ग्रामीण क्षेत्र : चुनौतियां हैं बरकरार

Last Updated 22 Feb 2025 01:13:55 PM IST

इन दिनों ग्रामीण भारत में परिवर्तन और किसानों के बदलते जीवन विषयों पर प्रकाशित हो रही विभिन्न अध्ययन रिपोटरे में यह तथ्य रेखांकित हो रहा है कि भारत के ग्रामीण परिवेश में सकारात्मक परिवर्तन हो रहा है और इससे किसानों की आमदनी के साथ किसानों का जीवन स्तर भी बढ़ रहा है, लेकिन विकास की बहुआयामी चुनौतियां अभी बनी हुई हैं।


ग्रामीण क्षेत्र : चुनौतियां हैं बरकरार

हाल में प्रकाशित मैकिन्से ग्लोबल फॉर्मर्स इनसाइट सर्वे, 2024 में कहा गया है कि भारतीय किसान तेजी से डिजिटल पेमेंट को अपना रहे हैं। वर्ष 2024 भारत में 40 फीसद किसान द्वारा रु पयों का भुगतान डिजिटल माध्यम से किया गया है, वहीं 2022 में 11 फीसद किसान डिजिटल भुगतान का इस्तेमाल कर रहे थे। किसानों के बीच डिजिटल भुगतान का चलन बढ़ने का कारण सस्ता डाटा और यूपीआई सेवा को माना गया है। रिपोर्ट के अनुसार 2022 में देश में फसल बीमा का इस्तेमाल करने वाले महज 8 फीसद किसान थे, वे 2024 में बढ़ कर 37 फीसद हो गए। इसमें सबसे अधिक योगदान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का है। यह भी पाया गया है कि 11 फीसद किसान 2024 में जैविक उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे थे जबकि  2022 में 2 फीसद किसान ही जैविक उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे थे। 

इस रिपोर्ट का यह निष्कर्ष भी महत्त्वपूर्ण है कि भारतीय किसान औपचारिक ऋृण की ओर बढ़ रहे हैं। 2024 में 36 फीसद किसानों ने बैंक से कर्ज लिया जो 2022 में केवल 9 फीसद था। वहीं, 26 फीसद किसानों ने सब्सिडी वाले सरकारी ऋण का उपयोग किया जबकि  2022 में यह आंकड़ा सिर्फ  1 फीसद था। रिपोर्ट ने यह भी बताया कि भारत के 53 फीसद किसान फसल चक्रीकरण जैसे टिकाऊ खेती के तरीकों को अपनाने के लिए सरकारी सब्सिडी पर निर्भर हैं। सरकार इस दिशा में कई तरह से सहायता प्रदान कर रही है जैसे कि लागत में छूट, कार्बन क्रेडिट  से आय बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन आदि। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि मार्च, 2024 तक भारत में 95.44 करोड़ इंटरनेट ग्राहक थे। इनमें से 39.83 करोड़ ग्रामीण इंटरनेट ग्राहक थे। इसी परिप्रेक्ष्य में हाल में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) रिसर्च  द्वारा जारी रिपोर्ट भी महत्त्वपूर्ण है। 

इसमें कहा गया है कि मुख्य रूप से गरीबों को सीधे, लाभान्वित करने वाले सरकारी सहायता कार्यक्रमों के सकारात्मक प्रभावों और विकास के कारण गरीबी में कमी आई है। गरीबी में कमी शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में अधिक तेजी से हुई है। जहां 2011-12 में ग्रामीण गरीबी 25.7 फीसद और शहरी गरीबी 13.7 फीसद थी, वहीं 2023-24 में ग्रामीण गरीबी घट कर 4.86 फीसद और शहरी गरीबी घट कर 4.09 फीसद पर आ गई। इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 14 साल में आमदनी बढ़ने से जहां शहरों में हर माह प्रति व्यक्ति उपभोक्ता खर्च (एमपीसीई) 3.5 गुना हो गया, वहीं यह ग्रामीण इलाकों में करीब चार गुना हो गया है। 2009-10 से 2023-24 के बीच शहरी इलाकों में एमपीसीई 1984 रु पये से बढ़ कर 6996 रु पये और ग्रामीण इलाकों में यह खर्च 1054 रु पये से बढ़ कर 4122 रु पये हो गया। ऐसे में शहरों की तुलना में गांवों की ग्रोथ ज्यादा है।

निस्संदेह ग्रामीण एवं कृषि विकास के विभिन्न अभियानों के कारण देश में ग्रामीण गरीबी में तेजी से कमी आ रही है। यह पिछले वर्ष 2024 में घट कर पांच फीसद से भी कम रह गई है। ग्रामीणों की आमदनी और क्रयशक्ति भी बढ़ी हैं। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि डिजिटल इंडिया, शौचालय, स्वच्छ पेयजल और स्वच्छ ईधन के लिए उज्ज्वला योजना, सभी घरों में बिजली के लिए सौभाग्य योजना जैसे अभियानों से भी ग्रामीण भारत में गरीबी में कमी आ रही है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत 80 करोड़ से अधिक गरीब वर्ग के लोगों को मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने ग्रामीण भारत में भी गरीबी को कम करने में अहम भूमिका निभाई है। निश्चित ही ग्रामीण भारत में सकारात्मक परिवर्तन, कृषि व ग्रामीण विकास तथा किसानों की आमदनी बढ़ाने के मद्देनजर बजट 2025-26 आशा की एक और किरण लेकर आया है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के लिए इस बार बजट 2025-26 में 1,88,754 करोड़ का प्रावधान किया गया है। 

कृषि एवं किसान कल्याण का बजट आवंटन 1.71 लाख करोड़ रु पये किया गया है जो पिछले वर्ष के बजट की तुलना में 11 फीसद अधिक है। केंद्रित कार्यक्रमों और निवेशों के माध्यम से ग्रामीण विकास को आगे बढ़ाने बढ़ाने के उद्देश्य से जल जीवन मिशन, भारतनेट परियोजना जैसी प्रमुख पहलों की रूपरेखा तैयार की गई है। ये सभी बजट व्यवस्थाएं ग्रामीण विकास और किसानों का जीवन स्तर बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हुए दिखाई दे सकेंगी लेकिन हमें ग्रामीण भारत के विकास और किसानों की प्रगति के लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा। देश के 95 फीसद किसान अभी भी आधुनिक खेती की तकनीक नहीं अपना रहे। इसका कारण सेटअप में लगने वाला समय, ज्यादा लागत, निवेश पर रिटर्न को लेकर अस्पष्टता जैसे कारक हैं। हमें इस तथ्य पर भी ध्यान देना होगा कि भारतीय किसान ऑनलाइन खरीदारी में दुनिया में बहुत पीछे हैं। करीब 42 फीसद किसानों का कहना है कि उन्हें ऑनलाइन विक्रेताओं से पर्याप्त ग्राहक सेवा और लचीले भुगतान का विकल्प नहीं मिलता। देश में प्रत्येक किसान परिवार औसतन 74,121 रु पये के कर्ज तले दबा हुआ है।

हम उम्मीद करें कि सरकार खास तौर से ग्रामीण गरीबी का सामना कर रहे परिवारों के युवाओं को कौशल प्रशिक्षण और डिजिटल कौशल से सुसज्जित करके रोजगार से सशक्तिकरण का रणनीतिक अभियान आगे बढ़ाएगी। हम उम्मीद करें कि सरकार विकसित भारत 2047 के लिए आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत के परिप्रेक्ष्य में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को और सशक्त बनाने की डगर पर आगे बढ़ेगी, इससे भी ग्रामीणों की आमदनी में तेजी से वृद्धि होगी तथा इससे किसानों को मुस्कुराहट देने का एक और नया अध्याय लिखा जा सकेगा।
(लेख में विचार निजी हैं)

डा. जयंती लाल भंडारी


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