सजग, सतर्क, सावधान
गूंज रहा है मोहक मधुमय, उड़ते रंग-गुलाल; मस्ती जग में छाई है, साजन! होली आई रे! होली पर ठिठोली का यह मिजाज बरसों से हमारे उत्सवप्रेमी देश की पहचान रहा है। लेकिन अब की बार फाग के माह का यह खास अंदाज बंदिशों के साए में शायद बस एक रिवाज बन कर रह जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि होली के रंग में लगातार दूसरे साल कोरोना का भंग पड़ना तय दिख रहा है।
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देश ही नहीं, दुनिया भर में महामारी की दूसरी लहर कोहराम मचाए हुए है। पहली पारी के बाद अल्प विश्राम लेकर लौटा कोरोना दूसरी पारी में पहले से ज्यादा खतरनाक हो गया है। देश में पिछले हफ्ते कोरोना संक्रमण के ढाई लाख से ज्यादा नये मामले सामने आए, जबकि उससे पहले नये मामलों की संख्या 1.55 लाख थी। यह पिछले एक साल में कोरोना वायरस के मामलों में आया सबसे तेज उछाल है।
ऐसे हालात क्यों बने, इसकी पड़ताल तो जरूरी है ही, उतना ही महत्त्वपूर्ण यह जानना भी है कि यह चुनौती आखिर कितनी विशाल और विकराल है। इसे लेकर भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी रिपोर्ट में हैरान करने वाला दावा किया है। इस रिपोर्ट में फरवरी माह से कोरोना के नये मामलों में आई तेजी को दूसरी लहर का प्रमाण बताया गया है और पिछले एक माह में मिले रुझानों को आधार बनाकर आने वाले दिनों में करीब 25 लाख लोगों के इसकी चपेट में आने की आशंका जताई है। इस रिपोर्ट में दो और बेहद महत्त्वपूर्ण अनुमान शामिल हैं। पहला यह कि पिछली लहर के पीक पैटर्न के आधार पर इस बार पीक मध्य-अप्रैल में आ सकता है। दूसरा यह कि 15 फरवरी के अनुमानों को शुरु आती चरण मानते हुए देश को अगले 100 दिनों तक बहुत सावधान रहने की सलाह दी गई है।
‘महिषासुर’
समस्या इतनी भर नहीं है कि कुछ दिन पहले तक दम तोड़ता दिख रहा कोरोना म्यूटेशन करते हुए अचानक से ‘महिषासुर’ बन गया है। दरअसल, देश में कोरोना के विदेशी डबल म्यूटेंट वेरिएंट भी मिले हैं, और इनके 18 राज्यों में फैल जाने से हालात ‘नीम चढ़े करेले’ वाले बन गए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसी हफ्ते देश में कोरोना वायरस के तीन नये वेरिएंट की पुष्टि की है, जो ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील से संबंधित हैं। चिंता की बात यह है कि इन देशों से निकले कोरोना वायरस के यह नये स्ट्रेन ज्यादा संक्रामक हैं, और एक लहर की तरह दुनिया भर में फैल कर व्यापक पैमाने पर तबाही मचा रहे हैं। इस पर ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने 46 देशों में एक विस्तृत अध्ययन किया है, जिसके नतीजे दुनिया की ज्यादातर आशंकाओं पर मुहर लगाते हैं। इसके हिसाब से जिन देशों में कोरोना की दूसरी लहर पहुंच गई है, वो तबाही की सुनामी भुगत रहे हैं। पिछले साल आई पहली लहर में मार्च से मई के बीच इन देशों में कुल 2.20 लाख लोगों की मौत हुई थी, जबकि अक्टूबर से दिसम्बर के बीच आई दूसरी लहर में 6.20 लाख लोगों की जान गई यानी दूसरी लहर ने सीधे-सीधे चार लाख ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया। सबसे ज्यादा नुकसान ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, स्वीडन, स्पेन, इटली, हॉलैंड जैसे देशों का हुआ है। इसे देख कर लगता है कि यूरोप में शायद ही कोई बड़ा देश बचा होगा, जो कोरोना के बढते कद के सामने बौना साबित न हुआ हो। इस दौरान सुपर पावर अमेरिका भी कोरोना के सामने पस्त दिखा, जहां दूसरी लहर में पहली लहर की तुलना में दोगुने ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं। ‘द इकोनॉमिस्ट’ के विश्लेषण में हमारे लिए भी सबक हैं। गौर करने वाली बात यह है कि इन विदेशी वेरिएंट के ज्यादातर मामले महाराष्ट्र, पंजाब, केरल, गुजरात, कर्नाटक, दिल्ली, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में हैं, जहां विदेश से भारत आने वाले लोगों की देश में सीधे एंट्री होती है। यह पैटर्न काफी कुछ पहली लहर से मेल खाता है जब इन्हीं राज्यों में कोरोना के शुरु आती मामले दर्ज हुए थे। लेकिन क्या इसके लिए केवल सरकार के स्तर पर हुई चूक को कसूरवार कहा जा सकता है?
विदेशी वेरिएंट चिंता की बात
विदेशी वेरिएंट का देश में विस्तार यकीनन चिंता की बात है, लेकिन यह फिलहाल राहत का विषय है कि इससे होने वाले जान-माल का नुकसान अभी बेलगाम नहीं हुआ है। बड़ा मसला देश में ही हो रहा कोरोना का म्यूटेशन है, जो संक्रमण और मौत के आंकड़े को फिर तेजी से बढ़ा रहा है, और इसमें हम अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते। केंद्र और राज्य सरकारें लगातार मास्क पहनने, सैनिटाइजर से हाथ साफ करते रहने, सामाजिक दूरी बनाए रखने एवं भीड़ से बचने जैसी एहतियात बरतने की सलाह दे रही हैं, लेकिन बाजारों और दूसरी सार्वजनिक जगहों पर उमड़ रही भीड़ से पता चल जाता है कि इन सलाह पर कितना अमल हो रहा है। इस स्वच्छंदता पर चालान काटने जैसी दंडात्मक कार्रवाई का भी कोई असर नहीं पड़ रहा है। नतीजतन, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश जैसे कई राज्य सरकारों को आंशिक लॉकडाउन वाली सख्ती की ओर लौटना पड़ा है। महामारी की चेन तोड़ने के लिए कई शहरों में रात का कर्फ्यू भी आजमाया जा रहा है। हालांकि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की जिस रिपोर्ट का पूर्व में उल्लेख किया गया है, उसके अनुसार दूसरी लहर से निपटने के लिए स्थानीय या संपूर्ण लॉकडाउन के मुकाबले सामूहिक टीकाकरण ज्यादा प्रभावी उपाय है। यकीनन, टीकाकरण के मामले में वैिक स्तर पर तो हमारी उपलब्धियां गर्व करने लायक हैं, लेकिन घरेलू मोर्चे पर टीकाकरण अभियान को अभी और धारदार बनाने की गुंजाइश है। कोरोना वॉरियर्स और वरिष्ठ नागरिकों के बाद अब गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मध्य-आयु वर्ग के लोगों के लिए भी टीकाकरण शुरू कर दिया गया है, लेकिन यह अभियान अभी तक तय मानकों के अनुरूप रफ्तार नहीं पकड़ पाया है। 45 साल से ज्यादा उम्र के लोगों का अगले चार महीने में संपूर्ण टीकाकरण करने के लिए रोजाना 40-45 लाख टीके लगाने होंगे।
जिम्मेदार नागरिक बनें
यहां एक जिम्मेदार नागरिक बनकर हम देश का दोहरा फायदा कर सकते हैं। स्व-प्रेरणा से टीके लगवा कर हम अपने देश को कोरोना मुक्त बनाने के सरकार के अभियान में योगदान दे सकते हैं, वहीं ज्यादा-से-ज्यादा संख्या में आगे आकर हम टीके की बर्बादी को भी रोक सकते हैं। मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इस बर्बादी पर चिंता जता चुके हैं। अभी हालत यह है कि टीके की हर 100 खुराक में से औसतन करीब सात खुराक बर्बाद हो रही हैं। वैसे वैिक स्तर पर यह आंकड़ा 10 फीसद तक है, लेकिन मौजूदा वक्त में टीके की उपयोगिता को देखते हुए जरूरी है कि एक खुराक भी बर्बाद न हो। इसके लिए वैक्सीन प्रबंधन पण्राली को दुरुस्त करने के साथ ही लोगों को और जागरूक करने की जरूरत है। आम तौर पर एक वैक्सीन की शीशी में दस से बीस डोज वैक्सीन होती है। अगर यह शीशी एक बार खोल ली जाए, तो सभी डोज का चार घंटे के अंदर इस्तेमाल होना जरूरी है, नहीं तो वैक्सीन खराब हो जाती है। टीकाकरण केंद्रों पर अगर लोगों के आने का क्रम नियमित न हो तो वैक्सीन खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। टीकों की बड़ी संख्या में बर्बादी बताती है कि अभी भी कई केंद्रों पर क्राउड मैनेजमेंट को और बेहतर किए जाने की जरूरत है।
यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि सरकार के तमाम प्रयास और व्यापक रूप से प्रभावी लॉकडाउन के एक साल बाद देश में अभी भी कोरोना के सक्रिय मरीजों की संख्या सवा चार लाख के करीब है। बेशक, इसमें बड़ा हिस्सा पिछले महीने आई दूसरी लहर का है, जिसने हमें ही नहीं, पूरी दुनिया को सबक सिखाया है कि किसी भी महामारी को कमजोर पड़ने पर ‘मरा’ समझ लेना बहुत बड़ी भूल हो सकती है। स्पैनिश फ्लू के बाद कोविड-19 इसकी ताजी मिसाल बना है। साल 1918 से साल 1920 के बीच फैले स्पैनिश फ्लू से लगभग 50 करोड़ लोग संक्रमित हुए थे और 5 करोड़ की मौत हो गई थी। इस महामारी का दूसरा चरण और भी खौफनाक नतीजे लेकर आया था। कोरोना की नई लहर उसी 100 साल पुराने सबक को याद दिला रही है, और हमें पहले से ज्यादा सजग, ज्यादा सतर्क और ज्यादा सावधान रहने की अहमियत समझा रही है।
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