना वह नहीं हो सकेगा। जैसे कोई हमसे पूछे कि हम फूल कैसे पैदा करें? मैं कहूंगा, फूल पैदा करना बड़ी सरल बात है। फूल पैदा करने में कुछ करना ही नहीं पड़ता, लेकिन बीज लगाने में बड़ी मदद करनी पड़ती है। पानी सींचने में, खाद डालने में बड़ी मेहनत करनी पड़ती है। पौधे की सम्हाल करने में, बागुड़ लगाने में बहुत श्रम उठाना पड़ता है। फिर जब सब संभल जाती है बात, बीज अंकुर बन जाता, खाद मिल जाती, पानी मिल जाता, चारों तरफ सुरक्षा हो जाती है पौधे की, तो फूल तो अपने आप आ जाते हैं, लेकिन आप कहें कि हमको तो सिर्फ फूल लाना है, तब मामला बहुत कठिन हो जाता है।
आप कहें कि यह तो सब ठीक है, विश्वास हमें करने दो, आदर्श हमें मानने दो, अनुकरण हमें करने दो, जैन, हिंदू, मुसलमान हमें बना रहने दो, बाकी चित्त शांत करने का, शून्य करने का कोई रास्ता हो तो बता दें। तो आप ऐसी बात कर रहे हैं कि पौधा तो हम लगाएंगे नहीं, बीज हम डालेंगे नहीं, पानी हम सींचेंगे नहीं, यह तो छोड़ो, ये बातें छोड़ दो, हमें दो इतना बता दो कि फूल कैसे आते हैं? फिर फूल नहीं आते। चित्त की निर्विकल्प दशा, शून्य दशा, ध्यान दशा बहुत सरल है, लेकिन सीढ़ियां जो उस तक पहुंचाती हैं वे बड़ी कठिन मालूम होती हैं।
और वे भी कठिन इसलिए नहीं हैं कि वे कठिन हैं, आप में साहस नहीं है जरा सा भी, इसलिए वे कठिन हो गई हैं। साहस व्यक्ति को युवा बनाता है। छोड़ने का हममें जरा भी साहस नहीं है। इसलिए हम अटके खड़े रह जाते हैं। और व्यर्थ बातें भी छोड़ने का साहस नहीं है, तब तो बहुत कठिनाई हो जाती है। शून्यता पा लेनी बहुत सरल है, साहस चाहिए।
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