प्रदूषण : तकनीक दिलाएगी समस्या से निजात

Last Updated 29 Mar 2025 01:53:18 PM IST

प्रदूषण की विकट होती समस्या के समाधान के लिए विश्व स्तर पर रिसर्च, प्रयोग, अध्ययन और उनसे निकले निष्कषरे पर दुनिया के तमाम देशों में कार्य हुए हैं, लेकिन समाधान की दिशा में प्रयास अभी भी नाकाफी हैं।


वैज्ञानिकों का मानना है कि सदी के अंत तक पर्यावरण प्रदूषण और धरती के बढ़ते तापमान से ताल्लुक रखने वाली तमाम समस्याओं को पूरी तरह खत्म करना मुमकिन नहीं है। धरती के तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होने से रोकने के मद्देनजर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को सीमित करने की सहमति पर पहली बार 2016 के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में सम्मेलन में बनी थी। 

वैज्ञानिक कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा हटाने के लिए धरती की सतह पर चट्टानों के रासायनिक विघटन के जरिए हवा से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को स्वाभाविक रूप से हटाना जरूरी कहते हैं। 2016 में लेवरहुल्मे सेंटर फॉर क्लाइमेंट चेंज मिटिगेशन के निदेशक डेबिड बियरलिंग दे एक खेती तकनीक विकसित करने के बारे में बात की थी। इससे फसलों को फायदा पहुंचने की बात भी की गई। हवा से कार्बन डाइऑक्साइड सोख कर उसका बेहतर इस्तेमाल करने की यह नई पहल पहली बार बड़े स्तर पर की गई थी। अमेरिका में हर साल 7 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड की खपत होती है। इसी तरह कैलिफोर्निया के ट्रेसी शहर में एक विशाल नये गोदाम के अंदर भूरे रंग के पाउडर से भरी ट्रे के ऊंचे-ऊंचे टावर लगे हुए हैं जो देखने में बहुत सुंदर लगते हैं। हीरामूल कंपनी के जरिए ये टावर लगाए गए हैं। ये हवा से कार्बन डाइऑक्साइड सोखने का कार्य करते हैं। चूना पत्थर का इस्तेमाल करके हवा से कार्बन डाइऑक्साइड को सीधे हवा से हटाने और इसे गहराई से संग्रहीत करने कर पर्यावरण प्रदूषण हटाया जाता है। दुनिया के कई देशों में कार्बन डाइऑक्साइड हवा से हटाने और इसका बेहतर उपयोग कर कई तरह के निर्माण के कार्य किए जा रहे हैं।

 दुनिया के वैज्ञानिकों और राज नेताओं ने इस तरह के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य को अहमियत दी है। इस कार्य में निजी और सरकारी, दोनों स्तरों पर कोशिशें की जा रही हैं। इसी तरह स्विस कंपनी इन्शिोर के जरिए जिस यांत्रिक पेड़ का निर्माण हुआ है, वह कार्बन डाइऑक्साइड सोखने की दिशा में कारगर माना जा रहा है। 2022 से ही इस कंपनी का यह संयंत्र काम कर रहा है। उत्तरी सागर में समुद्र तल से एक मिलोमीटर नीचे, ऊर्जा का कंपनी इनिशेर 1996 से एक गैस प्रसंस्करण संयंत्र कार्बन डाइऑक्साइड को संग्रहीत कर रही है। हर साल दस लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड का भंडारण कर रही है। यह तकनीक किस तरह लाभकारी हो सकती है, इस पर वैज्ञानिक लगे हुए हैं। कार्बन डाइऑक्साइड की संग्रहीत मात्रा पर वैज्ञानिकों का कहना है कि कार्बन लूप को बंद करने के लिए सीधे हवा का संग्रहण कर इसका उपयोग तरह-तरह के निर्माण कार्य में करने की तकनीक आ चुकी है। इसके अनुसार संग्रहीत  कार्बन डाइअॅक्साइड को अक्षय ऊर्जा से बनाए गए ग्रीन हाइड्रोजन के साथ मिलाकर कार्बन डाइऑक्साइड को सिंथेटिक ईधन-गैसोलीन, डीजल, बिजली या केरोसिन में बदलने का कार्य चल रहा है। यह ऊर्जा स्रोत के बड़े विकल्प के रूप में भी देखा जा रहा है। क्लाइमर्क्‍स वाणिज्यिक रूप से प्रत्यक्ष संग्रहीत करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। 

दुनिया में धरती पर दूसरा सबसे अधिक खनन किए  जाने वाले पदार्थ-हवा से कार्बन सोखने का है। जलवायु परिवर्तन से प्राणियों पर पड़ने वाले असर को कम करने के लिए तमाम देश शिद्दत कोशिश में लगे हैं लेकिन अभी इसमें वक्त लगेगा। इस विधि से प्रति वर्ष 1,000 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड संयंत्र के जरिए संग्रहीत किया जा सकता है। कंपनी को उम्मीद है कि 2035 तक 1 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड को हटाना संभव हो सकेगा। माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने 315,000 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने के लिए हीरलूम के साथ दीर्घकालिक समझौता किया है। लेकिन नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के पृथ्वी और ग्रह वैज्ञानिक ब्रेड रोडमैन का कहना है, ‘वायुमंडल बड़ा है, और वायु संग्रहण जितना होना चाहिए उसके मुकाबले बहुत कम है। लेकिन जलवायु संकट के लिए हर संभव समाधान का पीछा करना महत्त्वपूर्ण है’।  हवा से सीधे कार्बन डाइऑक्साइड संग्रहीत करने का कार्य बड़े स्तर पर हो रहा है। अमेरिका, रूस, भारत, स्वीडन, फ्रांस और तमाम देशों में अलग-अलग तकनीकों के जरिए पर्यावरण प्रदूषण की समस्या दूर करने के लिए हवा से कार्बन संग्रहीत करने का कार्य किया जा रहा है जिसमें बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश भी किया जा रहा है, लेकिन प्रदूषण जिस स्तर पर है, उस स्तर पर अभी पूंजी निवेश नहीं हो पा रहा है। ऐसे में जरूरी है कि जलवायु सम्मेलनों, पृथ्वी सम्मेलनों और पर्यावरण बचाओ जैसे अभियानों मे तेजी लाई जाए।

अखिलेश आर्येन्दु


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