तंबाकू नियंत्रण : बीस बरस और भविष्य की राह
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ - WHO) के नेतृत्व में एक ऐसी संधि ने बीस साल पूरे कर लिए हैं, जिसका दुनिया भर में जन स्वास्थ्य को व्यापक लाभ मिला है। विश्व में फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल (एफसीटीसी) नामक यह संधि 27 फरवरी 2005 को हुई थी।
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अब इसे इतिहास की ऐसी पहल के रूप में स्वीकार्यता मिल गई है जिसे न केवल व्यापक रूप से अपनाया गया है बल्कि जिसके अपेक्षित परिणाम भी सामने आए हैं। इस संधि की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी बदौलत लाखों लोगों की जान बचाने में कामयाबी मिली है। मानवता के लिए एक गंभीर संकट बन चुके तंबाकू के दुष्प्रभावों को कम करने में इस संधि की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
यह सर्वविदित है कि तंबाकू मानवता के लिए एक अभिशाप बन चुका है। यह दुनिया में कैंसर, टीबी जैसी बीमारियों और उनकी वजह से होने वाली मौतों कारण बन रहा है। तंबाकू के कारण हर साल लाखों लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 20 प्रतिशत हृदय रोगियों की मौत के लिए तंबाकू ही जिम्मेदार है। इसके अलावा यह सामाजिक एवं आर्थिक दबाव भी बढ़ाता है जिससे गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार अधिक प्रभावित होते हैं।
संधि के तहत कई प्रभावी उपाय अपनाए गए हैं जिनका सकारात्मक प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वर्तमान में दुनिया के 138 देशों में सिगरेट के पैकेटों पर चेतावनियां दी जाती हैं, जिससे उपभोक्ताओं को तंबाकू के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक किया जा रहा है। कई देशों में तंबाकू उत्पादों की पैकेजिंग को साधारण कर दिया गया है, जिससे ब्रांडिंग और आकषर्क डिजाइन की संभावनाओं को समाप्त करने में मदद मिली है।
यह कोई छोटी बात नहीं है कि इस संधि की बदौलत तंबाकू विज्ञापनों और प्रमोशन पर 66 से अधिक देशों में प्रतिबंध लगाया जा चुका है। सार्वजनिक स्थानों, कार्यस्थलों और अन्य बंद इमारतों में धूम्रपान निषेध से निष्क्रिय धूम्रपान के कारण होने वाले नुकसान को भी कम करने में मदद मिली है। इससे ऐसे लोगों का जीवन बचाने में सहायता मिली है, जो खुद सिगरेट का प्रयोग नहीं करते पर धूम्रपान करने वाले अन्य लोगों की वजह से इसका खतरा झेलते हैं। इसके परिणामस्वरूप, वि की एक चौथाई आबादी ऐसी नीतियों के दायरे में आ चुकी है, जिससे तंबाकू सेवन की प्रवृत्ति में गिरावट देखी गई है।
डब्ल्यूएचओ ने संधि की 20 वीं वषर्गांठ के मौके पर कहा है कि तंबाकू के दुष्प्रभावों से बचाव पर केंद्रित यूएन संधि ने पिछले दो दशकों में लाखों-करोड़ों जिंदगियों की रक्षा करने में मदद की है। यह एक तथ्य है कि तंबाकू गैर संचारी रोगों का एक बड़ा कारण है जो न केवल असामयिक मौतों का कारण बनता है, बल्कि इससे प्रभावित लोग विकलागंता का भी शिकार हो सकते हैं। जो गरीब लोग तंबाकू जनित बीमारियों से पीड़ित होते हैं, उन पर इलाज का भारी बोझ पड़ता है। ऐसे लोग आम लोगों की तुलना में पोषक आहार से भी वंचित रहते हैं क्योंकि वह अपनी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा महंगे तंबाकू उत्पादों पर खर्च कर डालते हैं।
तंबाकू उत्पादन के लिए अत्यधिक जमीन एवं पानी की जरूरत पड़ रही है। अगर तंबाकू के प्रति लोग नकारात्मक रवैया अपनाएं तो इस जमीन व पानी का इस्तेमाल जरूरी खाद्यान्न के उत्पादन में किया जा सकता है। यदि तंबाकू का प्रचलन कम हो तो इन संसाधनों का उपयोग अधिक महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। यकीनन, इस संधि के तहत बहुत काम किया गया है पर अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। डब्ल्यूएचओ के और अन्य विशेषज्ञ इस संधि के तहत तंबाकू पर टैक्स बढ़ाने, विज्ञापन व प्रायोजकों पर रोक लगाने, नये तंबाकू व निकोटीन उत्पादों से पैदा हो रही चुनौतियों से निपटने जैसे विभिन्न उपायों को अपनाने पर बल दे रहे हैं। इस दिशा में सक्रियता से काम होना चाहिए।
साथ ही, तंबाकू के प्रति नकारात्मक सामाजिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए शिक्षा और जागरूकता अभियानों को और सशक्त करने की आवश्यकता है। लोगों को यह समझाय जाना चाहिए कि तंबाकू सेवन केवल एक व्यक्तिगत समस्या नहीं बल्कि यह एक वैश्विक स्वास्थ्य और आर्थिक संकट है। यदि सरकारें, समाज और आम लोग मिलकर इस प्रयास को जारी रखें तो एक स्वस्थ और तंबाकू मुक्त विश्व की कल्पना को साकार किया जा सकता है।
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