मोह
एक बात खयाल में लेना, जब तुम बुद्धपुरु षों के पास होते हो, तो उनकी आंखें, उनका व्यक्तित्व, उनकी भाव भंगिमा, उनके जीवन का प्रसाद, उनका संगीत सब प्रमाण देता है कि वे ठीक हैं, तुम गलत हो।
![]() आचार्य रजनीश ओशो |
लेकिन बुद्धपुरु ष कितने हैं? कभी-कभी उनसे मिलना होता है। और मिलकर भी कितने लोग उन्हें देख पाते हैं और पहचान पाते हैं? सुनकर भी कितने लोग उन्हें सुन पाते हैं? आंखें कहां हैं जो उन्हें देखें? और कान कहां हैं जो उन्हें सुनें? और हृदय कहां हैं, जो उन्हें अनुभव करें?
और कभी-कभी विरल उनसे मिलना होता है। जिनसे तुम्हारा रोज मिलना होता है सुबह से सांझ तक करोड़ों-करोड़ों लोग वे सब तुम जैसे ही दुखी हैं। और वे सब संसार में भागे जा रहे हैं; तृष्णा में दौड़े जा रहे हैं, मोह में, लोभ में। इनकी भीड़ भी प्रमाण बनती है कि जब इतने लोग जा रहे हैं इस संसार की तरफ, जब सब दिल्ली जा रहे हैं, तो गलती कैसे हो सकती है? इतने लोग गलत हो सकते हैं? इतने लोग नहीं गलत हो सकते। अधिकतम लोग गलत होंगे? और इक्का दुक्का आदमी कभी सही हो जाता है! यह बात जंचती नहीं।
इनमें बहुत समझदार हैं। पढ़े-लिखे हैं। बुद्धिमान हैं। प्रतिष्ठित हैं। इनमें सब तरह के लोग हैं। गरीब हैं, अमीर हैं। सब भागे जा रहे हैं! इतनी बड़ी भीड़ जब जा रही हो, तो फिर भीतर के स्वर सुगबुगाने लगते हैं। वे कहते हैं एक कोशिश और कर लो। जहां सब जा रहे हैं, वहां कुछ होगा। नहीं तो इतने लोग अनंत-अनंत काल से उस तरफ जाते क्यों? अब तक रु क न जाते? तो बुद्धपुरु ष फिर, तुम्हारे भीतर उनका स्वर धीमा पड़ जाता है। भीड़ की आवाज फिर वजनी हो जाती है। और भीड़ की आवाज इसलिए वजनी हो जाती है कि अंतस्तल में तुम भीड़ से ही राजी हो, क्योंकि तुम भीड़ के हिस्से हो; तुम भीड़ हो। बुद्धपुरु षों से तो तुम किसी-किसी क्षण में राजी होते हो। एक क्षणभर को तालमेल बैठ जाता है।
उनकी वीणा का छोटा सा स्वर तुम्हारे कानों में गूंज जाता है। मगर यह जो नक्कारखाना है, जिसमें भयंकर शोरगुल मच रहा है, तुम्हें चौबीस घंटे सुनाई पड़ता है। तुम्हारे पिता मोह से भरे हैं; तुम्हारी मां मोह से भरी है, तुम्हारे भाई, तुम्हारी बहन, तुम्हारे शिक्षक, तुम्हारे धर्मगुरु सब। सबको पकड़ है कि कुछ मिल जाए। और जो मिल जाता है, उसे पकड़कर रख लें। और जो नहीं मिला है, उसे भी खोज लें मोह का अर्थ क्या होता है? मोह का अर्थ होता है मेरा, ममत्व; जो मुझे मिल गया है, वह छूट न जाए।
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