वक्फ : बदले समय का प्रमाण

Last Updated 09 Apr 2025 11:56:35 AM IST

वक्फ संशोधन के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाओं की प्रतिस्पर्धा शुरू हो चुकी है। इस संशोधन के दोनों सदनों में पारित होने के अगले दिन से ही उच्चतम न्यायालय में याचिकाएं जाने लगीं।


वक्फ : बदले समय का प्रमाण

एक साथ तीन तलाक, नागरिकता संशोधन कानून और अनुच्छेद 370 हटाए जाने के विरु द्ध भी हमने यही देखा। इन सभी मामलों की न्यायिक परिणति देश के सामने है।
हमारे सामने दो दृश्य भी हैं। लोक सभा में बहस के पूर्व सभी पार्टयिों ने व्हिप जारी कर दिया था। राज्य सभा में गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट घोषणा की कि सांसद स्वतंत्र हैं, व्हिप नहीं है, वे जैसे चाहें मतदान करें। इसके बावजूद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की संख्या से ज्यादा मत विधेयक के समर्थन में आए। इसके कोई निहितार्थ हैं या नहीं? दोनों सदनों में बहस और मतदान के दौरान देश में समर्थन और विरोध, दोनों में मुसलमान उतरे। उन दो दिनों में समर्थकों की संख्या भी काफी ज्यादा थी। अलग-अलग धार्मिंक संस्थाओं और संगठनों ने खुल कर विधेयक का समर्थन किया। इनमें वे मुस्लिम मजहबी नेता और संस्थाओं के प्रमुख भी शामिल थे जो पहले वक्फ में किसी प्रकार के संशोधन का घोर विरोध करते थे। 

ऐसे विषयों पर सुधार और परिवर्तन के संवैधानिक कानूनी कदमों के विरु द्ध प्रचार और रोकने की कोशिश पहली बार नहीं है। वक्फ कानून, उससे संबंधित बोर्ड और ट्रिब्यूनल या न्यायाधिकरण को मुस्लिम वोट पाने की नीति के तहत सुपर सरकार, सुपर प्रशासन और सुपर न्यायपालिका की भूमिका दे दी गई थी, उस ढांचे में लाभान्वितों तथा आनंद सुख भोगने वालों के अंदर छटपटाहट स्वाभाविक है। वक्फ कानून में संशोधन क्यों नहीं होना चाहिए था या संशोधन में क्या असंवैधानिक, इस्लाम विरोधी, मुस्लिम विरोधी है, इसका तथात्मक उत्तर विपक्ष के किसी नेता द्वारा संसद में नहीं मिला। जब एक सदस्य ने कहा कि मुसलमान कानून को नहीं मानेगा तब गृह मंत्री ने कहा कि यह संसद द्वारा बनाया गया कानून है, सबको मानना पड़ेगा। संसद द्वारा विहित प्रक्रिया के तहत पारित कानून भारत के सभी क्षेत्रों और व्यक्तियों पर लागू होता है। कांग्रेस नेत्री सोनिया गांधी ने लोक सभा में विधेयक पारित होने की प्रक्रिया को बहुमत के द्वारा संविधान का अतिक्रमण और लोकतंत्र का गला घोंटने के समान बता दिया।

लोक सभा में अमित शाह ने रिकॉर्ड रखते हुए बताया कि संप्रग सरकार ने 2013 में चार घंटे की चर्चा के बाद वक्फ संशोधन विधेयक पास कर दिया था जबकि इस बार दोनों सदनों में करीब 27 घंटे से ज्यादा का समय लगा। वक्फ ने जिस तरह पूरे देश में संपत्तियों का दावा किया, कब्जे में लिया उसकी अनेक कथाएं रिकॉर्ड में सामने हैं। यह कैसी संवैधानिक व्यवस्था थी जिसमें वक्फ किसी संपत्ति पर दावा कर दे तो वक्फ ट्रिब्यूनल के अलावा आप कहीं नहीं जा सकते। ट्रिब्यूनल बरसों लगा देगा और फैसले को सिविल न्यायालय में चुनौती नहीं दे सकते यानी आपकी संपत्ति गई। इसमें हिन्दू और मुसलमान, दोनों के साथ सार्वजनिक सरकारी संपत्तियां भी शामिल हैं। गृह मंत्री ने सदन में रिकॉर्ड पर कहा कि कोई गांव या शहर से बाहर नौकरी करने चला गया और उसकी संपत्ति वक्फ कर दी गई।  

वक्फ में कोई बदलाव नहीं है। किंतु हम अपनी संपत्ति वक्फ में रजिस्ट्री करा सकते हैं, दूसरे की संपत्ति पर कैसे दावा कर सकते हैं? सरकार कैसे संपत्ति वक्फ कर सकती है? यूपीए सरकार के सत्ता में आने के बाद सच्चर आयोग की नियुक्ति और उसकी रिपोर्ट के बाद पूरे देश में अलग से इस्लामी ढांचा स्थापित करने की प्रक्रिया में केंद्र और राज्य सरकारों ने अनेक संपत्ति वक्फ बोडरे को दी। हमारी, आपकी या किसी मंदिर की जमीन के कागजात, राजस्व आदि का विषय जिला कलेक्टर के अधीन होगा किंतु वक्फ का नहीं हो तो कैसे इसे कानून का पालन माना जाएगा? वक्फ इस्लाम का अंग है, लेकिन भारत के संविधान और कानून के तहत सरकारों द्वारा गठित वक्फ बोर्ड और वक्फ ट्रिब्यूनल इस्लाम का विषय नहीं हो सकता। उसे संविधान और कानून के अंतर्गत ही काम करना होगा। कोई संपत्ति जिस उद्देश्य के लिए वक्फ हुई, उसका उपयोग उसके अनुरूप हो रहा है या नहीं तथा वक्फकर्ता ने? स्वेच्छा से ऐसा किया या दबाव डाल कर कराया गया इसे सुनिश्चित करने की जिम्मेवारी प्रशासन की है। जिस संस्था में लगभग 41 हजार विवाद हों और उनमें 10 हजार मुसलमानों द्वारा किए गए उसे कायम नहीं रखा जा सकता था।

वास्तव में वक्फ कानून में संशोधन एक लोकतांत्रिक और समानता के सिद्धांत के विरुद्ध, मजहब का अंग न होते हुए भी इस्लाम के नाम पर कुछ शक्तिशाली प्रभुत्वशाली मुस्लिम पुरु षों के एकाधिकार और निरंकुश ढांचे को ध्वस्त कर वक्फ की मूल सोच के अनुरूप संविधान की परिधि में लोकतांत्रिक चरित्र में परिणत करने का प्रगतिशील कदम है। ऐसे ढांचे को संसदीय व्यवस्था के तहत ध्वस्त करना, जिसको सरकारें बदलाव की आवश्यकता महसूस करते हुए भी स्पर्श करने तक से डरती रही हों, निस्संदेश साहसिक, ऐतिहासिक और युगांतरकारी कदम है। वक्फ की संपत्ति पर इस्लाम की मान्यता के अनुसार गरीब विधवाओं, तलाकशुदा महिलाओं तथा अनाथों का अधिकार है। वक्फ बोर्ड में आपको सामान्य मुस्लिम परिवार के सदस्य शायद ही मिलेंगे। अब इस दौर का अंत होगा तथा गरीब, वंचित, पसमांदा, महिलाएं सब इस्लाम की धारणा के अनुसार वक्फ के उचित उपयोग में भूमिका निभा सकेंगे। वक्फ ने पुराने मामलों के संदर्भ में बदलाव नहीं किया है लेकिन जिन पर विवाद है वे कायम रहेंगे। रिकॉर्ड में और ऑनलाइन आते ही सब पारदर्शी होगा। तो वक्फ के नाम पर हुए अन्याय के निराकरण का रास्ता प्रशस्त होगा और पीड़ितों को न्याय प्राप्त होने की ठोस संभावना बनेगी। ऐसे मामलों का सच देश के सामने होगा और इस्लाम के नाम पर हंगामा खड़ा करने वालों के चेहरे भी बेनकाब होंगे। भूमि या ऐसे मामले राज्यों के विषय हैं। तो अलग-अलग राज्यों का तंत्र सरकारों की राजनीतिक नीति के अनुसार काम करेगा और इनमें समस्याएं आएंगी। किंतु वक्फ के दावों के विरु द्ध पीड़ित को न्यायालय जाने से कोई नहीं रोक सकता। और सिविल न्यायालय में व्यक्ति की पहचान और कानून के अनुसार ही फैसला होगा।         
(लेख में विचार निजी है)

अवधेश कुमार


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