सेना में सांप्रदायिक तत्व नहीं

Last Updated 06 Feb 2009 01:16:03 PM IST


नयी दिल्ली। सेना प्रमुख जनरल दीपक कपूर ने बल में सांप्रदायिक तत्वों के नेटवर्क की संभावना से इंकार किया और उल्लेख किया कि मालेगांव धमाकों में एक सेवारत लेफ्टिनेंट कर्नल की कथित संलिप्तता एक अपवाद है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सेना मालेगांव धमाकों के आरोपी लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित के खिलाफ आंतरिक कार्रवाई शुरू करेगी। पुरोहित को मालेगांव विस्फोटों के सिलसिले में महाराष्ट्र के आतंकवाद विरोधी दस्ते 'एटीएस' ने गिरफ्तार किया था। कपूर ने एक साक्षात्कार में कहा कि सेना अपने आंतरिक ढांचे और प्रक्रियाओं को और मजबूत बनाने के उद्देश्य से इनकी समीक्षा कर रही है ताकि इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों। कपूर ने कहा हां मैं अब भी उल्लेख करता हूं कि यह एक अपवाद है। यह पूरी तरह से अपवाद है और यह हुआ है। उनसे पूछा गया था कि क्या वह अब भी इस बात पर कायम हैं कि पुरोहित का मामला अपवाद है। यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें सेना के भीतर पुरोहित जैसे लोगों का कोई नेटवर्क मिला है उन्होंने कहा नहीं नहीं। मैं बिना किसी संदेह के कह सकता हूं कि हमने जांच एक श्रृंखलाबद्ध जांच की है। कपूर ने कहा कि सेना की संगठनात्मक संस्कृति और उसके राष्ट्रवादी धर्म निरपेक्ष मूल्यों की जड़ें काफी गहरी तथा मजबूत हैं। उन्होंने कहा कि सेना का आंतरिक तंत्र काफी समग्र है जिसकी समय समय पर समीक्षा की जाती है ताकि कर्मियों पर किसी नकारात्मक प्रभाव से बचा जा सके। सेना प्रमुख ने कहा कि संभावित नकारात्मक प्रभाव और किसी अपवादजनक आचरण की संभावना से निपटने में उनकी नीति बहु चरणीय होती है जिसमें समग्र निगरानी और शुरुआती स्तर पर ही चयन प्रक्रिया में सावधानी बरतने जैसी चीजें शामिल हैं। उन्होंने कहा कि मालेगांव मामले में चल रही जांच और न्यायिक प्रक्रिया ही नहीं बल्कि सेना ऐसी किसी भी घटना को काफी गंभीरता से लेती है। कपूर ने कहा हम अपने आतंरिक ढांचे और प्रक्रियाओं की लगातार समीक्षा करते रहते हैं ताकि इन्हें और भी मजबूत तथा समय के साथ सामने आ रही नयी चुनौतियों से निपटने में प्रभावी बनाया जा सके। सेना प्रमुख ने कहा कि तथ्य यह है कि आखिरकार सेवाओं में आने वाले सभी लोग एक ही जन मुख्यधारा से आते हैं इसलिए सशस्त्र बलों में लंबे समय तक प्रशिक्षण के बावजूद किसी व्यक्ति के साथ ऐसा अपवाद हो सकता है। उन्होंने कहा कि सशस्त्र बलों की संस्कृति में किसी व्यक्ति की सोच को पहले ही पूरी तरह नहीं जाना जा सकता। हो सकता है कि कोई व्यक्ति सशस्त्र बल में आने के बाद भी अपने उन बाहरी संपर्कों से जुड़ा रहे जहां उसकी सोच तैयार हुई हो। उन्होंने कहा लेकिन यदि ऐसा होता है तो मैं मानता हूं कि हमें हर हाल में कार्रवाई करनी चाहिए।



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