13 वर्ष की आयु में गाना सुनने के बहाने बिहार के राजा ने बुलाकर उनका बलात्कार किया। छोटी उम्र में एक बच्ची शमीमा की बिन ब्याही माँ बन गईं। हालांकि उसे अपनी बहन बताती रहीं।
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ग़ज़ल की चर्चा हो और बेगम अख्तर का नाम ना आए तो ये मोसिक़ी के साथ नाइंसाफी होगी ।शास्त्रीय रागों पर आधारित गजल गायकी में बेगम अख्तर लाजवाब हैं। मशहूर शायर कैफी आजमी ने एक बार बेगम अख्तर की मखमली आवाज़ से रची ग़ज़लों की तारीफ करते हुए कहा था कि उनकी समझ में ग़ज़ल के दो ही मायने होते हैं पहला तो ख़ुद ग़ज़ल और दूसरा बेगम अख्तर, 07 अक्टूबर 2023 को बेगम अख्तर की 109वीं जयंती पर आइये जानते हैं कोठे से गजलों तक की कहानी।
संघर्ष भरा जीवन
7 अक्टूबर 1914 को फैजाबाद (उप्र) में एडवोकेट असगर हुसैन की दूसरी पत्नी मुस्तरी की बेटी थीं बेगम अख्तर जिनका असली नाम अख्तरी बाई थाय़ घर में उसे बिब्बी कहते थे। उनको बचपन से संगीत से प्रेम था, वह सिंगर बनना चाहती थीं। लेकिन परिवार इसकी इजाज़त नहीं देता था। अख्तरी 4 वर्ष की थीं, उनके पिता ने उन्हें छोड़ दिया। संघर्षों से जूझते हुए वह आगे, बढ़ती रहीं, लेकिन हार नहीं मानी, हालांकि इस जिद की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। 7 वर्ष की आयु में वह जिस उस्ताद से गायकी सीख रही थीं, उसने उनका शारीरिक शोषण किया। कालांतर में उन्होंने उस्ताद इमदाद खान, अता मोहब्बत खान, अब्दुल वहीद खान से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। 13 वर्ष की आयु में गाना सुनने के बहाने बिहार के राजा ने बुलाकर उनका बलात्कार किया। छोटी उम्र में एक बच्ची शमीमा की बिन ब्याही माँ बन गईं। हालांकि उसे अपनी बहन बताती रहीं।
करियर की शुरुआत
बेगम अख्तर को गायकी का पहला अवसर फिल्म बादशाह के लिए मिला था, लेकिन फिल्म फ्लॉप रही। वह अपने गृह नगर लखनऊ आ गई। लखनऊ में ही बेगम अख्तर की मुलाकात महबूब खान से हुई। महबूब खान बेगम की प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने बेगम को मुंबई बुलाया। इसके बाद वो कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ती गईं और उन मर्दों को मुंह पर तमाचा मारती गईं जिन्होंने उनके साथ शर्मनाक हरकते कीं।
बेगम अख्तर गजल, ठुमरी, और दादरा गायन शैली की बेहद लोकप्रिय गायिका थीं। उनकी गाई कुछ गजलें ‘वो जो हममें तुममें क़रार था, तुम्हें याद हो के न याद हो’, ‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया’, ‘मेरे हमनफस, मेरे हमनवा, मुझे दोस्त बन के दवा न दे’, आज की पीढ़ी को भी दीवाना बना देती है। उनकी गायकी के चर्चे सुनकर ग्रामोफोन कंपनी ने उनसे गाना गाने की अपील की लेकिन उनके उस्ताद ने मना कर दिया, लेकिन आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने से बेगम अख्तर ने एचएमवी कंपनी के साथ करार किया और दादरा और गजलें गाईं. यह उनकी गायकी का ही जादू था, जिसने गजल को कोठों से निकालकर आम लोगों के बीच लोकप्रिय किया. बेगम अख्तर ने ग़ालिब, मोमिन, फैज अहमद फैज, कैफ़ी आज़मी, शकील बदायुनी जैसे दिग्गज शायरों के कलाम गाए और इन कलाम को घर-घर में पहचान दिलाई।
निधन
साल 1974 में तिरुवनंतपुरम के पास बलरामपुर में अपने अंतिम संगीत कार्यक्रम के दौरान उन्होंने अपनी आवाज की रेंज बढ़ा दी, जिससे वह बीमार पड़ गईं। और 30 अक्टूबर 1974 को उनकी दोस्त नीलम गमाड़िया की बाहों में दुनिया से रुख्सत हो गईं।
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